वर्तमान में लोग साधुओं को पंथों, ग्रन्थों और जातियों में बांट कर और पंथ की आड़ लेकर साधुओं को बदनाम कर रहे हैं। आज साधु भी साधु के प्रति लोगों में अश्रद्धा का भाव उत्पन्न करा रहे हैं ।साधु का महत्व वैभव से नहीं वीतरागता से है।
यह उद्गार आज दिगंबर जैन आदिनाथ जिनालय छत्रपति नगर में उपाध्यक्ष श्री विश्रुत सागर जी महाराज ने प्रवचन देते हुए व्यक्त किए ।
आपने कहा कि सम्यक दृष्टि बनना है तो आगम की सुनो और देव शास्त्र गुरु पर समीचीन श्रद्धा रखो जो जीव आगम की नहीं माने वह मिथ्या दृष्टि है। आपने कहा कि जब प्रतिमा को नमस्कार कर सकते हो तो अरिहंत की मुद्रा को भी नमस्कार करें।
इस अवसर पर मुनि श्री निर्वेद सागर जी महाराज ने भी धर्म सभा में प्रवचन देते हुए कहा कि बच्चों को बचपन से ही संयम और संस्कार का महत्व बताएं और उनमें संस्कार डालें। संयम एवं संस्कार से व्यक्ति के जीवन में गुणवत्ता बढ़ती है और नर से नारायण बनने का मार्ग प्रशस्त होता है।
उपाध्यक्ष श्री के पाद प्रक्षालन श्री राकेश जैन एवं आलोक जैन ने किये एवं श्रीमती सुशीला जैन, सोनाली बागड़िया एवं मनीषा जैन ने उपाध्यक्ष श्री को शास्त्र भेंट किये। धर्म सभा का संचालन डॉक्टर जैनेंद्र जैन ने किया।
श्रीमान संपादक महोदय कृपया विज्ञप्ति प्रकाशित कर अनुग्रहित करें। धन्यवाद राजेश जैन दद्दू धर्म समाज प्रचारक
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