सांगानेर चित्रकूंट कॉलोनी में आचार्य 108 श्री सुन्दरसागर जी महाराज स संघ के पावन सानिध्य में धर्म की गंगा बह रही है

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सांगानेर चित्रकूंट कॉलोनी में आचार्य 108 श्री सुन्दरसागर जी महाराज स संघ के पावन सानिध्य में धर्म की गंगा बह रही है

फागी संवाददाता

18सितम्बर

सांगानेर के चित्रकूट कॉलोनी में आचार्य सुंदर सागर जी महाराज ससंघ के पावन सानिध्य में 18 सितम्बर 2025 को आचार्य 108 श्री शांति सागर जी महाराज का समाधि दिवस हर्षोल्लास पूर्वक मनाया गया कार्यक्रम में चातुर्मास समिति के परवेश जैन ने बताया कि आचार्य श्री ने भरी धर्म सभा में श्रावकों को संबोधित करते हुए बताया कि जिस प्रकार भारत की आन, बान, और शान तिरंगा है उसी प्रकार जिन शासन की शान निर्ग्रन्थ मुनिराज है आज उस महामना आचार्य श्री 108 शांति सागर जी महाराज का समाधि दिवस है जो अपने आप में महान दिन है ,जिस दिन आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज ने सल्लेखना ली थी, सल्लेखना मात्र भोजन छोड़ना नहीं बुद्धि पूर्वक कषायों का त्याग करके शरीर छोड़ना है, आचार्य शांति सागर जी महाराज को जब लगा कि मेरी नेत्र ज्योति बंद हो गई है, अब मेरी इंद्रियां काम नहीं कर रही है तब उन्होंने सल्लेखना ले ली, आचार्य श्री ने बताया कि जब आचार्य शांति सागर महाराज अपनी माता के गर्भ में आए थे तब मां के भाव बन रहे थे कि जिनेंद्र भगवान की 108 कमल से पूजा करनी है जिसमें 1008 पंखुड़ी हो, सत्यवती के भाई ने 108 कमल लाकर के जिनेंद्र भगवान की अपनी बहन के साथ पूजा करी तब शांति सागर जी महाराज का जन्म हुआ जिन्होंने 6 साल की लड़की से विवाह किया था, 6 महीने बाद जब उनकी पत्नी चली गई थी तब शांति सागर महाराज ने दूसरा विवाह नहीं किया और मुनि बन गए, मुनि के 6 काल होते हैं दीक्षा, शिक्षा,पोषण, आत्म संस्कार सल्लेखना और उत्तमार्ध काल आदि पहले उत्तर भारत में मुनियों का आगमन नहीं था लेकिन आचार्य शांति सागर जी महाराज की ही देन कि आज उत्तर भारत में भी साधुओं का बिहार चल रहा है और श्रमण संघ परंपरा चली आ रही है, आचार्य भगवन ने बताया कि हम सब शांति सागर महाराज की परंपरा के ही अनुयायी है, चारित्र चक्रवर्ती के जीवन को पढ़ लेना और अपने सम्यक दर्शन को मजबूत कर लेना ही संयम है, शांति सागर महाराज ने गजपंथा में 12 साल की सल्लेखना ली 14 अगस्त को उन्होंने नियम सल्लेखना 36 दिन के लिए ली और 17 अगस्त को यम संलेखना ली, 4 सितम्बर को अंतिम जल लिया और 14 दिन बाद 18 सितंबर 1955 को नश्वर शरीर को छोड़ दिया आचार्य शांति सागर महाराज ने अपना आचार्य पद वीर सागर महाराज को दे दिया ऐसे थे शांति सागर जी महाराज जिन्होंने अपने जीवन काल में बहुत साधना उपवास करके अपने जीवन को धन्य कर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त किया।

राजाबाबू गोधा जैन गजट संवाददाता राजस्थान

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