संतों के सान्निध्य से हमें सन्मार्ग की प्राप्ति होती है-मुनिश्री विलोकसागर

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03 से 10 जुलाई तक होगी सिद्धों की आराधना

मुरैना (मनोज जैन नायक) प्राणियों में विरले ही ऐसे भव्य जीव होते हैं, जिनके मन में स्वकल्याण की भावना पनपती है । ऐसे भव्य जीव जिनके मन में अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने का भाव उत्पन्न हुआ है । संसार का भ्रमण करते करते वह थक चुका है । चार गति और चौरासी लाख योनियों में घूमते घूमते वह परेशान हो चुका है । इस असार संसार के जन्म मृत्यु के चक्रव्यूह से निकलने के लिए वह झटपटा रहा है । उसे अपने जीवन के लक्ष्य को को प्राप्त करना है । जब ऐसा भाव या विचार जिस भव्य जीव के मन में जागृत हो जाता है । वही भव्य जीव नर से नारायण बनने की साधना प्रारंभ कर देता है । ऐसी भव्य आत्मा के लिए संसार अभिशाप नहीं वरदान बन जाता है । संसार और समय तो सभी जीवों के लिए एक समान होता है । संसार में ही भगवान है और संसार में ही शैतान है । संसार में रहते हुए एक व्यक्ति भगवान की भक्ति, पूजा पाठ और आराधना कर रहा है वहीं दूसरी ओर एक व्यक्ति दुराचार, अत्याचार करते हुए पापकर्मों का आश्रव कर रहा है । कोई भोगों में लिप्त है, कोई भक्ति में मग्न है । कोई विषय वासना में रत है तो कोई संयम की साधना करते हुए वैराग्य पथ की ओर अग्रसर है । हे भव्य आत्माओं हमारे भाव, हमारे मन की दृढ़ इच्छा शक्ति ही हमें उन्नति का मार्ग दे सकती है और हमारे अनुचित भाव ही हमें पतन की ओर ले जा सकते हैं। हमें यह सुनिश्चित करना है कि जाना किस मार्ग पर है । हम अच्छे मार्ग पर चलने का प्रयास तो कर ही सकता हैं। उक्त उद्गार जैन संत मुनिराजश्री विलोक सागर महाराज ने बड़े जैन मंदिर में धर्म सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए ।
पूज्य गुरुदेव ने साधर्मी बंधुओं को संबोधित करते हुए कहा कि आज से करोड़ों वर्ष पूर्व भगवान ऋषभदेव ने “ऋषि बनो या कृषि करो” का उपदेश दिया था । उन्होंने कहा था कि पूज्य बनो या पूज्य महापुरुषों की आराधना करो। पूज्य महापुरुषों की आराधना करते करते आप भी एक दिन पूज्य बन जाओगे । इसीलिए हमें अपने इष्ट के, अपने गुरुओं के, पूज्य महापुरुषों के उपदेश आवश्यक रूप से श्रमण करना चाहिए । उन्हें अपना आदर्श मानकर उनके बताए हुए मार्ग पर चलना चाहिए । संतों का उपदेश, संतों की प्रेरणा, संतों की चर्या हमें सन्मार्ग बताती है और सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है । जब हम सन्मार्ग की ओर अग्रसर होगें तो हमारा मोक्ष मार्ग प्रशस्त होगा । अंत में यही सब कार्य मोक्ष महल सिद्धालय तक ले जाने में सहायक बनते हैं।
सिद्धचक्र विधान एवं विश्व शांति महायज्ञ का होगा आयोजन
सभी साधर्मी बंधुओं की भावना के अनुरूप पूज्य युगल मुनिराजों के पावन सान्निध्य में आठ दिवसीय सिद्धों की आराधना का आयोजन जुलाई माह के प्रथम सप्ताह में होने जा रहा है ।
विधान के मुख्य संयोजक अनूप जैन भंडारी ने बताया कि जैन दर्शन में सिद्धचक्र विधान का अत्यधिक महत्व है । सभी विधानों में इस विधान को सर्वश्रेष्ठ विधान बताया गया है । इसीलिए सिद्धचक्र विधान को विधानों का राजा कहा जाता है । जैन कुल में जन्म लेने वाला प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवनकाल में कम से कम एकबार श्री सिद्धचक्र विधान को करने की अभिलाषा रखता है । इस बार जुलाई माह की अष्टानिका पर्व में सकल जैन समाज मुरैना की ओर से विधान होने जा रहा है । श्री 1008 सिद्धचक्र महामंडल विधान एवं विश्व शांति महायज्ञ का आयोजन 03 जुलाई से 10 जुलाई तक बड़े जैन मंदिर मुरैना में होने जा रहा है । इस विधान के तहत निरंतर आठ दिन सिद्ध परमेष्ठि की आराधना, पूजा, भक्ति करते हुए अर्घ समर्पित किए जायेगें । अंतिम दिन 11 जुलाई को विश्व शांति एवं कल्याण की भावना के साथ महायज्ञ का आयोजन किया जाएगा । तत्पश्चात श्री जिनेंद्र प्रभु की भव्य एवं विशाल रथ यात्रा निकाली जाएगी ।
णमोकार महामंत्र लेखन प्रतियोगिता होगी
पूज्य मुनिराजों के पावन सान्निध्य सभी बंधुओं एवं माता बहिनों के लिए महामंत्र णमोकार लेखन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया है । जो सबसे अधिक संख्या में महामंत्र का लेखन करेगा, उन सभी को प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं सांत्वना पुरस्कारों से सम्मानित किया जाएगा ।

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