सकारात्मक ऊर्जा का संचार कैसे हो?

0
138

कुछ पहलू जीवन के अचंभित करने वाले होते हैं, जैसे खुशी के माहौल में मरने की बात करना, मारने की बात करके, गाली देकर या गाली देते देते बात करना, किसी पर भद्दे कॉमेंट्स करना आदि के कारण अपनी नेगेटिव सोच से एक ऐसा पुट छोड़ देते हैं, जिससे पूरा माहौल नेगेटिव होने लगता है, लोग उस स्थान से कतराने लगते हैं और आगे से वे उन सब बातों वाले लोगों से बचना चाहते हैं। यहां नकारात्मक ऊर्जा का संचार किया और परिणाम हुआ लोगों हमसे कतराने लगे।

यही बात स्कूल, कॉलेज और मंदिर भी लागू होती है; देखा जाए तो ये तीनों मंदिर के ही रूप है, स्कूल कॉलेज में चेतन/लिविंग थिंग्स को गड़ा जाता है और मंदिर में अचेतन/नॉन लिविंग थिंग्स को। बस अंतर इतना है कि मंदिर का अचेतन चेतन को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और स्कूल कॉलेज का चेतन सब जड़ अचेतन के पीछे भागने की शैली को अपनाता है। सही को सही ग्रहण न करने से हमारी सकारात्मक खत्म होती है। ऊर्जा का प्रवाह हर पल हो रहा है, जैसी ऊर्जा चाहिए है वैसे प्रवाह के साथ जुड़ना पड़ेगा। आश्चर्य इस बात का है कि ऊर्जा का संचार ही हमें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों और से प्रभावित करता है।

एक गरीब आदमी डॉ के पास पहुंचता है और कहता है , सर! मेरा बेटा बहुत बीमार है आप मेरे साथ चले, मैं उसे यहां तक भी नहीं ला सकता हूं। डॉ ने थोड़ा रुकने को कहा और फिर थोड़ी देर में उस व्यक्ति के साथ रिक्शे से उसके घर गए। घर पर पहुंचते ही डॉ ने चेक किया और पाया कि उस व्यक्ति का पुत्र तो मर चुका है। डॉ ने एक ही वाक्य कहा– मैंने आने में देरी कर दी। आपका पुत्र अब नहीं रहा। उस व्यक्ति ने बड़े धैर्य से कहा- सर! आपने तो कोशिश की, मेरा ही दुर्भाग्य था। वह व्यक्ति खस्ता हाल था। खाने के तो लाले थे, फीस देने के लिए उसने कुछ पैसे जोड़े थे, डॉ को फीस देने लगा तब डॉ ने फीस लेने से इंकार कर दिया और कहा – मैं उसका जीवन न बचा सका, ये पैसा नहीं ले पाऊंगा।

यह सारा दृश्य रिक्शावाला भी देख रहा था। डॉ रिक्शे में बैठकर अपनी क्लीनिक पहुंच गया। उसने रिक्शे वाले को पैसे दिए तो उसने भी लेने से मना कर दिया और कहा – सर! जब आपने मानवीय धर्म निभाया है तो मैं आप जैसे व्यक्ति से कैसे पैसे ले लूं? ये भावनाएं बहुत बड़ी है या नहीं, इसका निर्णय हम स्वयं करे, लेकिन इनका सकारात्मकता सोच और एनर्जी से जबरजस्त जुड़ाव है। एक व्यक्ति के सकारात्मक विचार दूसरे व्यक्ति तक जाते हैं, उसका प्रभाव भी सकारात्मक होता है।

एक दूसरी कहानी से हम समझें कि नकारात्मकता का भाव कैसे फैलता है? एक व्यक्ति एक खरगोश लेकर चौराहे से गुजर रहा था। 4 ठगों ने उसे जाते हुए देख लिया और वे ठग लोगों को परेशान करने में ही आनंदित होने वाले थे. तब उसको परेशान करने को प्लानिंग की। तब वे चारों अलग अलग चौराहों पर खड़े हो गए। पहले चौराहे पर पहला वाला कहता है – क्या लेकर जा रहे हो भाई? उसने कहा – खरगोश है। पर मुझे तो लोमड़ी लग रही है, देख लो भाई! कहीं लोमड़ी तो नहीं ले आए। वह व्यक्ति आश्वस्त था कि खरगोश ही लाया है। वह आगे बढ़ा। दूसरे चौराहे पर फिर एक आदमी मिला। उसने अब थोड़े तेज स्वर में कहा – ये लोमड़ी लेकर कहां जा रहे हो? थोड़े सम्हाल कर ले जाना, कहीं हानि न पहुंचा दे। अब थोड़ा उसको लगा, ऐसा तो नहीं, खरगोश की जगह लोमड़ी आ गई हो।

उसने खरगोश को गौर से देखा और मन ही मन कहा– अरे नहीं! यह तो खरगोश ही है। वह चलते हुए खरगोश को देखें कि कहीं …..?? उसने तीसरे चौराहे पर ज्यों ही कदम बढ़ाया और बहुत तेजी से आवाज आई– अरे भाई! क्या हमें मारना चाहते हो? उसने कहा – ऐसा क्यों कह रहे हो? ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि तुम लोमड़ी लेकर घूम रहे हो। अब मन में शंका पैदा हो गई। इतने लोग कह रहे हैं कहीं यही तो सच नहीं। मन में उधेड़ बुन चालू हो गई। सही क्या है? लोमड़ी या खरगोश……दिमाग में यह चल ही रह था कि इतने में चौथे चौराहे पर जैसा पहुंचा, बहुत ही जोर से आवाज आई– भागो! भागो! यह आदमी लोमड़ी का बच्चा लेकर घूम रहा है। बस होना क्या था? कोई भागा हो या न भागा हो, पर जो खरगोश का बच्चा लिए था, वह जरूर खरगोश को छोड़ के ऐसे भागा, फिर पीछे मुड़कर तक नहीं देखा। हैं न आश्चर्य की बात! एक नकारात्मक बात…. हमें किस हद तक नकारात्मक कर देती है।

हम उपर के उदाहरणों से समझ सकते हैं कि हमारी सोच ही और मान्यता एवं लोगों के द्वारा दिखाया जा रहा असत्य भी सत्य लगने लगता है। हमें सिर्फ इतना करना है कि सोच सकारात्मक बनाने के लिए खुद को तैयार करना होगा, जैसे –

– विचार करें कि मैं सबका हित करूं। हित न कर सकूं तो किसी का अहित न करूं।
– विचार करे सबका मन प्रसन्न रहे, वाणी मधुर और हितकारी हो।
– विचार करें कि नैतिकता का पालन करें, आपसी सहयोग, प्रेम, स्नेह, वात्सल्य का संचार करें।
– विचार करें कि बैर की गांठ न बंध पाए. जल्दी से बोलचाल चालू कर लेना.
– विचार करें कि आपसी तनाव और झगड़ों को ज्यादा लंबा न खींचे।
– विचार करें कि बदले की भावना से किसी के विरुद्ध कोई कार्य न करें।

पॉजिटिव एनर्जी के संचार के लिए कुछ सुझाव —

आपको चाहिए कि आप एक बॉस है तो अपने अधीनस्थ के प्रति होने वाली गलती के प्रतिउसे दंडित तो करें, लेकिन बदला न लें। इससे पॉजिटिव एनर्जी का संचार होगा।
– आपको चाहिए कि आप छोटों की भावनाओं का भी सम्मान करें, उनको महत्त्व दें और उन्हे सुनें।
– आपको चाहिए कि घर में महिलाएं की भावना के साथ-साथ उनकी सोच, विचार और परामर्श को ध्यान से सुनें।
– आपको चाहिए सामाजिक कार्यों में अपने विरोधियों को प्राथमिकता दें।
-आपको चाहिए कि देश और देश की सम्पत्ति के प्रति गौरव का भाव बनाकर रखें।
ये सब कार्य पॉजिटिव एनर्जी के सोर्स है। आप और हम करके तो देखें, रिजल्ट बहुत ही शानदार आयेंगे।

– डॉ आशीष जैन आचार्य शाहगढ़

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here