साधु संतों के आशीर्वाद से ही प्राणीमात्र का कल्याण संभव -मुनिश्री विलोकसागर

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मुरैना (मनोज जैन नायक) गुरुवाणी में सदैव आशीर्वाद छिपा होता है । गुरु कभी भी अपने भक्तों का अथवा संसार के प्राणी मात्र का अहित नहीं सोचते । साधु संत सदैव सम दृष्टि रखते हैं। सच्चे साधु हमेशा जन कल्याण की बात करते हुए सभी को सामान रूप से शुभाशीष प्रदान करते हैं। श्रावकों को भी अपने गुरु की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए, अपने गुरु पर अविश्वास नहीं करना चाहिए, अपने गुरु की बुराई नहीं करना चाहिए । सच्चे साधु कभी भी अपने स्वार्थ की बात नहीं करता, अपने हित की बात नहीं करता । वह तो सदैव प्राणी मात्र के कल्याण की बात करता है । जो संत अपने स्वार्थ की या अपने हित की बात करता है वो सच्चा संत हो ही नहीं सकता । इसलिए गुरु बनाने से पहिले अच्छी तरह विचार कर लेना चाहिए । गुरु आज्ञा शिरोधार्य कर उसका पालन करना चाहिए । जो व्यक्ति या प्राणी अपने गुरु की आज्ञा का उल्लंघन करता है, उनकी बुराई करता है वो कभी भी सुख शांति के साथ जीवन की नैया को पार नहीं कर पाएगा । इसलिए प्राणी मात्र को अपने गुरु बचनों पर अमल करना चाहिए, गुरु द्वारा बताए गए मार्ग का, दिए गए उपदेशों का अनुसरण करना चाहिए । तभी आपका कल्याण होगा । यदि आप ऐसा नहीं करोगे तो आपकी दुर्गति होना निश्चित है । उक्त उद्गार जैन संत मुनिश्री विलोक सागर महाराज ने बड़े जैन मंदिर में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए ।
णमोकर लेखन से भावों की शुद्धि होती है
प्रत्येक मनुष्य को सद कार्य करने हेतु दो दो हाथ मिले हैं। कोई तो इन हाथों का उपयोग अच्छे कार्यों को करने में लगाता है और कोई बुरे कार्यों को करने में इन हाथों का उपयोग करता है । इन्हीं हाथोंबदे हम प्रभु की पूजन और अभिषेक करते है, कुछ लोग इन्ही हाथों से चोरी चपाटी आदि किया करते हैं। अनादिनिदन महामंत्र णमोकार पापों का क्षय तो करता ही है, साथ ही आपके भावों को भी शुद्ध करता है । हे भव्य आत्माओं आप सभी लोग अधिकाधिक संख्या में णमोकार लेखन का कार्य करें । आपको जब भी समय मिले, तब लिखें । दुकान पर, ऑफिस में, घर पर आप जहां भी हों, इसका लेखन जारी रखें । ये वो पावन व पुनीत कार्य है जिससे आपका लोक और परलोक दोनों सुधर जायेगें ।

आचार्यश्री विद्यासागर का दीक्षा दिवस 30 जून को
परम पूज्य संत शिरोमणि समाधिस्थ आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज का 58वा दीक्षा महोत्सव 30 जून को पूज्य मुनिश्री विलोक सागर एवं मुनिश्री विबोधसागर महाराज के निर्देशन एवं सान्निध्य में विभिन्न धार्मिक आयोजनों के साथ हर्षोल्लास पूर्वक मनाया जाएगा ।
पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने आज से 58 वर्ष 30 जून पूर्व आषाढ़ शुक्ल पंचमी को वीतरागी जैनेश्वरी मुनिदीक्षा अंगीकार की थी । संयोग से इस वर्ष हिंदी और अंग्रेजी तारीख भी एक ही हो रही है ।
जैन दर्शन में व्यक्ति को नहीं, उसके गुणों को नमन किया जाता है
जैन दर्शन में किसी व्यक्ति विशेष की पूजा नहीं की जाती । किसी व्यक्ति विशेष की आराधना या भक्ति नहीं की जाती । बल्कि जैन दर्शन व्यक्ति विशेष के आचरण को पूजता है । जैन दर्शन में व्यक्ति विशेष के गुणों की पूजा की जाती है ।

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