सरस्वती मंदिर में 67 वर्षों से रखी महावीर भगवान की हुई प्रतिष्ठा

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ज्ञानकल्याणक दिवस पर एक और अतिशय सिद्धक्षेत्र राजगिरी में
ब्र. राकेश भैया मड़ावरा का हुआ संघ प्रवेश
राजगृही। राजगिरी (राजगृह) एक ऐसी पावन धरा है जहाँ  जैन धर्म के 20 वें तीर्थंकर भगवान मुनिसुव्रतनाथ के गर्भ, जन्म, तप और केवलज्ञान चार कल्याणक सम्पन्न हुए, जहाँ पर मनोरम पंच पहाड़ी स्थित हैं जिस पर 24 तीर्थकर में से 23 तीर्थंकर भगवान समवशरण सहित आकर विराजमान हुए, अंतिम तीर्थंकर वर्तमान शासन नायक भगवान महावीर स्वामी की प्रथम देशना भी राजगृही के विपुलान्चल पर्वत पर ही खिरी थी। समय-समय पर यहाँ अनेक अतिशय भक्तों ने देखे हैं, इसी श्रृंखला में वैशाख शुक्ला दशमी  को  भगवान महावीर स्वामी के केवलज्ञान कल्याणक दिन एक और अतिशय श्रृद्धालु भक्तों को देखने को मिला कि जब प.पू. मुनि श्री सुप्रभसागर जी महाराज (ससंघ)  तीन दिन के प्रवास के दौरान पंचपहाड़ी की वंदना करके आगे विहार कर रहे थे तभी  मुनिश्री, प.पू. वात्सल्य रत्नाकर आचार्य श्री विमलसागरजी महाराज की प्रेरणा से निर्मित “सरस्वती भवन “के अवलोकन करने पहुंचे, जहाँ समिति द्वारा 32 हजार से भी  अधिक प्राचीन ग्रंथों का संग्रह किया गया है, उसको देखते हुए मुनिश्री की दृष्टि वहाँ विराजित एक भगवान महावीर स्वामी के जिनबिम्ब पर पड़ी जो कि लगभग 67 वर्ष पूर्व प्रतिष्ठित किये गये थे लेकिन किसी कारणवश विगत कई वर्षों से सरस्वती मंदिर में रख दिये थे।  मुनिश्री ने सरस्वती मंदिर के प्रबंध से बात की  कि यदि आप प्रतिमा का शुद्धीकरण करते हैं तो हम अभी आगे विहार नहीं करेंगे क्योंकि प्रतिमा पूर्णता योग्य है और इसकी पूजा-अर्चना मंदिर जी में होना चाहिए, उन्होंने भी ट्रस्ट कमेटी के मानद मंत्री श्री पराग‌ जैन जी से बात की और सहमति प्राप्त होने पर लघुपंचकल्याणक की भूमिका बन गई। यही बड़ा अतिशय रहा कि जो प्रतिमा वर्षों से उपेक्षित थी जिस पर धूल चढ़ रही थी, वह मुनिश्री के निमित्त से पुनः पूज्यता को प्राप्त हो गई, एक और अतिशय यह रहा कि एक काले पाषाण के 7 इंच के जिनबिम्ब (महावीर स्वामी की ही प्रतिमा) जो कि पुजारी द्वारा प्रक्षाल करते समय वेदी से नीचे गिर जाने के कारण लोगों ने उसे खण्डित मानकर अन्यत्र रख दिया था, मुनिश्री ने उसे भी देखा और सभी प्रकार से निरीक्षण / परीक्षण करके उसका भी शुद्धीकरण लघुपंचकल्याणक के रूप में करके परमात्मा के संस्कार देकर पूज्य बना दिया।
प.पू. श्रमणाचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के मंगल शुभाशीष से कुछ ही घंटों में भूमिका बनी और प.पू.मुनि श्री सुप्रभसागर एवं प.पू. मुनि श्री प्रणतसागर जी महाराज ने एक ही दिन में दोनों प्रतिमाओं के लघुपंचकल्याणक करते हुए युगल जिनबिम्व को भगवत्ता की संज्ञा प्रदान कर दी।
राकेश भैया जी, मड़ावरा (उ.प्र.) का हुआ संघ प्रवेश – प.पू. मुनि श्री सुप्रभसागर जी महाराज ससंघ अपने गुरु की आज्ञा के एवं आशीर्वाद लेकर श्री सम्मेद शिखर एवं पंचतीर्थ की वंदना हेतु उज्जैन (म.प्र.) से पिछला वर्षायोग करके मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से पद विहार करते हुए लगभग 1500 किमी. की यात्रा के साथ श्री सिद्धक्षेत्र राजगृही पहुँचे, जहाँ पंच पहाडी की वंदना के उपरांत लघुपंचकल्याणक के समय ब्र. राकेश भैया, मडावरा (उ.प्र.) के बार-बार निवेदन पर गुरु के आशीर्वाद से आज उन्हें भी संघ प्रवेश की स्वीकृति एवं वस्त्र परिवर्तन की स्वीकृति प्रदान कर दी। मुनि श्री का वर्ष 2019 का वर्षायोग मड़ावरा (उ.प्र.) की पुण्य धरा पर हुआ था तभी से राकेश भैया जी ने मोक्षमार्ग पर बढ़ने की भावना प्रकट की थी लेकिन कुछ पारिवारिक जिम्मेदारियां होने के कारण वह आगे नहीं बढ़ पा रहे थे। अब सभी पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुक्त होकर मुनिश्री से उन्होंने निवेदन किया और मुनि ने भी उनकी भावनाओं को ध्यान में रखकर उन्हें आगे बढ़ने का सहर्ष आशीर्वाद प्रदान किया।
इस अवसर पर म.प्र., बिहार आदि अनेक प्रांतों के श्रावकगण उपस्थित रहे, जिन्होंने लघु पंचकल्याणक एवं भैयाजी के संघ प्रवेश जैसे महान कार्यों की अनुमोदना कर पुण्यार्जन किया।
-डॉ सुनील जैन संचय, ललितपुर

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