भावी सिद्धों के सानिध्य में धर्मनगरी टीकमगढ़ में हो रही है त्रिकालवर्ती अनन्तानंत सिद्ध भगवंतों की महा-आराधना, श्री 1008 सिद्धचक्र महा- मण्डल विधान के द्वारा। गुरुवार की प्रातः काल की बेला में आचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज ने धर्म सभा में उपस्थित विशाल जन समुदाय को सम्बोधित करते हुए प्रवचन में कहा – धन्य हैं वे जीव जिन्हें संसार से प्रीति नहीं है। जिन्हें मात्र परमात्मा से प्रीति है। आप जिस परिवार में रहते हैं, वह परिवार यदि आपके धर्म परिपालन में सहयोगी है तो अपना सातिशय पुण्य समझना । अक्सर देखा जाता है कि किसी परिवार में सुख-शान्ति से सभी का जीवन चन्चल रहा था, आपके परिवार में पुत्र का विवाह हुआ, बहु घर में आई और कुछ ही दिनों में परिवार की शान्ति छिन्न-भिन्न होने लगी । बन्धुओ, भाई-भाई अलग-अलग रहकर भी यदि एक साथ वात्सल्य – प्रेम पूर्वक रहते हैं तो ध्यान रखना, अपनी समाज एक मुढ़िठ की समाज है अर्थात संगठित समाज कहलावेगी । कलिकाल में यदि कहीं शक्ति है तो वह एक मात्र संगठन में ही शक्ति है। यदि आपको समाज में, परिवार में प्रेम को वृद्धिंगत करना है तो आप अनुरोध करना प्रारंभ कर दीजिए। आप अपने अनुरोध को अपने व्यवहार में लाते जाइये, आप देखेंगे आपके जीवन से विरोध स्वयमेव हटते चले जायेंगे। किन्तु जहाँ आपने अपने हाथ संकुचित किए, यदि आप कहने लगें कि मैं कैसे अनुरोध करूँ, मैं किसी के सामने हाथ नहीं जोड़ सकता। ध्यान रखना, यह आपके भीतर का अभिमान बोल रहा है, अभिमान में ऐसा बोलकर आपने अपने परिवार को तोड़ दिया, आपने समाज की एकता को भंग कर दिया। अनुरोध में, विनय में बहुत शक्ति है। आप एक बार अनुरोध कर लीजिए, आज नहीं तो कल सामने वाला भी आपके अनुरोध को स्वीकार अवश्य करेगा गाय-बछड़ा यदि दूध पिलाते हुए मिल जाए तो लौकिक मंगल कहलाता है, जहाँ एक संत दूसरे संत से मिलन करे तो परमार्थ मंगल है। ‘अरे, एक श्रावक यदि एक श्रावक से मिलन करे, परस्पर वात्सल्य व्यवहार निभाते मिल जायें तो समझ लेना मुझे मंगल का दर्शन हो गया है।
भावी सिद्धो के बीच हो रही है अनंतानंत सिद्धों की आराधना
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