संतों की वाणी समता भाव रखती है – मुनिश्री प्रश्मानन्द

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आज से होगी 26 दिवसीय अरिहंतों की आराधना

मुरैना (मनोज जैन नायक) जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में अपनी वाणी पर अंकुश लगा लिया, समझो उसका मानव जीवन सार्थक हो गया । मानव जीवन में वाणी का अत्यधिक महत्व है । इस वाणी के द्वारा ही हम मित्र और दुश्मन बना लेते हैं । मनुष्य को सदैव कम बोलना चाहिए, मीठा बोलना चाहिए, सोच समझकर बोलना चाहिए । कठोर बचन, कर्कश बचन बोलने से सामने वाले व्यक्ति को तो दुख पहुंचता ही है साथ ही कठोर बचन बोलने वाले का मन भी अशांत हो जाता है । वर्तमान में मानव ने भगवान महावीर के जियो और जीने दो के संदेश को भुला दिया है। न वह स्वयं शांति से जीता है, न दूसरों को शांति से जीने देता है। हमें सदैव समता भाव रखना चाहिए । संत लोग हमेशा समता भाव रखते हैं, वे सदैव मीठा बोलते हैं, प्रिय वचन बोलते हैं, दुश्मन हो या प्रियवर हो सभी को एकसा आशीर्वाद प्रदान करते हैं । उक्त उद्गार युगल जैन संत प्रश्मानंद जी महाराज ने श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन पंचायती बड़ा मंदिर में धर्म सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए ।
ज्ञातव्य हो कि नगर के बड़ा जैन मंदिर में अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी आचार्य श्री वसुनंदी जी महाराज के परम शिष्य युगल मुनिश्री शिवानंद जी महाराज एवम मुनिश्री प्रश्मानंद जी महाराज का वर्षायोग चल रहा है । पूज्य युगल मुनिराजों के पावन सान्निध्य में 07 अगस्त से 01 सितम्बर तक निरंतर श्री अरिहंत परिमेष्ठि की आराधना की जायेगी । जैन धर्म में 24 तीर्थंकर होते हैं, प्रतिदिन एक एक तीर्थंकर का विधान होगा । 24 तीर्थंकर विधान के शुभारंभ में बुधवार 07 अगस्त को प्रातः अभिषेक शांतिधारा के पश्चात पात्र शुद्धि, देव आज्ञा, गुरु आज्ञा, आचार्य निमंत्रण, मंडप शुद्धि आदि कार्यक्रम होगे । गुरुवार 08 अगस्त से 31 अगस्त तक प्रतिदिन प्रातः 06.45 से 08.00 बजे तक चौबीस तीर्थंकरों के विधान होगें । रविवार 01 अगस्त को विश्व शांति के कामना के साथ हवन होगा एवम चोबीस तीर्थंकर विधान का समापन होगा । विधान की सभी धार्मिक क्रियाएं ब्रह्मचारी नवीन भैयाजी जबलपुर संपन्न कराएंगे ।

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