* संयम, ज्ञान और सेवा की प्रतिमूर्ति ग्याणमतीजी महावीर दीपचंद ठोले,छत्रपतीसंभाजीनगर महामंत्री तीर्थ संरक्षिणी महासभा (महा) 7588044495
“न ज्ञानात् सदृशं पवित्रमिह विद्यते।”
जैसे ज्ञान से श्रेष्ठ इस जगत में और कुछ पवित्र नहीं है।
वैसेही ज्ञानमती माताजी ज्ञान, तप और सेवा – तीनों की धारा हैं। जिन्होने जैन धर्म को ही नहीं संपूर्ण मानवता को दिशा दी है। जिनका नाम महान साध्वीयो में सर्वोच्च स्थानपर श्रद्धा से लिया जाता है। शरद पूर्णिमा 22 अक्टूबर 1934 को उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिल्हे के टिकैतनगर में मैनादेवी का जन्म हुआ। यह एक संजोग ही था कि आपका अवतरण इस धरती पर शरद पूर्णिमा को हुआ है। जिस प्रकार आकाश मे पूर्णिमा का चांद अपने निर्मल जोत्सना बिखेरता है वैसे ही माताजी शरद पुर्णिमा को प्रणम्यकर अपने अवतरण दिवस को शाश्वत साधना चंद्र की चंद्रिका से उज्ज्वल एवं प्रांजल बना कर प्राणी मात्र को अमृतमयी संजीवनी प्रदान कर शीतलता प्रदान कर रही है और मानवता की मसीहा बन गई है । आपका आचरण बचपनसेही धार्मिक प्रवृतियो की ओर होनेसे आपने
1952 में संयमपथ पर प्रदार्पण कर 1956 मे आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज से आर्यिका दीक्षा ली और ज्ञानमती बनगयी।
शायर ने क्या खूब कहा है –
“इंसान वही है जो हालात से टकराए,
अँधेरों में भी जो उजालों की लौ जगाए।”
ज्ञानमती माताजी ने कठिन तप और गहन अध्ययन से यही लौ जगाई।आपका लेखन अत्यंत गहन और शोधपरक है। आप ग्यान की भण्डार है।आपकी अविरत चलने वाली कलमसे 500 से अधिक ग्रंथो का सृजन हुआ है।
आपकी विद्वत्ता और संगठन क्षमता देखकर समाज ने उन्हें गणिनी की उपाधि दी ।
आपका “जम्बूद्वीप प्रज्ञान” जैन भूगोल का अनुपम ग्रंथ है।
आपकी सबसे महान देन हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप तीर्थ का निर्माण।आगमों में वर्णित ब्रह्मांडीय संरचना को आपने प्रत्यक्ष रूप में स्थापित किया।आज यह तीर्थ केवल आस्था ही नहीं, बल्कि विज्ञान और दर्शन का जीवंत विश्वविद्यालयहै। आपकी प्रेरणा एवं मार्गदर्शन से अनेक प्राचीन तीर्थो का, तीर्थंकरों की जन्म भूमियों का जीर्णोध्दार हुआ है। जो विश्व के मानस पटल पर जैन धर्म के समृद्धि शाली इतिहास एवं संस्कृति को युगो युगोतक स्वर्णाकित रखेगा। आपकी प्रेरणा से एक ही पाषाण में मान्गीतुन्गी के पहाड़ में ऋषभदेव भगवान की अद्भुत, अनुठी ,अद्वितीय मूर्ति अंकित हुई है जो सारे विश्व में शांति का संदेश दे रही है।
“यत्र धर्मःतत्र जयः।”
(जहाँ धर्म है, वहीं विजय है।)
आपका परिवार साक्षात रत्नो की खान है। जिसमें परिवार के अनेक सदस्य सांसारिक प्रपंचों को छोड़कर मुक्ति मार्ग पर चल रहे हैं। इतिहास में ऐसा अनोखा उदाहरण बिरले ही दिखाई देता है। आपकी छोटी बहन प्रज्ञाश्रमणी चंदनामती माताजी, छोटे भ्राता पीठाधिश रविंद्र कीर्ति जी आपके पदचिन्हो पर चलकर जैन धर्म की पताका को सारे विश्व में फहरा रहे हैं।
माताजी का जीवन सादगी, तप और अपरिग्रह का जीता-जागता उदाहरण है।वे कठोर संयम अहिंसा और अपरिग्रह की आदर्शोपर चलकर समाज को प्रेरित करती हैं ।उनकी सादगी और करुणा उन्हें और भी महान बनाती है।
उन्होंने बालकों के लिए संस्कार शिविर, महिलाओं के लिए प्रशिक्षण शिविर और युवाओं के लिए प्रेरणा के कार्यक्रम शुरू किए।
उनकी सोच स्पष्ट है –“धर्म केवल पूजा और व्रत तक सीमित नहीं,
बल्कि जीवन को दिशा देने वाला महान पथ है।” –”जज़्बा हो अगर सच्चा तो मुक़द्दर भी झुक जाता है,
शमां हो अगर रौशन तो परवाना खुद चला आता है।”
ज्ञानमती माताजी की रौशन शमां ने समाज को सदैव आलोकित किया है। जैन समाज ही नही अन्य धार्मिक, सांस्कृतिक संस्थाओं ने माता जी को अनेक सम्मानों से अलंकृत किया है ।वह भारतीय नारी शक्ति और आध्यात्मिक चेतना की जीवन्त प्रतिक है।
गणिनी माताजी का जीवन हमें सिखाता है कि—सच्चा वैभव तप, ज्ञान और सेवा में है, न कि भोग-विलास में।हस्तिनापुर का जम्बूद्वीप उनकी दूरदृष्टि का जीता-जागता प्रमाण है,और आने वाली पीढ़ियाँ उनसे सदैव प्रेरणा लेती रहेंगी। वे समाज सेवा की अनुपम प्रेरणा स्रोत है।
आपके 91वे जन्मोत्सव के अवसर पर मैं भावना भाता हूं कि आपका स्वास्थ्य अच्छा रहे। आप स्त्री पर्याय को भेद कर शीघ्र ही मुक्ति रूपी लक्ष्मी को वरन कर अगले भव में लोकांतिक देव बनकर जैन धर्म की पताका अविरत फहराती रहे और हम आपके। पदानुरागी एवं गुणानुरागी बने।