हम सब जानते हैं कि हमारा जैनधर्म और श्रमण संस्कृति अत्यंत प्राचीन और सनातन है। वर्ष 2024 जल्द ही विदा होने वाला है, जहाँ वर्ष के प्रारंभ में हमें बहुत कुछ नुकसान उठाना पड़ा वहीं वर्ष के जाते-जाते हमें कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियां भी हासिल होते दिख रहीं हैं। हमारी संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में पिछले कुछ दिनों में कुछ अच्छे निर्णय, आयोजन देखने को मिले हैं जो स्वागत योग्य हैं। इन निर्णयों से हमारी संस्कृति के लिए नई दिशा प्राप्त होगी।
प्राकृत भाषा शास्त्रीय भाषा घोषित होने पर जिम्मेदारी बढ़ी : भारत सरकार ने पिछले महीने प्राचीन भाषा प्राकृत को शास्त्रीय (क्लासिकल) भाषा का दर्जा प्रदान करने की स्वीकृति प्रदान की। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रीमंडल ने प्राकृत सहित पाँच भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने की घोषणा की है। जैन समाज, प्राकृत प्रेमियों और प्राकृत सेवियों ने सरकार के इस निर्णय का अभिनंदन किया है।
भारतीय शास्त्रीय भाषाएँ, भारत की उन भाषाओं को कहा जाता है जिनका साहित्य और साहित्यिक धरोहर अमूल्य, उच्च-स्तरीय, प्राचीन एवं अनोखी है। प्राकृत में शास्त्रीय भाषा की सारी विशेषताएँ पूरी तरह से विद्यमान हैं। जैन समाज में प्राकृत भाषा का शिक्षण और प्राकृत साहित्य का स्वाध्याय आम बात है, इससे जैन धर्म के विपुल साहित्यिक विरासत की सुरक्षा सुनिश्चित होगी क्योंकि प्राकृत भाषा जैन संस्कृति की आधार स्तंभ है।
शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और प्राचीन ग्रंथों का संरक्षण, दस्तावेजीकरण और डिजिटलीकरण होगा। अब हमारी जिम्मेदारी पहले से अधिक बढ़ गयी है, सरकार ने अपना काम कर दिया है अब हमें उसका लाभ लेने के लिए गंभीरता से योजनाओं को कार्यान्वित करवानी होंगी।
निबन्ध प्रतियोगिता स्थगित होना महत्वपूर्ण उपलब्धि : भगवान महावीर स्वामी के 2550वे निर्वाण महोत्सव पर महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान में राज्य सरकारोंद्वारा भगवान महावीर के जीवन पर स्कूलों में निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया जाना निश्चित ही स्वागत योग्य कार्य था लेकिन उस प्रतियोगिता के साथ सहायक पुस्तिका के रूप में जो पुस्तक संलग्न की जा रही थी वह नितांत एकपक्षीय थी, इसमें दिगम्बरत्व पर प्रश्न चिह्न खड़े हो रहे थे, यद्यपि महाराष्ट्र और गुजरात में यह प्रतियोगिता आयोजित भी हो चुकी थी लेकिन राजस्थान आते-आते एकपक्षीय पुस्तक की जानकारी जब लोगों को पता चली तो इसका कड़ा विरोध हुआ। अनेक संतों और विभिन्न संस्थाओं ने कड़ी आपत्ति दर्ज कराई। प्रमुख रूप से आचार्य श्री सुनीलसागर जी महाराज ने किशनगढ़ में चल रही राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी के बीच राजस्थान के उप मुख्यमंत्री डॉ प्रेमचंद्र बैरबा जी जब दर्शनार्थ पहुँचे तो मंच से ही यह मुद्दा उठाया। अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्रि-परिषद ने भी तत्काल तत्परता दिखाते हुए एक ज्ञापन आदरणीय अशोक पाटनी जी के माध्यम से सरकार को तुरंत भिजवाया। उसका यह परिणाम यह हुआ कि वह विवादास्पद निबंध प्रतियोगिता राजस्थान सरकार ने स्थगित करने का निर्णय लिया है, इस आशय का आदेश भी राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने जारी कर दिया है। निश्चित ही यह हमारी एकता का ही परिणाम है जिससे हमारी संस्कृति के संरक्षण की दिशा में यह महत्वपूर्ण कार्य हुआ है। आगे भी हमें इसी प्रकार की जागरूकता दिखानी होगी।
चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर गौरव ग्रंथ : यह वर्ष परम पूज्य बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती श्री शांतिसागर जी महाराज आचार्य पद प्रतिष्ठापना का शताब्दी वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। जिसका भव्य उद्धाटन परम पूज्य वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्द्धमानसागर जी महाराज के मंगल सान्निध्य में अक्तूबर में पारसोला में हो चुका है। इस उपलक्ष्य में भारतीय डाक विभाग द्वारा अचार्यश्री पर डाक टिकट जारी करना एक उपलब्धि पूर्ण कार्य है। वर्ष भर अनेक आयोजन होंगे, पूरे देश में इस आयोजन को मनाना चाहिए। आज जो विशाल चेतन्य तीर्थ हमें देखने को मिल रहे हैं वह इन ऋषिराज की महान कृपा का परिणाम है।इस मौके पर एक गौरव ग्रंथ भी निकाला जा रहा है। जिसके संपादक मंडल में डॉ आनंद प्रकाश जी, राजेन्द्र जी महावीर, डॉ पंकज जी, डॉ सुधीर शास्त्री के साथ मैं भी शामिल हूँ।
संपादक मण्डल में होने के नाते सभी पूज्य संतों, माता जी, विद्वानों, पत्रकारों, श्रेष्ठिजनों, राजनेताओं आदि से विनम्र निवेदन है कि अपने संस्मरण, आलेख, शुभकामनाएं आदि जल्द से जल्द भिजवाएं।
सराकोद्धारक आचार्य श्री ज्ञानसागर महाराज के
कार्यों को मिली गति : परम पूज्य सराकोद्धारक आचार्य श्री ज्ञानसागर महाराज का विशाल अवदान किसी से छिपा नहीं है। उनकी समाधि के बाद उनके कार्य मानो थम से गए थे लेकिन पिछ्ले दिनों जिस गति से उनके कार्यों में प्रगति हुई है वह स्वागत योग्य है। सराक क्षेत्र में कार्यों में काफी प्रगति देखने को मिली है। संस्कार शिविर आदि निरंतर आयोजित हो रहे हैं। 18 नवम्बर को छाणी परंपरा के सप्तम पट्टाचार्य श्री ज्ञेयसागर जी महाराज ससंघ, गणिनी आर्यिका श्री आर्षमती माता जी ससंघ, ऐलक श्री विज्ञानसागर जी महाराज के सान्निध्य में डूंडाहेड़ा, मंडोला जिला बागपत में आचार्य श्री ज्ञानसागर आरोग्य धाम, मेडिकल डायग्नोस्टिक सेंटर का उद्घाटन एवं मंदिर का शिलान्यास हुआ इस मौके पर अचार्यश्री के स्वप्न का साकार रूप ले चुका ज्ञानतीर्थ मुरैना के पंचकल्याणक महोत्सव की मेरे द्वारा संपादित स्मारिका का भव्य विमोचन किया गया वहीं श्रवणबेलगोला में 21 नवम्बर को भट्टारक चारुकीर्ति स्वामी जी के निर्देशन में आचार्य ज्ञानसागर निलय का भव्य शिलान्यास सम्पन्न हुआ जिसमें देश के प्रमुख विद्वान, राजनेता, श्रेष्ठिजनों की गरिमामय उपस्थिति रही। परंपरा के आचार्य श्री ज्ञेयसागर जी महाराज अचार्यश्री के स्वप्नों को आगे बढ़ाने में संलग्न हैं। गणिनी आर्यिका स्वस्ति भूषण माता जी भी आचार्य श्री ज्ञान लसागर जी महाराज द्वारा संचालित युवा सम्मेलन, एडवोकेट सम्मेलन, विद्वत् सम्मेलन, शिविर, वैज्ञानिक संगोष्ठी आदि को गति प्रदान कर रहीं हैं। प्रतिभा सम्मान का महत्वपूर्ण कार्य गणनी आर्यिका आर्षमती माता जी के सान्निध्य में प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी आयोजित होगा। आदरणीया ब्र. अनीता दीदी जी , मंजुला दीदी जी, मनीष भैया जी भी निरंतर अचार्यश्री के अनेक उपक्रमों को आगे बढ़ाने में संलग्न हैं। निश्चित ही इन आयोजनों से लग रहा है कि अब आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के कार्यों को गति मिल रही है।
सफल रही सागर संगोष्ठी : सागर में 9 से 11 अक्टूबर 2024 तक अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत् परिषद के तत्वावधान में परम पूज्य निर्यापक मुनि पुंगव श्री सुधासागर जी महाराज के सान्निध्य में भाग्योदय तीर्थ परिसर में तीर्थंकर ऋषभदेव से तीर्थंकर महावीर तक विषय पर राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी का सफल आयोजन डॉ जयकुमार जी जैन एवं प्राचार्य अरुण कुमार जी के निर्देशन में डॉ. सुरेन्द्र कुमार जी भारती जी के कुशल संयोजकत्व में सम्पन्न हुआ जिसमें 48 आलेख प्रस्तुत हुए। खास बात यह रही कि पूज्य मुनिश्री ने बहुत ही गंभीर समीक्षा सभी आलेखों की जिससे विद्वानों को भी नया दिशाबोध प्राप्त हुआ। साथ ही विद्वत् परिषद के अधिवेशन में मुनिश्री ने जिस तरह से विद्वानों को अपनी आचार संहिता बनाने की बात की निश्चित ही स्तुत्य और स्वागतयोग्य है। सभी विद्वानों को गंभीरता पूर्वक इस पर विचार करना ही चाहिए।
तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के 2900वे जन्मकल्याणक पर जारी होंगे स्मारक सिक्के : भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के कार्य विभाग द्वारा 18 नवम्बर को एक गजट जारी किया गया है जिसमें उल्लेख है कि तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के 2900वे जन्मकल्याणक पर 900 रुपये मूल्य के चांदी के स्मारक सिक्के जारी किए जाएंगे। यह भी हमारी संस्कृति संरक्षण और संवर्धन की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
विद्वानों का अभिनन्दन : विद्वानों का संस्कृति संरक्षण- संवर्द्धन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। विद्वानों के श्रम को विद्वान ही समझ सकते हैं। विगत कुछ वर्षों में विद्वानों के अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशन कर उनका बहुमान करने की अच्छी परंपरा चालू हुई है। इसी क्रम में 26 अक्टूबर को जयपुर में देश के मूर्धन्य मनीषी, सैकड़ों विद्वानों के निर्माता आदरणीय डॉ. शीतलचंद्र जी जैन जयपुर को मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज के सान्निध्य में अभिनंदन ग्रंथ के लोकार्पण के साथ भव्य अभिनंदन किया गया वहीं 12 नवम्बर को सागर में निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी महाराज के सान्निध्य में प्रोफेसर अशोक कुमार जी वाराणसी के अभिनंदन ग्रंथ का लोकार्पण एवं उनका बहुमान किया गया। अनेक विद्वान विभिन्न पुरस्कार एवं उपाधियों से अलंकृत हुए हैं। आगे प्रोफेसर ऋषभ चंद्र जी फौजदार अभिनंदन ग्रंथ एवं प्रो. वृषभप्रसाद जी स्मृति ग्रंथ निकालने की घोषणा हुई है। विद्वानों का सम्मान हमेशा होते रहना चाहिए।
विगत दिनों अनेक महत्वपूर्ण कृतियों का भी प्रकाशन हुआ है। परम पूज्य मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज की प्रेरणा और आशीर्वाद से भी अनेक कार्य संपादित हुए हैं। प्राकृत भाषा के संवर्धन में आचार्य श्री वसुनंदी जी, आचार्य श्री सुनील सागर जी, मुनि श्री प्रणम्यसागर जी, मुनि श्री आदित्य सागर जी महाराज आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। और भी अनेक कार्य हुए हैं जिनसे हमारी संस्कृति का संरक्षण और संवर्द्धन हुआ है।
बस इसी तरह अच्छे कार्य और निर्णय होते रहें ताकि हमारी संस्कृति और परंपरा निरन्तर उन्नति की ओर अग्रसर होती रहे, जैनधर्म का झंडा दिग-दिगन्त तक फहराता रहे।
विश्वास के साथ एक समा जलाए रखिए।
सुबह जरूर होगी, माहौल बनाए रखिए।।