संयम का उपकरण पिच्छी -कमंडल दिगम्बर जैन संतों की पहचान है -मुनिश्री विलोकसागर

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संयम का उपकरण पिच्छी -कमंडल दिगम्बर जैन संतों की पहचान है -मुनिश्री विलोकसागर
26 अक्टूबर को होगा भव्य पिच्छिका परिवर्तन समारोह

मुरैना (मनोज जैन नायक) जैन संत जैनेश्वरी दिगंबरी मुनि दीक्षा लेने पर सभी सांसारिक वस्तुओं, सुख सुविधाओं, वाहन, कूलर पंखा आदि का आजीवन त्याग कर देते हैं। वे केवल अपने पास मोर पंखों से बनी पिच्छिका, कमंडल और शास्त्र, जिनवाणी ही रखते हैं, और यहीं दिगम्बर जैन साधु साध्वियों की पहचान भी है । दिगम्बर साधु अपने पास केवल ज्ञान उपकरण के रूप में शास्त्र, शौच उपकरण के रूप में कमंडल व संयम उपकरण के रूप में पिच्छिका को ही रख सकते है। शास्त्र, साधुओं के ज्ञान को बढ़ाने में सहायक होते है, वहीं शौच आदि शरीर शुद्धि क्रिया के लिए कमंडल का उपयोग किया जाता है। दिगम्बर श्रमण (साधु) संयमी जीवन शैली व अहिंसा महाव्रत के निर्दोष पालन करने के लिए मयूर पिच्छिका को हमेशा अपने साथ रखते है। मयूर पिच्छिका का इतना महत्व है कि साधुजन आवश्यकता न होने पर बिना कमंडल व शास्त्र के तो अपनी अन्य क्रियाऐं कर सकते है, परंतु बिना पिच्छिका के सात कदम भी नही चल सकते है। दिगम्बर जैन श्रमण संयम उपकरण पिच्छिका का उपयोग अपनी दिनचर्या में प्रतिपल करते है। उठते बैठते, विश्राम करते, चलते फिरते, आहार आदि समस्त क्रियाओं में | निरंतर परिमार्जन के लिए पिच्छिका सहायक होती है। अतः जब मयूर पंख की कोमलता कम हो जाती है अर्थात मयूर पंख का स्पर्श करने पर हल्के से कठोर लगने लगते है तब ही पिच्छिका को परिवर्तित किया जाता है। अधिकांशतः पिच्छिका परिवर्तन वर्षायोग समापन पर ही किए जाते हैं। उक्त बात मुनिश्री विलोकसागरजी महाराज ने अपने भक्तों को संबोधित करते हुए कही
*पिच्छिका परिवर्तन के संदर्भ में मुनिश्री विलोकसागरजी महाराज ने बताया कि दिगंबर जैन साधुओं का पिच्छिका परिवर्तन समारोह एक पवित्र धार्मिक अनुष्ठान है, जिसमें मुनिगण अपनी पुरानी पिच्छिका को बदलकर नई पिच्छिका ग्रहण करते हैं। यह समारोह संयम, त्याग और अहिंसा का प्रतीक है और इसे आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का एक हिस्सा माना जाता है। यह आम तौर पर वर्षा ऋतु के बाद होता है, जब मुनि एक ही स्थान पर रुककर साधना करने के पश्चात पुनः पद बिहार शुरू करते हैं।पिच्छिका को संयम का उपकरण कहा जाता है । संयम और अहिंसा का प्रतीक पिच्छी संयम और करुणा का एक उपकरण है, जिसका उपयोग जैन साधु संत सूक्ष्म जीवों को नुकसान पहुँचाए बिना रास्ते और अपने आस-पास की वस्तुओं को साफ करने के लिए करते हैं।
क्या होती है पिच्छिका
मोर पंखों से निर्मित पिच्छिका का उपयोग जैन संत अहिंसा धर्म के पालन के लिए करते हैं। मयूर पंख बहुत कोमल होते हैं, जो सूक्ष्य जीवों को नुकसान पहुँचाए बिना उन्हें हटाने अथवा दूर करने में मदद करते हैं। यह देखने में सुंदर और वजन में हल्के होते है, जिससे मुनिगण इसका उपयोग सहज और सरलता से कर लेते हैं। मोर पंखों से बनी पिच्छिका कोमल होती है, यही कारण है कि इससे किसी प्रकार के जीवों को नुकसान नहीं होता । यह पसीना और धूल को ग्रहण नहीं करता है, इसकी अहिंसा के पालन में एक महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।
पिच्छिका परिवर्तन समारोह 26 अक्टूबर को होगा ।
दिगम्बर जैनाचार्यश्री आर्जवसागरजी महाराज के परम प्रभावक शिष्य जैन संत युगल मुनिराज मुनिश्री विलोकसागरजी महाराज एवं मुनिश्री विबोधसागरजी महाराज का वर्षायोग विभिन्न धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक आयोजनों के साथ चल रहा है । रविवार 26 अक्टूबर को भव्य पिच्छिका परिवर्तन समारोह के पश्चात वर्षायोग का समापन होगा ।
पिच्छिका परिवर्तन समारोह के पावन अवसर पर रविवार 26 अक्टूबर को प्रातः 07 बजे श्री जिनेन्द्र प्रभु का अभिषेक, शांतिधारा एवं अष्टदृव्य से पूजन किया जाएगा । प्रातः 07.30 बजे से श्री भक्तामर महामंडल विधान एवं युगल मुनिराजों के प्रवचन होंगे । दोपहर 01 बजे से पिच्छिका परिवर्तन समारोह होगा । आज के दिन ही वर्षायोग कलशों का वितरण भी किया जाएगा । 26/27 अक्टूबर को हो सकता है पद विहार
चातुर्मास के चार माह पूर्ण होने पर युगल मुनिराज श्री सिद्ध परमेष्ठि की भक्तियां एवं स्तुति कर चातुर्मास निष्ठापन करेंगे । 26 अक्टूबर को पिच्छिका परिवर्तन के पश्चात शाम को अथवा 27 अक्टूबर को पूज्य युगल मुनिराजों का मंगल पद बिहार मुरैना से पोरसा के लिए हो सकता है । पोरसा में पूज्य युगल मुनिराजों के पावन सान्निध्य में आठ दिवसीय श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान एवं विश्व शांति महायज्ञ 29 अक्टूबर से 06 नवंबर तक होगा ।

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