संयम साधना के बिना धार्मिक अनुष्ठानों के सार्थक परिणाम नहीं मिलते -मुनिश्री विलोकसागर

0
4

संयम साधना के बिना धार्मिक अनुष्ठानों के सार्थक परिणाम नहीं मिलते -मुनिश्री विलोकसागर
सिद्धचक्र विधान के प्रथम दिन आठ अर्घ्य समर्पित

मुरैना (मनोज जैन नायक) श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान के शुभारंभ पर बड़े जैन मंदिर में निर्यापक श्रमण मुनिश्री विलोकसागरजी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जैन दर्शन में संयम साधना को विशेष महत्व दिया गया है । संयमी व्यक्ति प्रत्येक स्थान पर अपने आचरण के द्वारा सम्मान प्राप्त करता है, वहीं दूसरी ओर असंयमी व्यक्ति अपमानित होता है । किसी भी प्रकार की धार्मिक क्रिया करने अथवा धार्मिक अनुष्ठान करते समय संयम धारण करना अति आवश्यक है । तभी आपको इस अनुष्ठान के सार्थक परिणाम प्राप्त होगे । संयम का अर्थ है आत्म-नियंत्रण, जिसमें मन और इंद्रियों को वश में करके अपनी भावनाओं और इच्छाओं पर नियंत्रण रखा जाता है। यह केवल बाहरी परहेज नहीं है, बल्कि गुस्से जैसी भावनाओं को नियंत्रित करने और सही और गलत के बीच अंतर करने की क्षमता है, जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों के लिए आवश्यक है। संयम से अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखने और अपनी इच्छाओं को वश में करने की क्षमता में वृद्धि होती है । संयम व्यक्ति को महान सफलता प्राप्त करने में मदद करता है ।संयम से व्यक्ति को शांति और खुशी मिलती है। संयम व्यक्ति को जीवन की समस्याओं का सामना करने के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत बनाता है। संयम का अर्थ है आत्म-नियंत्रण, धैर्य, और इंद्रियों पर नियंत्रण रखना । यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ व्यक्ति इच्छाओं और भावनाओं को नियंत्रित करता है और जल्दबाजी या आवेग को त्यागता है। संयम साधना द्वारा व्यक्ति आत्म-नियंत्रण करते हुए अच्छी आदतें अपनाता है और अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करता है। संयम धैर्य और प्रयास का प्रतीक है, और अक्सर नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षाओं से जुड़ा होता है। बिना संयम धारण किए इस संसार सागर से मुक्ति पाना संभव नहीं हैं। मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ने के लिए संयम धारण करना, उसे अंगीकार करना अति आवश्यक है, तभी आप जन्म मृत्य के चक्रव्यूह से मुक्त होकर सिद्धत्व को प्राप्त कर पाएंगे ।
विधान के प्रथम दिन ध्वजारोहण के साथ निकली घटयात्रा
मंगलाचरण, ध्वजारोहण और घटयात्रा के साथ आठ दिवसीय श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान एवं विश्व शांति महायज्ञ महोत्सव का शुभारंभ हुआ । सर्वप्रथम पुण्यार्जक परिवार कैलाशचंद राकेशकुमार जैन पूणारावत परिवार के निज निवास से गाजेबाजे के साथ पूजन द्रव्य सामग्री को बड़े जैन मंदिरजी लाया गया । चांदी के हार मुकुट मणिमाला एवं पूजन के विशेष वस्त्रों से सुसज्जित इन्द्रों ने विधिविधान पूर्वक मंत्रोच्चारण के साथ विधान की सभी प्रारंभिक क्रियाओं को सम्पन्न किया । सौभाग्यवती महिलाओं द्वारा कलशों में लाए गए शुद्ध जल से भूमि, मंडप, पंडाल एवं अन्य वस्तुओं की शुद्धि की गई ।
भगवान पार्श्वनाथ को श्रीफल अर्पित कर अनुष्ठान की ली स्वीकृति
जैन विद्वत प्रतिष्ठाचार्य पंडित राजेंद्र शास्त्री मंगरोनी के नेतृत्व में पुण्यार्जक परिवार ने बड़े जैन मंदिरजी के मूलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान के श्री चरणों में श्री सिद्धचक्र विधान की स्वीकृति लेते हुए निर्विघ्न सम्पन्नता हेतु श्रीफल अर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त किया । तत्पश्चात निर्यापक श्रमण मुनिश्री विलोकसागरजी एवं मुनिश्री विबोधसागरजी महाराज के श्री चरणों में श्रीफल अर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त किया । आचार्य निमंत्रण के तहत प्रतिष्ठाचार्य पंडित राजेंद्र शास्त्री मंगरोनी को श्रीफल, अंगवस्त्र, मणिमाला देकर आमंत्रित किया गया ।
अनुष्ठान के प्रथम दिवस आठ अर्घ्य समर्पित किए
युगल मुनिराज मुनिश्री विलोकसागरजी एवं मुनिश्री विबोधसागरजी महाराज के पावन सान्निध्य एवं प्रतिष्ठाचार्य पंडित राजेंद्र शास्त्री मंगरोनी के आचार्यत्व में सम्पन्न होने जा रहे आठ दिवसीय अनुष्ठान के प्रथम दिन प्रातःकालीन बेला में श्री जिनेन्द्र प्रभु के जलाभिषेक, शांतिधारा, नित्यमह पूजन के पश्चात विधान की प्रारंभिक क्रियाएं की गई । श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान की प्रथम पूजन के अंतर्गत सिद्धों की आराधना करते हुए आठ अर्घ्य समर्पित किए गए। कल सिद्धों की आराधना, भक्ति पूजन करते हुए सोलह और बत्तीस कुल 48 अर्घ्य समर्पित किए जाएंगे ।
भजन गायक एवं संगीतकार नीलेश जैन एण्ड पार्टी भोपाल ने अपनी संगीतमय स्वर लहरी से सभी को मंत्रमुग्ध किया ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here