संत ज्ञानेश्वर जन्म जयंती

0
389

संत ज्ञानेश्वर अर्थात महाराष्ट्र का एक अनमोल रत्न ! महाराष्ट्रकेसांस्कृतिक जीवनके, पारमार्थिक क्षेत्रके ‘न भूतो न भविष्यति’ऐसा बेजोड व्यवितमत्व एवं अलौकिक चरित्र अर्थात संतज्ञानेश्वर! गत लगभग ७२५ वर्षांसे महाराष्ट्रकी सभी पीढीयोंके,समाजके सभी स्तरके लोगोने जिस व्यक्तिमत्वको अपनेमनमंदिरमे एक अटल श्रद्धास्थान के रूपमें रखा है; तथा जोश्रद्धास्थान आगामी असंख्य पीढियोंतक स्थायीरूपसे अटल एवंउच्चस्थान पर रहनेवाला है; ऐसा एकमेवाद्वितीयव्यवितमत्वअर्थात संत ज्ञानेश्वर !
ब्रह्म साम्राज्य चक्रवर्ती, मति गुंठित करनेवाली अलौकिक काव्य प्रतिभासंपन्न रससिद्ध महाकवी, महान तत्त्वज्ञ, श्रेष्ठ संत, सकल विश्वकेकल्याणकी चिंता करनेवाला भूतदयावादी परमेश्वरभक्त, पूर्ण ज्ञानकामूर्तिमंत प्रतीक, श्रीविठ्ठलका प्राणसखा – ऐसे शब्दोमें उनका वर्णनकिया जाता है; परंतु ऐसा लगता है कि, उनका परिपूर्ण वर्णन करनेकेलिए शब्द संग्रह भी अपूर्ण है । संत चोखामेला आगे दिए गए शब्दोंमेंउन्हें वंदन करते हैं । भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के संरक्षक अध्यात्म ज्ञान के मार्तण्ड युग पुरूष संत ज्ञानेश्वर जी की ज्ञान रश्मियों से आज भी पददलित समाज अपने को गौरवान्वित महसूस कर रहा है। इनके सन्देश से समाज मे समन्वय और भार्इचारा का भाव संचालित हो रहा है।
संत ज्ञानेश्वर का जन्म १२७५ ईसवी में महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में पैठण के पास आपेगाँव में भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था। इनके पिता का नाम विट्ठल पंत एवं माता का नाम रुक्मिणी बाई था। मुक्ताबाई इनकी बहन थीं। इनके दोंनों भाई निवृत्तिनाथ एवं सोपानदेव भी संत स्वभाव के थे।
इनके पिता ने जवानी में ही गृहस्थ का परित्याग कर संन्यास ग्रहण कर लिया था परंतु गुरु आदेश से उन्हें फिर से गृहस्थ-जीवन शुरु करना पड़ा। इस घटना को समाज ने मान्यता नहीं दी और इन्हें समाज से बहिष्कृत होना पड़ा। ज्ञानेश्वर के माता-पिता से यह अपमान सहन नहीं हुआ और बालक ज्ञानेश्वर के सिर से उनके माता-पिता का साया सदा के लिए उठ गया।
उन दिनों सारे ग्रंथ संस्कृत में थे और आम जनता संस्कृत नहीं जानती थी अस्तु तेजस्वी बालक ज्ञानेश्वर ने केवल १५ वर्ष की उम्र में ही गीता पर मराठी में ज्ञानेश्वरी नामक भाष्य की रचना करके जनता की भाषा में ज्ञान की झोली खोल दी। ये संत नामदेव के समकालीन थे और उनके साथ पूरे महाराष्ट्र का भ्रमण कर लोगों को ज्ञान-भक्ति से परिचित कराया और समता, समभाव का उपदेश दिया। मात्र २१ वर्ष की उम्र में यह महान संत एवं भक्तकवि ने इस नश्वर संसार का परित्यागकर समाधिस्त हो गये।
बहुत छोटी आयु में ज्ञानेश्वरजी को जाति से बहिष्कृत हो नानाविध संकटों का सामना करना पड़ा। उनके पास रहने को ठीक से झोपड़ी भी नहीं थी। संन्यासी के बच्चे कहकर सारे संसार ने उनका तिरस्कार किया। लोगों ने उन्हें सर्वविध कष्ट दिए, पर उन्होंने अखिल जगत पर अमृत सिंचन किया। वर्षानुवर्ष ये बाल भागीरथ कठोर तपस्या करते रहे। उनकी साहित्य गंगा से राख होकर पड़े हुए सागर पुत्रों और तत्कालीन समाज बांधवों का उद्धार हुआ। भावार्थ दीपिका की ज्योति जलाई।
वह ज्योति ऐसी अद्भुत है कि  ज्योति जलाई। वह ज्योति ऐसी अद्भुत है कि उनकी आंच किसी को नहीं लगती, प्रकाश सबको मिलता है। ज्ञानेश्वरजी के प्रचंड साहित्य में कहीं भी, किसी के विरुद्ध परिवाद नहीं है। क्रोध, रोष, ईर्ष्या, मत्सर का कहीं लेशमात्र भी नहीं है। समग्र ज्ञानेश्वरी क्षमाशीलता का विराट प्रवचन है।
इस विषय में ज्ञानेश्वरजी की छोटी बहन मुक्ताबाई का ही अधिकार बड़ा है। ऐसी किंवदंती है कि एक बार किसी नटखट व्यक्ति ने ज्ञानेश्वरजी का अपमान कर दिया। उन्हें बहुत दुख हुआ और वे कक्ष में द्वार बंद करके बैठ गए। जब उन्होंने द्वार खोलने से मना किया, तब मुक्ताबाई ने उनसे जो विनती की वह मराठी साहित्य में ताटीचे अभंग (द्वार के अभंग) के नाम से अतिविख्यात है।
शुद्धिपत्र की प्राप्ति :
बाद के दिनों में ज्ञानेश्वर के बड़े भाई निवृत्तिनाथ की गुरु गैगीनाथ से भेंट हो गई। वे विट्ठल पंत के गुरु रह चुके थे। उन्होंने निवृत्तिनाथ को योगमार्ग की दीक्षा और कृष्ण उपासना का उपदेश दिया। बाद में निवृत्तिनाथ ने ज्ञानेश्वर को भी दीक्षित किया। फिर ये लोग पंडितों से शुद्धिपत्र लेने के उद्देश्य से पैठण पहुँचे। वहाँ रहने के दिनों की ज्ञानेश्वर की कई चमत्कारिक कथाएँ प्रचलित हैं।
कहते हैं, उन्होंने भैंस के सिर पर हाथ रखकर उसके मुँह से वेद मंत्रों का उच्चारण कराया। भैंस को जो डंडे मारे गए, उसके निशान ज्ञानेश्वर के शरीर पर उभर आए। यह सब देखकर पैठण के पंडितों ने ज्ञानेश्वर और उनके भाई को शुद्धिपत्र दे दिया। अब उनकी ख्याति अपने गाँव तक पहुँच चुकी थी। वहाँ भी उनका बड़े प्रेम से स्वागत हुआ।
माता-पिता की मृत्यु :
सन्न्यास छोड़कर गृहस्थ बनने के कारण समाज ने ज्ञानेश्वर के पिता विट्ठल पंत का बहिष्कार कर दिया। वे कोई भी प्रायश्चित करने के लिए तैयार थे, पर शास्त्रकारों ने बताया कि उनके लिए देह त्यागने के अतिरिक्त कोई और प्रायश्चित नहीं है और उनके पुत्र भी जनेऊ धारण नहीं कर सकते। इस पर विट्ठल पंत ने प्रयाग में त्रिवेणी में जाकर अपनी पत्नी के साथ संगम में डूबकर प्राण दे दिए। बच्चे अनाथ हो गए। लोगों ने उन्हें गाँव के अपने घर में भी नहीं रहने दिया। अब उनके सामने भीख माँगकर पेट पालने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं रह गया।
ज्ञानेश्वरी :
ज्ञानेश्वरी महाराष्ट्र के संत कवि ज्ञानेश्वर द्वारा मराठी भाषा में रची गई श्रीमदभगवतगीता पर लिखी गई सर्वप्रथम ओवीबद्ध टीका है। वस्तुत: यह काव्यमय प्रवचन है जिसे ज्ञानेश्वर ने अपने गुरु निवृत्तिनाथ के निदर्शन में अन्य संतों के समक्ष किया था। इसमें गीता के मूल ७०० श्लोकों का मराठी भाषा की ९००० ओवियों में अत्यंत रसपूर्ण विशद विवेचन है। अंतर केवल इतना ही है कि यह श्री शंकराचार्य के समान गीता का प्रतिपद भाष्य नहीं है। यथार्थ में यह गीता की भावार्थदीपिका है।
यह भाष्य अथवा टीका ज्ञानेश्वर जी की स्वतंत्र बुद्धि की देन है। मूल गीता की अध्यायसंगति और श्लोकसंगति के विषय में भी कवि की स्वयंप्रज्ञा अनेक स्थलों पर प्रकट हुई है। प्रारंभिक अध्यायों की टीका संक्षिप्त है परंतु क्रमश: ज्ञानेश्वर जी की प्रतिभा प्रस्फुटित होती गई है। गुरुभक्ति, श्रोताओं की प्रार्थना, मराठी भाषा का अभिमान, गीता का स्तवन, श्रीकृष्ण और अर्जुन का अकृत्रिम स्नेह इत्यादि विषयों ने ज्ञानेश्वर को विशेष रूप से मुग्ध कर लिया है।
इनका विवेचन करते समय ज्ञानेश्वर की वाणी वस्तुत: अक्षर साहित्य के अलंकारों से मंडित हो गई है। यह सत्य है कि आज तक भगवद्गीता पर साधिकार वाणी से कई काव्यग्रंथ लिखे गए। अपने कतिपय गुणों के कारण उनके निर्माता अपने-अपने स्थानों पर श्रेष्ठ ही हैं तथापित डॉo राo दo रानडे के समुचित शब्दों में यह कहना ही होगा कि विद्वत्ता, कविता और साधुता इन तीन दृष्टियों से गीता की सभी टीकाओं में ‘ज्ञानेश्वरी’ का स्थान सर्वश्रेष्ठ है।
१- देने से घटता नहीं, बढ़ता है दिन रात।
ज्ञान धन इहि संसार में , बाँट सके ना भ्रात।।
२-जगत में भ्रष्टाचार की, चली है उल्टी चाल।
सत्य भुला कर मित्रता का, हरदम फैला जाल
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन   संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104  पेसिफिक ब्लू ,नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026  मोबाइल  ०९४२५००६७५३

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here