सत्य और शील का अवलंबन लेने वाला ही अहिंसा का पालक और उपासक नवोदित आचार्य श्री समयसागर जी महाराज

0
46
*आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के चतुर्दिक मुनिसंघ का नेतृत्व समयसागर जी महाराज के हाथ*
*कुण्डलपुर दमोह(म.प्र.)*
*वेदचन्द जैन* ।
      श्रमण श्रेष्ठ संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के चतुर्दिक मुनिसंघ के आचार्य पद पर श्रमण परंपरा रीति नीति के अनुसार आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के ज्येष्ठ शिष्य निर्यापक मुनि श्री समय सागर महाराज को देश विदेश के हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में पदारूढ़ किया गया। भव्यातिभव्य समारोह के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत थे।इस अवसर पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव सहित अन्य मंत्री राज्ससभा सांसद नवीन जैन आगरा व अनेक विधायक उपस्थित थे। समारोह में अनेक पुस्तकों का विमोचन किया गया। समारोह के आरंभ में जैन धर्म ध्वजा का आरोहण आर के ग्रुप परिवार के अशोक पाटनी और परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा किया गया।
  नवोदित आचार्य श्री समय सागर महाराज ने पदारोहण के उपरांत अपने प्रथम संबोधन में अपनी विनय पूर्ण शैली में स्पष्ट किया कि ये चतुर्दिक संघ मेरा नहीं, परम् पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज का था,है,और रहेगा।मैं तो संघस्थ साधक हूं। आचार्य गुरुदेव की परंपरा को सीमित शक्ति सामर्थ्य के माध्यम से हम सब आगे बढ़ायेगें।हम तो शक्तिहीन हैं जो भी सामर्थ्य हैं वो गुरुदेव प्रदत्त है। गुरुजी ने ही हमें बताया कि उचित दिशा और निर्धारित पथ पर यदि चींटी की चाल से भी चलते रहोगे तो लक्ष्य मिल जायेगा।हमें उनके प्रकाश में ही चलते रहना है।
      आचार्य श्री समयसागर जी महाराज ने कहा कि जिन्होंने तत्व को जान लिया है पदार्थ के स्वरूप को पहचान लिया है।ऐसे तत्व ज्ञाता के चरणों के स्पर्श से ये धरती पवित्र हो जाती है। प्रभु को न मैनें देखा न आपने देखा ,आचार्य गुरू के माध्यम से ही रूप प्रदर्शित होता है। आचार्य महाराज व्यहवार की दृष्टि से हमारे बीच उपस्थित नहीं हैं किंतु उन्होंने विश्व को जो प्रकाश दिया है वह न भूतो न भविष्यति,सत्य शील का अवलंबन खेल नहीं है। सुनने वाले हो सकते हैं मगर गुनने वाले दुर्लभतम होते हैं,आपने ये बताते हुए कहा कि प्रायोगिक शिक्षा अपेक्षाकृत कठिन होती है। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर महाराज ने आगमायुक्त श्रमण परंपरा को विस्तार से जानकारी दी। उसी प्रासंगिक पूर्वाचार्यों की श्रृंखला में ये संपूर्ण संघ आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज का श्रमण संघ है। आपने बताया कि वृक्ष की ही शाखा, उपशाखा, डाली,पत्ते, फूल फल होते हैं। मेरा उपसंघ नहीं है मैं स्वयं संघस्थ हूं।
          नवोदित आचार्य श्री समयसागर महाराज ने कहा कि भक्त अपनी भक्ति करने के लिए स्वतंत्र है।वह अपने आराध्य का गुणगान करता है।मुक्त कंठ से प्रशंसा करता है। गुरुदेव ने समझाया कि भक्त के मुक्तकंठ से की गई प्रशंसा के प्रवाह में उनके प्रशंसा शब्दों से हर्षित होते ही विकास थम जायेगा।प्रशंसा के गान से अप्रभावित रहना चाहिए।औपचारिक पूजा भक्ति फलीभूत होती तो कबका ये संसार छूट गया होता। सुनो और गौर करो औपचारिक पूजा भक्ति अनंतकाल से की जा रही है,कल्याण नहीं हुआ।जब तक ह्रदयंगम नहीं किया तब तक कुछ होने वाला नहीं।  परिभ्रमण होता रहेगा यात्रा नहीं होगी। आपने यात्रा और परिभ्रमण का अंतर बताते हुये कहा कि यात्रा ऊर्ध्वगामी होती है जबकि संसार में बार बार चक्कर लगाते रहना परिभ्रमण है।देव शास्त्र गुरु को ह्रदयंगम कर यात्रा करना फलीभूत होगी।गुरुदेव ने बताया तन मन से की गई भक्ति ही सच्ची भक्ति है।ये मोक्षमार्ग की नर्सरी है। मोक्षमार्ग बहुत सूक्ष्म है। सत्य शील का अवलंबन लेने वाला ही अहिंसा का साधक है उपासक है। आचार्य महाराज के बताये मार्ग पर हम चलते रहे हैं आगे भी उसी मार्ग पर चले रहेगें।निजानंद रसलीन संवेदना के साथ उनके प्रशस्त मार्ग पर उनके प्रकाश में चलते रहें।
 *जीवन के आरंभ में ही आचार्य विद्यासागर के सागर में लीन हूं,निर्यापक श्री योगसागर महाराज*
 सत्ताइस वर्ष की युवावस्था में ही श्री विद्यासागरजी महाराज आचार्य पद का दायित्व निभा रहे थे। उनकी छप्पन वर्षीय साधना से इतने रत्न बाहर आये। उन्होंने ये पद किसी लोकेषणा से नहीं लिया था,उन्होंने कर्मफल मानकर पद स्वीकार किया और निभाया। पद को आपद मानते थे। योगसागर महाराज जी ने आचार्य महाराज की समाधि के समय को बताते हुये कहा कि गत आठ फरवरी को आचार्य महाराज ने दीर्घ प्रतिक्रमण किया और नौ फरवरी को दोपहर में हमें बताया कि मैं आचार्य पद के दायित्व से मुक्त हो चुका हूं।मुझे इस पद का कोई विकल्प नहीं मैं पूर्णतया मुक्त हूं,मेरी संकल्प पूर्वक सल्लेखना चल रही है।मेरी समाधि के उपरांत ये सार्वजनिक कर देना कि निर्यापक मुनि श्री समय सागर महाराज को संघ के आचार्य पद पर प्रतिष्ठित कर देना।निर्यापक संघ को विकसित, पल्लवित करें एक। शिक्षा दीक्षा धर्म का विस्तार करें।मेरा आशीर्वाद है। आपने आचार्य श्री विद्यासागर महाराज का संदेश सार्वजनिक करते हुये कहा कि उनकी आज्ञा का पालन करना ही मेरा कर्तव्य है। कर्तव्यों का पालन करना धर्म है। पद न तो दिया जाता न लिया जाता ये तो प्राप्त होता है। आथ अष्टमी है आचार्य महाराज की समाधि को दो माह हो गये।
*आचार्य श्री विद्यासागर महाराज दसवीं सदी के पश्चात प्रथम आचार्य हैं जिनकी वाणी आगम मानी गई, निर्यापक मुनि श्री सुधासागर महाराज*
 श्रमण संस्कृति अनादि कालीन है और ये परंपरा अनंतकाल से चल रही है।आदिब्रह्मा आदिनाथ भगवान ने संसार को जीने की कला सिखाई।उन्होंने अनंत उपकार किया है।तीर्थंकर की परंपरा में चौबीसवें तीर्थंकर महावीर भगवान ने हिंसा से दग्ध संसार को शांति और अहिंसा का पथ दिखाया, जियो और जीने दो का संदेश दिया। सुधासागर जी महाराज ने विरुदावली और परंपरा से अवगत कराते हुयेबताया की अंतिम सिद्ध इसी कुण्डलपुर की भूमि से श्रीधर केवली मुक्त हुये। बारहवीं तेरहवीं सदी की राजकीय परिस्थितियों में श्रमण चर्या पालन करना असंभव हो गया था और उत्तर भारत में परंपरा अविच्छिन्न होने लगी थी।उन्नीसवीं सदी में आचार्य श्री शांतिसागर महाराज ने भारत भ्रमण कर परंपरा के प्रवाह की बाधाएं और अवरोधों को दूर करने कि महत्वपूर्ण कार्य किया। आचार्य शिवसागर से आचार्य श्री ज्ञानसागर महाराज ने परंपरा को गति दी।आचार्य श्री ज्ञानसागर महाराज ने अपने शिष्य विद्यासागर महाराज के गुणों और क्षमता को परख लिया था और कहा था कि विद्यासागर जी आचार्य कुंदकुंद का साक्षात रूप हैं,ये गुरू की आज्ञा का पूर्ण पालन करते हैं।आचार्य ज्ञानसागर महाराज ने 22/11/1972 को विद्यासागर महाराज को आचार्य पद देकर श्रमण परंपरा को आगे बढ़ाया। सुधासागर महाराज जी ने कहा कि ये हम जैसों का सौभाग्य था कि उन्हें आचार्य पद प्राप्त हुआ,इससे हमारा उद्धार हो सके। युवा मुनियों की श्रृंखला आचार्य महाराज की देन है।हीन संहनन काल में उनकी चर्या साक्षात महावीर भगवान का रूप है।
 दसवीं सदी के पश्चात आचार्य महाराज एकमात्र और प्रथम हैं जिनकी वाणी आगम की वाणी मानी गई। उनकी समाधि की सूचना मिँते ही मैं किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया,लगा कि सूर्य अस्त हो गया,हमें कौन प्रकाश देगा।मैं निर्यापक ज्येष्ठ मुनि योगसागर महाराज के चरणों की बारंबार वंदना करता हूं जिन्होंने सैकड़ों किलोमीटर की यात्राकर आचार्य महाराज के चरणों में पहुंचे और उनके माध्यम से गुरू का संदेश हमें पूरे संघ को और पूरे संसार को मिल गया। पूरा संघ इस संदेश को गुरू की आज्ञा मानकर शिरोधार्य करते हैं। हमारे गुरु ने निर्यापक परंपरा को पुनर्जीवित किया।निर्यापक गणों के लिये जो संदेश है हम सभी पूरे अनुशासन से पालन करेगें।आचार्य पद आरोहण परंपरा का अंश है हम नवोदित जिन शासन आचार्य के निर्देशों का पालन करते रहेगें।
*आचार्य श्री विद्यासागर महाराज पूरे जीवन अनियतविहारी थे,अंत में भी अनियत यात्रा की, निर्यापक श्री समतासागर महाराज*
 आचार्य महाराज की समाधि का स्मरण करते हुये निर्यापक मुनि श्री समतासागर महाराज ने कहा कि अंतिम समय में आचार्य महाराज काया से अस्वस्थ और दुर्बल थे मगर मन से स्वस्थ और सशक्त थे।हम चार मुनि भी सौभाग्यशाली थे कि अंतिम समय में हमें उनका चरणसानिध्य और आशीर्वाद मिला। लोग कहते हैं आचार्य महाराज बिना बताए चले गये तो मैं उनसे पूंछता हूं वो कब बताकर यात्रा करते थे। आचार्य महाराज जीवन भर अनियतविहारी रहे और अंतिम काल में भी अनियत यात्रा की। सब उनसे समय मांगते थे,वे कहते मैं समय कहां से दूं,आज उन्होंने समयसागर जी को दे दिया जो समयसार,मूलाचार  सिखायेगें,समझायेगें। संघ पहले भी एकजुट था,आगे भी रहेगा।अभिनव आचार्य समयसागर जी के निर्देश में पूरा संघ चलता रहेगा।
कदम कदम बढ़ायेजा,गुरु के गीत गायेजा,
जिंदगी गुरुदेव की,गुरुदेव पर ही लुटायेजा।
निर्यापक मुनि अभयसागर महाराज ने बताया कि 131 मुनिदीक्षा,172 आर्यिका दीक्षा सहित 508 भव्य जीवों को मोक्षपथ पर अग्रसर किया।ये एक दुर्लभ संयोग है कि आचार्य महाराज के प्रथम शिष्य गृहस्थ के लघुभ्राता और अंतिम शिष्य गृहस्थ अवस्था के अग्रज हैं।पहले मुनि समयसागर जी और अंतिम  एक सौ इकतीसवें मुनि उत्कृष्ट सागर जी।
आचार्य पद पदारोहण समारोह का संचालन वरिष्ठ मुनि श्री प्रमाण सागर महाराज ने किया। मुनि श्री प्रणम्य सागर व मुनि श्री संभवसागर महाराज ने अपने वचन प्रगट किये।
        समारोह को संबोधित करते हुये मुख्य अतिथि आर एस एस के सर संघचालक मोहन भागवत ने आचार्य श्री विद्यासागर महाराज सरल शब्दों में भारत के विकास की राह बता देते थे।अध्यात्म का प्रणेता ही भारत की आत्मा को पहचानता है।आचार्य महाराज भारत की आत्मा और संस्कृति को जानते थे।सत्य के बल पर उन्होंने ने स्वयं को भारत से एकाकार कर लिया था।जो एकाकार हो जाता है उसके लिये कोई पराया नहीं होता। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री मोहन यादव ने भी आचार्य श्री के प्रति अपनी विनय प्रगट की।
 आरके मारवल के संचालक श्रावक श्रेष्ठी श्री अशोक पाटनी ने कहा कि आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज दिव्य पुरुष थे।चतुर्थकालीन चर्या करते हुये अनेक जीवों को मोक्षमार्ग पर अग्रसर किया।मंगलाचरण सुषमा दीदी,नीरज दीदी ने किया।
ज्येष्ठ निर्यापक मुनि श्री नियमसागर के मंत्रोच्चार के साथ आचार्य श्री के मुनिसंघ और निर्यापक श्रमणों ने लाखों श्रावकों के हर्षोन्नाद के साथ नवोदित आचार्य श्री समयसागर जी महाराज को आचार्य पद पर पदारूढ़ कराते हुये नवीन आसन पर विराजमान किया। इसके साथ ही आज यह की तिथि जैन इतिहास और परंपरा में स्वर्णांकित हो गई।
*वेदचन्द जैन,गौरेला(छ.ग.)*

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here