सांसारिक प्राणी राग द्वेष के कारण दुर्गति को प्राप्त होता है – आचार्य विनिश्चयसागर

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रामगंजमंडी (मनोज जैन नायक) नगर में चातुर्मासरत परम पूज्य समाधिस्थ गणाचार्य विरागसागरजी महाराज के परम प्रभावक शिष्य परम पूज्य वाक्केशरी आचार्यश्री विनिश्चयसागरजी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि सांसारिक प्राणी राग द्वेष में फंसकर मानव पर्याय को नष्ट कर रहा है । हम राग को कम नहीं कर सकते, लेकिन उसे धर्म अनुराग में बदल तो सकते हैं ।जब हम भोजन बनाते हैं, यदि नमक ज्यादा हो जाए तो हम उस वस्तु में पानी डालते हैं या फिर कोई अन्य पदार्थ डालकर नमक के प्रभाव को कम करनेवका पुरुषार्थ करते हैं। ये घरेलू कार्य की क्रिया हैं हम उसे बदलना जानते हैं। इसी प्रकार जीवन में भी राग द्वेष को कम करने के लिए सभी को पुरुषार्थ करना होगा ।
पूज्य आचार्यश्री ने कहा कि प्रशम राग आने पर राग धर्म अनुराग में बदल जाता है । भरत चक्रवर्ती का उदाहरण देते हुए कहा कि भरत चक्रवर्ती को भी घर में लोग बैरागी कहते थे । उनके अंदर प्रशम भाव था। प्रशम भाव आपके भीतर आ जाए तो आपको भी प्रशम भाव होगा। मन में भाव आ जाए और यह वस्तु मेरी भी नहीं है यह भाव प्रशम भाव है। यह भाव आ जाएं यह वस्तु संयोग से मेरी है यही प्रशम भाव है। वस्तु पर्याय के संबंध से मेरी है द्रव्य के संबंध से मेरी नहीं है जैन दर्शन कहता है कि मंदिर में नहीं, घर में धर्म होता है। हम राग द्वेष करते रहते करते करते नरक तक पहुंच जाते हैं यदि हम यही करते रहेंगे तो दुर्गति को प्राप्त होंगे । यदि राग करना है तो धर्म अनुराग करो तो सत्य प्राप्त होगा। और सत्य प्राप्त हो जाएगा तो वस्तु का वास्तविक स्वरूप समझ आएगा।
मानव का भोगो पर इतना ध्यान हो गया है कि उसकी भोगों के प्रति आसक्ति बढ़ गई है । व्यक्ति यह भी ध्यान नहीं दे पा रहा है कि वह हिंसक पदार्थों को खा रहा है या अहिंसक को, वह यह भी ध्यान नहीं दे पा रहा है कि मांसाहारी का सेवन कर रहा है या शाकाहारी का। बस केवल यह देख रहा है कि दिमाग को और जीभ को पसंद आना चाहिए।
भोगों से भी विरक्त होना भी जरूरी है लेकिन खाना भी जरूरी है, वस्त्र भी जरूरी है, स्नान करना भी जरूरी है । साथ ही यह ध्यान रखना भी जरूरी है कि यह सब करते हुए धर्म ध्यान भी जरूरी है। संवेग विषय को समझाते हुए कहा कि इसका अर्थ है कि विषय भोगों से आसक्ति को कम करना । हमारी आस्था सत्य पर होनी चाहिए । हमें सत्य और असत्य की पहचान होनी चाहिए ।
क्रिया व्यर्थ नहीं है धर्म ध्यान पूजन क्रिया बचपन से कर रहे हैं हम उपदेश सुन रहे हैं वह भी सम्यक दर्शन में लाभ देती है। हम क्रिया तो कर रहे हैं लेकिन हम क्रिया में लगन नहीं लगा पा रहे हैं। तैरना है तो पानी में जाना पड़ेगा जिस विधि से जिस चीज की उपलब्धि होनी है उसी के अनुरूप कार्य करना होगा जो हम नहीं करते।
दुनिया ने राम, महावीर, सीता किसी को नहीं छोड़ा । यहां तक कि उनके पुत्र तक को नहीं छोड़ा । दुनिया का उतना ध्यान रखो जितनी बाहर है। दुनिया को भूल जाओ, किसी को देकर भूल जाओ और धर्म अनुराग का परिचय दो । वह याद दिलाए तो धर्म अनुराग है। हमें तो देकर भूलना चाहिए यही धर्म अनुराग है। यदि धर्म ध्यान से फुर्सत नहीं है तो तुम सम्यक दृष्टि हो।

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