संचय करना ही है तो धन का नहीं, पुण्य का करो -मुनिश्री विलोकसागर

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श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान का हुआ शुभारंभ

मुरैना (मनोज जैन नायक) सांसारिक प्राणी मोह माया के चक्कर में अपना पूरा जीवन व्यर्थ ही बर्बाद कर देता है । वह धन का संचय तो करता है लेकिन पुण्य का संचय नहीं करता। धन केवल आपको इस भव में सांसारिक सुख तो दे सकता है लेकिन पुण्य आपको मन की शांति और अपार वैभव देता है ।हम सभी जीवन की वास्तविकता को जानकर भी गलतफहमी में जी रहे है। सारी जिंदगी सपनों की दुनिया में जीते हुए जो कुछ हम जुटाते हैं वो सब यही धरा रह जाना है। चक्रवर्ती सम्राटों के पास अपार वैभव था, लेकिन जब उन्हें वैराग्य हुआ तो सारा वैभव उन्होंने एक क्षण में त्याग दिया। हम और आप मोह माया में पढ़े हुए हैं । आपका मस्तिष्क व्यवस्थित है तो आपको सारा संसार व्यवस्थित लगेगा। ज्ञान की बातें हम सब स्वीकार करते हैं पर उसे अंगीकार नहीं करते। जीवन की वास्तविकता को यदि हम श्रद्धा से स्वीकार करले, धर्म के सिद्धांतों को अंगीकार कर लें तो परिणति ही बदल जाएगी। हम सब को पता है कि अंतिम समय आने पर हम सबकुछ छोड़कर जाना है, कुछ भी साथ ले कर नहीं जाएंगे । फिर भी हम दिन रात कुछ न कुछ जोड़ने में ही लगे रहते है। बच्चों को उनके पाप पुण्य के अनुसार जो होगा वहीं मिलेगा, हमारा उनके लिए जोड़ना कुछ काम नहीं आएगा ।आप धन का कितना भी संचय कर लें, लेकिन जब इस संसार से बिदा होने का समय आएगा तब सब यहीं रखा रह जाएगा, केवल आपके अच्छे बुरे कर्म ही साथ जायेंगे। हे भव्य प्राणी अपनी इस चंचला लक्ष्मी का उपयोग अच्छे कार्यों में करो, प्रभु की भक्ति करो, ताकि पुण्य का संचय हो और आपका परलोक भी सुधरेगा । उक्त उद्गार मुनिश्री विलोकसागर महाराज ने बड़े जैन मंदिर में श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान के अवसर पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए ।
आज श्री 1008 सिद्धचक्र महामंडल विधान एवं विश्व शांति महायज्ञ का 08 दिवसीय आयोजन का शुभारंभ हुआ । प्रातः पूज्य युगल मुनिराजों के पावन सान्निध्य में श्री जिनेंद्र प्रभु का अभिषेक, शांतिधारा एवं पूजन किया गया । प्रतिष्ठाचार्य बाल ब्रह्मचारी संजय भैयाजी (मुरैना वाले) ने मंडप, विधान माढ़ना, पांडाल एवं सभी पात्रों की शुद्धि का कार्यक्रम मंत्रोचारण के साथ संपन्न कराया । 3 जुलाई से 10 जुलाई तक निरंतर आठ दिन सिद्धों की पूजा भक्ति करते हुए अर्घ समर्पित किए जायेगे ।

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