संत शिरोमणि विद्या सागर महा मुनिराज के महाप्रयाण पर भाव भीनी विन्याजली

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जहां त्याग तपस्या संयम शील की भक्ति निर्मल धारा
वो विद्या गुरु हमारा
वो विद्या गुरु हमारा………

पिता श्री मल्लप्पा जी और माता श्रीमती के दुलारे 2
बचपन से विद्याधर ने श्रीजिन वचन उच्चारे
श्रीजिन वचन उच्चारे
लिया तरुणाई में ब्रह्मचर्य व्रत है यह कितना न्यारा
वो विद्या गुरु हमारा

संसार शरीर और भोगों से है जिसने नेह हटाया 2
गुरु ज्ञान सागर जी से विद्यासागर जी नाम पाया
विद्यासागर जी नाम पाया
चल दिए छोड़ घर द्वार सभी मुक्ति का पाठ उजियारा

वो विद्या गुरु हमारा

जो लोग मोह और माया से नित नित ही दूर रहते 2
जीवादी प्रयोजन भूत तत्वों का नित्य नित्य चिंतन करते
नित्य नित्य चिंतन करते
जिनकी वाणी ने भेद ज्ञान का अमृत कलश बिखेरा
वो विद्या गुरु हमारा

श्री महावीर स्वामी के आप लगते हो लघुनंदन 2
इस पंचम काल में बांट रहे हो कुंद कुंद का कुंदन
कुंद कुंद का कुंदन
जितने भी शिष्य हुए जगती में उनको नमन हमारा
वो विद्या
गुरु हमारा

जिनके सम्मुख उपमा छोटी से छोटी होती जाए 2
वो मंद मुस्कान सदा चेहरे पर खिलती आए
चेहरे पर खिलती आए
पार्श्वमणी हम जिनका करते हैं वंदन बारंबारा
वो विद्या गुरु हमारा

रचियता
राष्ट्रीय मिडिया प्रभारी
पारस जैन पार्श्वमणि पत्रकार
कोटा (राज )
9414764980

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