समय का कैसा मोड़ है, रात दिन की दौड़ है..
खुश रहने का समय नहीं, बस खुश दिखने की हौड़ है..!
अन्तर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी औरगाबाद नरेंद्र पियुश जैन अन्तर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी महाराज एवं उपाध्याय पियूष सागरजी महाराज ससंघ नोयडा सेक्टर 50 के जैन मंदिर में विराजमान हैं उनके सानिध्य में वहां विभिन्न धार्मिक कार्योंकम संपन्न हो रहें हैं उसी श्रुंखला में उपस्थित गुरु भक्तों को संबोधित करते हुए आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी महाराज ने कहा कि
समय का कैसा मोड़ है, रात दिन की दौड़ है..
खुश रहने का समय नहीं, बस खुश दिखने की हौड़ है..!
अपना देश अब बहुत आगे बढ़ गया है। भारत देश में सम्पन्नता के ऐसे अनगिनत घर, परिवार, समाज के लोग हो गये हैं, जहाँ सुख, शान्ति, प्रेम प्रसन्नता का ठिकाना नहीं है, सिर्फ अर्थ की चाह में सब व्यर्थ होते जा रहा है। जैसे पैसा पानी की तरह आ रहा है, वैसे ही पैसा पानी की तरह जा भी रहा है। पहले समाज और देश में, वर्ष में एक या दो ही उत्सव-महोत्सव हुआ करते थे और अब समाज और देश, उत्सव-महोत्सव का देश बन गया है। अब नित्य निरन्तर बड़े-बड़े उत्सव और महोत्सव हो रहे हैं। पहले अभाव में खुशियाँ हुआ करती थी और आज खुशियों का अभाव सा हो गया है। पहले कमाई का कम्बल इतना छोटा था कि पैर ढ़को तो चेहरा खुला रह जाता था, और चेहरा ढ़़को तो पैर तकलीफ में आ जाते थे। पहले व्यक्ति संसाधन, सेहत और शिक्षा पर ना के बराबर पैसा खर्च करता था, और आज हमारी कमाई का 85 प्रतिशत पैसा इन सबमें खर्च हो रहा है और आदमी कर्ज लेकर मर रहा है।
1901 के भारत देश में 186 कालेज और विश्व विद्यालय ही थे। पूरे देश में बमुश्किल से 20-25 हजार छात्र कालेज का मुंह देख पाते थे। लाखों छात्र चाहकर भी पढ़ नही पाते थे। आज शिक्षा, सेहत और संसाधन के बढ़ते दौर में छात्र अपने माता पिता और घर परिवार के संस्कार और रिश्तों के रास्तों को भूलते जा रहे हैं,, जो बहुत दुःख की बात है आने वाली नव पीढ़ी के लिये।
यदि किसी के मेहमान बनो तो अपनी आँखों को इतना काबू में रखो कि उसके सत्कार के अलावा, उसकी कमियाँ ना दिखे, और जब उसके घर से निकलो तो अपनी जुबान पर काबू रखो, ताकि उसके घर की इज्जत और राज दोनों सलामत रहे…!!! नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद
Regards,
Piyush Kasliwal
9860668168












