समता भाव धारण करना ही उत्तम आर्जव धर्म: आचार्य प्रमुख सागर

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डिमापुर: मायाचारी से मुक्त अवस्था का नाम उत्तम आर्जव धर्म है। सरल सहज प्रवृत्ति मायाचारी से निवृत्ति करा देती है। मायाचारी करने से रूप रंग बदल जाता है। उन्होंने कहा कि मायाचारी करने वाला तिर्यच गति को प्राप्त होता है। मायाचारी बगुले के समान होता है। वह प्रशंसा करके लूटता है। उन्होंने कहां की मृदुमती मुनिराज भी मायाचारी करने से त्रिलोक मंडल में हाथी बने थे। यह उक्त बातें आचार्य श्री प्रमुख सागर महाराज ने आज पर्युषण पर्व के तीसरे दिन आर्जव धर्म की व्याख्या करते हुए उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि धागे की नोंक टेढ़ी है तो वह धागा सुई कि छेड में नहीं जा सकता। उसी प्रकार यदि हमारे परिणामो में कुटिलता है तो हम धर्म जगत में प्रवेश नहीं कर सकते। इस से पूर्व आज प्रातः महावीर भवन में आचार्य श्री के मुखारविंद से श्रीजी की शांतिधारा, अभिषेक आदि करने का सौभाग्य शिखर चन्द -राजेश कु. बकलीवाल परिवार को प्राप्त हुआ। तत्पश्चात इसी परिवार को आचार्य श्री का चित्र अनावरण दिप प्रज्वलन एवं पाद प्रक्षालन करने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ। यह जानकारी डिमापुर जैन समाज द्वारा एक प्रेस विज्ञप्ति मे दी गई है।

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