समता पूर्वक साधना समाधि है, साधु समाधि साधना से मरण को सुमरण बनाते हैं

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आचार्य श्री वर्धमान सागर जी

फागी संवाददाता
20अगस्त
राजस्थान के टोंक शहर में वात्सल्य वारिधी आचार्य वर्तमान सागर जी महाराज स संघ धर्म की भव्य मंगल प्रवाहना बढा रहें हैं आचार्य श्री ने नियमित प्रवचन श्रृंखला में श्रृद्धालुओं को संबोधित करते हुए बताया कि वीतरागी ,सर्वज्ञ और हितोपदेशी भगवान द्वारा प्रतिपादित जिनधर्म केवलज्ञान रूपी लक्ष्मीयुक्त हैं,जो धर्मधारण ,पालन करने से मिलती हैं धर्म का संग्रह ओर धन के संग्रह में अंतर होता हैं धर्म संग्रह से पुण्य की वृद्धि होती हैं,क्योंकि धर्म मोक्ष का पथ प्रदर्शक है।धार्मिक मंडल विधान की प्रभावना से पुण्य मिलता हैं आत्मा की प्रभावना संयम दीक्षा से होती हैं। साधु समाधि के परम लक्ष्य को लेकर संयम धारण करते हैं, कार्यक्रम में उन्होंने बताया कि समतापूर्वक साधना को समाधि कहते हैं इससे मरण भी सुमरण हो जाता हैं। यह मंगल देशना सोलह कारण भावना पर्व पर राजकीय अतिथि पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधी 108 आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज ने धर्मसभा में प्रकट की, कार्यक्रम में समाज के प्रवक्ता पवन कंटान के अनुसार आचार्य श्री ने आगे बताया कि आप लोग जन्मदिन मनाते हैं,वास्तव में साधु की दीक्षा लेते ही उसका नया जन्म प्रारंभ होता है। जितने वर्ष का जन्मदिन आप मनाते हो वास्तव में उतनी आयु आपकी कम होती जाती है। आयु हर पल हर क्षण कम होती है। जिंदगी भर आपका कार्य कैसा रहा है? इसकी परीक्षा मृत्यु अथवा सल्लेखना समाधि के समय होती है। प्रथमाचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज गृहस्थ और साधु जीवन में शांति के सागर रहे उन्होंने जीवन भर समता धारण कर अनेक उपवास कर उपसर्ग , परिषह को समता से सहन किया। साधु के 10 प्रकार की विवेचना में आचार्य श्री ने बताया कि साधु की सेवा वेयावृति करते समय उनके गुण ग्रहण अर्थात उनके समान वैराग्य धारण करने के भाव परिणाम रखना चाहिए। साधु की सेवा स्वाध्याय के समय आहार, विहार ,निहार, के समय श्रद्धा, प्रसन्नता, भक्ति, वात्सल्य एवं बिना ग्लानि के करना चाहिए क्योंकि साधु परमेष्ठि धर्मतीर्थ होते है । सभी को रत्नाकरण श्रावकाचार ओर प्रथमानुयोग के ग्रंथों का स्वाध्याय कर मनन चिंतन करना चाहिए इससे धर्म में वृद्धि होती हैं।आचार्य श्री के प्रवचन के पूर्व मुनि श्री दर्शित सागर जी के उपदेश हुए। समाज के प्रवक्ता पवन कंटान और विकास जागीरदार ने बताया कि आज प्रातः मुनि श्री हितेंद्र सागर जी और चिंतन सागर जी महाराज के केशलोचन हुए ,बुधवार को आचार्य वर्धमान सागर जी महाराज की आहार चर्या का सौभाग्य बाबूलाल पदमचंद पवन कुमार अनिल कुमार कंटान परिवार को प्राप्त हुआ समाज के कमल सर्राफ एवं विकास अत्तर में बताया कि मंगलवार की आरती के पश्चात संथारा, संखलेना एवं जैन दर्शन पर आधारित फिल्म वीर गोमटश्वर बड़े पर्दे पर दिखाया गया जिसमें श्रद्धालुओं देखकर काफी भाव विभोर हुए
चातुर्मास व्यवस्था समिति के कार्यकारी अध्यक्ष धर्मचंद दाखिया के अध्यक्ष एवं राजेश सर्राफ ने बताया की दसलक्षण महापर्व 28 अगस्त से 6 सितंबर होंगे जिसके तहत आचार्य वर्धमान सागर जी महाराज के सानिध्य में इंद्रध्वज महामंडल विधान आयोजित होगा जिसकी रचना जैन नसिया में पहली बार होगी जिसकी तैयारियां जोर-जोर से शुरू हो गई है।

राजाबाबू गोधा जैन गजट संवाददाता राजस्थान

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