गूंज रहा है दुनिया में भारत का नगाड़ा,
चमक रहा आसमान में देश का शिवारा।
आजादी के दिन आओ मिलके करें दुआ,
कि बुलंदियों पर लहराता रहे तिरंगा हमारा ॥
इस साल 26 जनवरी को हम अपना 75वां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहे है। तकरीबन 200 सालों के बाद भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ। लेकिन 15 अगस्त से भी ज्यादा धूमधाम से 26 जनवरी मनाई जाती है। तो मन में प्रश्न उठता है ऐसा क्यूँ ? क्योंकि आजादी के बाद भी देश को एक ऐसे संविधान की जरूरत थी जिससे देश को न सिर्फ मजबूत बनाया जा सके बल्कि देश को तरक्की के रास्ते पर भी ले जाया जा सके,भले ही हम 15 अगस्त 1947 को वैधानिक तौर से आजाद हुए हो, मगर संवैधानिक तौर से तो 26 जनवरी 1950 को ही आजाद हुए। हमारा संविधान विश्व का सबसे बड़ा संविधान माना जाता है, संविधान सभा कि प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर ने 2 वर्ष, 11 माह और 18 दिनों के अथक परिश्रम के बाद 26 नवम्बर 1949 को दुनिया का सबसे बड़ा संविधान तैयार कर राष्ट्र को समर्पित किया था। लेकिन काँग्रेस द्वारा 26 जनवरी 1930 में मनाये गये स्वतंत्रता दिवस की याद को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए इसे तैयार होने के बाद 2 माह बाद 26 जनवरी 1950 को लागू कर दिया गया।
यह भारतीय संविधान हमें विश्व एकता का संदेश देता है। जिसकी प्रस्तावना का वाक्य ही हम भारत के लोग…. से शुरू होता है, जिसे जनता के दम पर ही गणतंत्र या रिपब्लिक डे कहा जाता है। इस दिन राजधानी दिल्ली में आकर्षक परेड़ होती है। पूरे राष्ट्र की बहुलवादी लोकतांत्रिक संस्कृति की झांकी भी राजपथ पर जुलूस की शक्ल में दिखती है। देश की सैन्य शक्ति का भी भव्य प्रदर्शन होता है। यह भी एकता का ही प्रतीक है। आजादी के आंदोलन के मूल्यों-संस्कारों के आधुनिक संदर्भ और परिवेश बदल रहे हैं। इसे इस रूप में भी समझा जा सकता है कि ये बापू का जमाना नहीं है जो किसी आश्रम से भी चंद पंक्तियां लिखकर पूरे देश को एकजुट कर सकते थे। इस बदलते परिदृश्य में जब युवाओं की लगभग आधी से ज्यादा आबादी वाला युवा भारत आने वाले समय में महाशक्ति बनने को तैयार हैं, हमें अपनी राष्ट्रीय धरोहर, जड़ों से भटकने की प्रवृत्ति से बचना होगा, क्योंकि यही लोकतांत्रिक-बहुलवादी संस्कृति ही हमारी राष्ट्रीय पूंजी है, चेतना है। कश्मीर से कन्याकुमारी और गुजरात से आसाम तक भले ही आज 28 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हों, लेकिन हमें हमेशा याद रखना है कि हिंदुस्तान के इस गुलदस्ते में डेढ़ हजार से ज्यादा भाषाएं और बोलियां हैं, लगभग साढ़े छह हजार जातियां हैं, ढाई दर्जन प्रमुख त्यौहार हैं- और इन सभी विभिन्नताओं के बीच हम एक हैं। यही अनेकता में एकता हमारी ताकत है।
इन विभिन्नताओं के बीच हमारी एकजुटता जहां हमारी पूंजी है, वहीं ये विभिन्नताएं हमारी खूबसूरती । यही हमारे हिंदुस्तानी गुलदस्ते के हर फूल की अलग महक और विशिष्ट पहचान भी। आज जरूरत है बेहतर समन्वय और समग्र दृष्टिबोध की। एक खास बात यह भी है कि हमारे सभी सामाजिक त्यौहारों का एक सांस्कृतिक पौराणिक संदर्भ है जो कहीं न कहीं व्यापक संदर्भों में आधुनिकता से भी जुड़ता है। ठीक इसी तरह हमारी आधुनिक लोकतांत्रिक गणतंत्रीय सोच को भी भारत की हजारों साल की मध्यमार्गी जनतंत्रीय दृष्टि से जोड़ने की जरूरत है।
जिस तरह 26 जनवरी को हमारे देश का संविधान लागू हुआ ठीक उसी प्रकार आज के वर्ष सरकार को देश में ये नियम लागू करना चाहिए कि बेजुबान पशु-पक्षियों को भी स्वतंत्रता का अधिकार देना चाहिए।मुझे वजह ना दो हिन्दु या मुसलमान होने की
मुझे तो सिर्फ तालीम चाहिए एक इंसान होने की।
देशभक्तों से ही देश की शान है,
देशभक्तों से ही देश की मान है।
हम उस देश के फूल है बंधुओं, जिस देश का नाम हिंदुस्तान है|||
राजाबाबु गोधा जैन गजट संवाददाता राजस्थान