संतों का आशीर्वाद ग्रहण करने के लिये चाहिये संकल्प का पात्र – भावविंगी संत जीवन निर्माण की आधार शिला, संकल्प – आचार्य श्री विमर्श सागर जी

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सोनल जैन की रिपोर्ट

एक व्यक्ति किसी संत के पास पहुंचा और निवेदन किया – भगवन् ऐसा – आशीर्वाद दीजिये जिससे मेरा जीवन कृतार्थ हो सके। संत ने कहा मैं तुझे अवश्य आशीर्वाद दूंगा, लेकिन मेरे आशीर्वाद को ग्रहण करने लिये पात्र लेकर आ। व्यक्ति बोला संत जी मैं कुछ समझा नहीं, आखिर वो कौन सा पात्र होता है जिसमें आपका आशीर्वाद ग्रहण किया जाता है। संत जी ने कहा- मेरा आशीर्वाद ग्रहण करने के लिये संकल्प का पात्र चाहिये। हमारे पास यदि संकल्प का पात्र न हो तो गुरु का भाशीष हमारे पास – भाकर भी हमा पास ठहर नहीं सन्मता । उक्त उद्‌गार कृपणानगर जेन मंदिर में चातुर्मासिक प्रवास कर रहे, जिनागम पंच प्रवर्तक, आदर्श महाकवि भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री 108 विमर्श सागर जी महामुनिरान ने धर्मसमा को संबोधित करते हुये व्यक्त किये।

आचार्य श्री ने कहा- एक संकल्प ही काफी है जीवन भी बदलने के लिये । जीवन में जब तक संकल्प नहीं आता तब तक विकल्प दूर नहीं होते। जीवन निर्माण की और आत्म निर्माण भी आधार शिला है. संकल्प अगर संकल्प उन्मार्ग का है तो भाग भी सारी यात्रा, आगे रखा जनि वाला हर भदम हमारा उन्मार्ण पर होगा और यदि संकल्प सन्मार्ग क्या है तो हमारी आगे की सारी यात्रा हमारा हर कदम सन्मार्ग पर होगा। जीवन में संकल्प की महत्त्वपूर्ण भूमिका हुआ करती है। तीन प्रकार के संकल्पों में ही संसार का जीवन चक्र अनादि से घूमता रहा है।-
① शुभ संकल्प – पुण्य वर्धक भगवान जिनेन्द्र भी पूजा, भक्ति आराधना रूप संकल्प, संसार , शरीर, भोगो से विरकित रूप संकल्प, मोक्ष मार्ग की साधना रूप संकल्प आदि सभी शुभ संकल्प है.
② अशुभ रतव्यल्प – संसार बर्धक सभी प्रकार के पाप रूप संकल्प अशुभ है
③ शुद्ध संभल्प – शुद्धात्मा की प्राप्ति. उसी में रमण रूप संकल्प शुद्ध संकल्प है।
आचार्य श्री विमर्श सागर जी महामुनिराज के मंगल उपदेश से पूर्व- धर्मसभा के पुण्यार्थी श्रावक – सौरभ जैन सपरिवार एवं नितिन जैन सपरिवार की दीप प्रज्ज्वलन गुरुपाद प्रक्षालन, शास्त्र भेंट एवं गुरुपूजन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। साथ ही आचार्य सौरभ सागर चातुर्मास समिति सूरज‌मल बिहार समिति ने पधारकर गुरु आशीष प्राप्त किया।

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