सहजता सरलता वात्सल्यता थी जिनकी पहचान
आचार्य गुरुवर विराग सागर जी था उनका नाम
वात्सल्यता के कारण ही बाल से लेकर वृद्ध भी
करते थे ध्यान उनके संघ में
सभी का था सम्मान
बुंदेलखंड के प्रथम आचार्य कहलाते थे
आगमोक्त विधि से अपने संघ का
रत्नात्रेय पलवाते थे
आगम अनुसार ही सारे संघ का
करते थे संचालन
सबसे उत्कृष्ट था उनके संघ का अनुशासन
समाधि सम्राट कहलाते थे
एक सौ पचासी समाधि जिन्होंने करवाई
उनकी समाधि सबसे ज्यादा
सभी साधुओं ने उत्कृष्ट बताई
पंचमकाल में भी उन्होंने जो समाधि की
आगम के अनुसार परिभाषा अपनाई
पर संघ में जाना, इसलिए तो
“सुधा सागर” जी के सामने
अपनी समाधि की भावना बतलाई
अपने संघ का भी विधि पूर्वक किया
“पट्टाधीश” का नामकरण
और “विशुद्ध सागर” जी ने पदवी पाई
पूरे संघ को क्षमा कर, क्षमा मांगकर
सर्वोत्कृष्ट समाधि का किया सृजन
और शांतिपूर्वक अपनी देह का
किया विसर्जन
द्वय आचार्य समोशरण में विराजे हैं
हम भक्तजन भी ऐसी ही समाधि की
भावना भाते हैं
श्रीमती सुषमा जैन, शहर – भिलाई, दुर्ग छत्तीसगढ़