*गौरेला*। *वेदचन्द जैन*
सत्य मौन में भी मुखरित होता है, सत्य स्वयं में आधार है। इसको किसी आधार की कोई आवश्यकता ही नहीं, आधार की तलाश तो असत्य को होती है। सत्य भाषी निश्चिंत और निर्भय रहता है।
निर्यापक श्रमण मुनि पुंगव श्री सुधा सागर महाराज ने मध्यप्रदेश के गुना जिला स्थित नगर राघोगढ़ में श्रावकों की जिज्ञासा का समाधान करते हुये कहा कि सत्य पथगामी को अपना कथन प्रमाणित करने के लिये किसी स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं होती।
असत्य निराधार होता है इसीलिए झूठ को बार बोलकर सत्य सा दिखाने का,बताने का ,जताने का यत्न किया जाता है। असत्य भाषी अपने कथन को थोपने का प्रयत्न करता है। असत्य भाषी चिंतित और सतर्क रहता है। उसके अन्तर्मन में ये चिंता बनी रहती है कि कहीं मेरा भेद न खुल जाये। इसीलिए वो सतर्क सावधान रहता है और ये भी याद रखना है कि किसी विषय में पूर्व में क्या कहा था और अब कहीं पूर्व व्यक्त भाव से इतर भाव व्यक्त न हो जाये। इसीलिए झूठा चिंताग्रस्त रहता है।
मुनि पुंगव निर्यापक श्रमण श्री सुधा सागर महाराज ने आगे कहा कि सत्य भाषी निश्चिंत निर्भीक रहता है। सत्य स्वयं में आधार है उसे न तो किसी प्रमाण की आवश्यकता है न किसी प्रमाण पत्र की, सच्चाई स्वयं प्रमाण है।सत्य भाषी को किसी प्रकार का स्पष्टीकरण नहीं देना चाहिए।मौन में भी सत्य मुखरित होता है , इसीलिए कहा जाता है कि सांच को आंच नहीं।
आपने आगम वर्णित सेठ सुदर्शन के दृष्टांत के माध्यम से बताया कि झूठे आरोप लगाकर सेठ सुदर्शन को राजा के दरबार में बंदी बनाकर लाया गया। दंड देने से पूर्व राजा ने सेठ सुदर्शन को अपना पक्ष रखने का अवसर देते हुए कहा कि इन आरोपों पर अपनी सफाई दे सकते हो।सेठ सुदर्शन जानते थे कि आरोप झूठे और मिथ्या हैं किंतु मेरा सच ये स्वीकार नहीं करेंगे अतः उन्होंने मौन धारण कर लिया।राजा ने मृत्यु दंड दिया। सत्य का बल था कि जब सुदर्शन सेठ को फंदे पर लटकाया गया तो वो गले का फंदा सिंहासन बन गया। सुदर्शन सेठ के मौन से भी सत्य मुखरित हो गया। इसीलिए सच्चाई को किसी स्पष्टीकरण की कभी आवश्यकता नहीं होती।
*वेदचन्द जैन*