समाज की एकता और अखंडता में ही शक्ति और भक्ति समाहित हैं -मुनिश्री विलोकसागर

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मुरैना (मनोज जैन नायक) समाज की एकता और अखंडता में ही शक्ति और भक्ति होती है। हम सभी को अपने निजी स्वार्थ छोड़कर देश धर्म और समाज हित में कार्य करना चाहिए । जैन दर्शन में क्षमा का एक महत्वपूर्ण स्थान है । जैन धर्म में पर्यूषण पर्व क्षमा से ही प्रारंभ होते हैं और क्षमा पर ही समाप्त होते हैं। क्षमा करना और क्षमा मांगना ही सच्चा धर्म है । जैन धर्म ही नहीं सभी धर्मों का सार ही क्षमा है । जैन धर्म में क्षमा को “उत्तम क्षमा धर्म” के रूप में भी बताया गया है। क्षमा धर्म दूसरों को दुःख न पहुंचाने, क्रोध पर विजय पाने और मन की शांति बनाए रखने पर बल देता है, जिससे आत्मा का कल्याण होता है और समाज में सुख-शांति स्थापित होती है । क्षमा आत्मा का गुण है । जब तक मन की कटुता दूर नहीं होगी तब तक क्षमावाणी पर्व मनाने का कोई अर्थ नहीं है । हमें रोजमर्रा की सारी कटुता, कलुषता को भूलकर एक-दूसरे से क्षमा मांगते हुए और एक-दूसरे को क्षमा करते हुए सभी गिले-शिकवों को दूर कर क्षमा-पर्व मनाना चाहिए। क्षमा से नकारात्मक भावनाये, क्रोध और आक्रोश दूर होता है । जिससे हमारे जीवन में शांति आती है । क्षमा मांगने और क्षमा करने से रिश्ते बेहतर होते हैं, भावनात्मक बुद्धिमत्ता बढ़ती है, और आत्म-चिंतन में मदद मिलती है, जो एक स्वस्थ और सद्गुणी जीवन के लिए आवश्यक है।
क्षमावाणी पर्व पर हमें अपने जीवन से सभी तरह के बैर, भाव, विरोध को मिटाकर प्रत्येक व्यक्ति से क्षमा मांगनी चाहिए, और हम दूसरों को भी क्षमा कर सके यही भाव मन में रखना चाहिए । वर्तमान में संपूर्ण विश्व को क्षमा धर्म को स्वीकार करने की आवश्यकता है । क्षमा धर्म ही ऐसा धर्म है जिसे स्वीकार करने से संपूर्ण विश्व में शांति कायम की जा सकती है। उक्त उद्गार जैन संत मुनिश्री विलोकसागरजी महाराज ने क्षमावाणी पर्व पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए ।
पर्यूषण पर्व समापन की बेला में क्षमावाणी पर्व पर बड़े जैन मंदिर में एक धर्मसभा का आयोजन किया गया । सभा के दौरान सभी जैन धर्मावलंबियों ने गले मिलकर एक दूसरे से बर्षभर में हुई गलतियों के लिए क्षमा याचना की । इस अवसर पर जिनेन्द्र जैन मैनेजर एवं लालाराम कुशवाह का कमेटी द्वारा सम्मान किया गया । सभा में बुजुर्ग बंधुओं को मंच पर स्थान दिया गया और सभी का माल्यार्पण कर स्वागत किया गया । शेखर जैन, पदमचंद जैन एवं प्राचार्य अनिल जैन द्वारा क्षमाभाव पर उद्बोधन देते हुए सभी से क्षमायाचना की । इस अवसर पर सैकड़ों की संख्या में जैन बंधु, माता बहनें एवं युवा साथी उपस्थित थे । सभा का संचालन कवि नमोकर जैन एवं गौरव जैन द्वारा किया गया ।

हृदय खोलकर क्षमा मांगे और क्षमा करें
क्षमावाणी पर्व पर मुनिश्री विबोधसागरजी महाराज ने कहा कि आज के दिन सभी लोगों को हृदय खोलकर क्षमा मांगना चाहिए और अन्य सभी को क्षमा करना चाहिए । लेकिन आप लोग ऐसा नहीं करते । आप भी उसी से क्षमा मांगते हैं जिससे आपका कोई झगड़ा या मनमुटाव नहीं है, जिससे आपका मनमुटाव है उससे आप क्षमा नहीं मांगते । यह तो स्वयं को धोखा देने जैसा है । क्षमावाणी का पर्व अंतरंग से क्षमा करने व क्षमा मांगने का पर्व है । कर्मों की गांठ को खोलने का नाम ही क्षमावाणी पर्व है । आज के दिन सौहार्दपूर्ण पूर्ण वातावरण में सद्भावना के साथ अपनी गलतियों का प्रायश्चित करना ही उत्तम क्षमा धर्म है । क्षमा मांगना तो बहुत सरल और सहज है लेकिन क्षमा करना बहुत कठिन हैं। इसीलिए क्षमा को वीरों का आभूषण कहा गया है ।
प्रत्येक घर में होना चाहिए बुजुर्गों का सम्मान
पूज्य मुनिराजजी ने कहा कि बुजुर्ग हमारी धरोहर हैं, बुजुर्ग ही हमारी संस्कृति हैं। प्रत्येक परिवार में बुजुर्गों का सम्मान होना चाहिए । वर्तमान में हमारी परंपराएं बिखर गई हैं। लोग बुजुर्गों का सम्मान भूलते जा रहे हैं। याद रखो एक न एक दिन सभी को बूढ़ा होना है ।

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