मुरैना (मनोज जैन नायक) वर्तमान में साधु संतों के दर्शन, साधु संतों का सान्निध्य, साधु संतों के प्रवचन सभी श्रावकों को सहज ही मिल जाते है । बीते हुए समय में साधु संतों के दर्शन, उनका सान्निध्य, उनके प्रवचनों का मिलना बहुत ही दुर्लभ था । जब भी आपको साधु संतों का सान्निध्य मिले तो उस अवसर को चूकना नहीं चाहिए । साधु संतों के सान्निध्य का पूरा लाभ उठाना चाहिए, उनके प्रवचनों के माध्यम से अपने जीवन में बदलाव अवश्य लाना चाहिए । प्रत्येक श्रावक का कर्तव्य है कि साधु संतों की चर्या में सहयोग प्रदान करे । साधक की साधना में सहयोगी बनना श्रावकों का कर्तव्य है । आप साधु तो बन नहीं पा रहे हो, लेकिन जो साधु बन गए हैं, उनकी साधना में सहयोगी तो बन ही सकते हो । साधक की साधना में हर कोई सहभागी या सहयोगी नहीं बन सकता । हजारों लोगों में से कुछ विरले लोग ही होते हैं जो ऐसे पुनीत कार्यों को कर पाते है । क्योंकि अच्छे कार्य को करते समय व्यक्ति हजार वार सोचता है । अनेकोवार वह सद कार्यों को करने का मन बनाता है, लेकिन कर नहीं पाता । उक्त उद्गार बड़े जैन मंदिर में चातुर्मासरत आचार्यश्री आर्जवसागरजी महाराज के शिष्य मुनिश्री विलोकसागरजी महाराज ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
संयम की साधना में सहयोगी कैसे बनें
दिगम्बर साधु संतों का जब भी आपको सान्निध्य मिले आप उनकी चर्या में सहभागी अवश्य बनना । साधुओं के धर्माध्यान, स्वाध्याय, अध्ययन के लिए साफ स्वच्छ, शांतिपूर्ण स्थान उपलब्ध कराना, उनके लिए उचित शुद्ध आहार की व्यवस्था कराना, उनके निहार हेतु उचित व्यवस्था कराना, उनके कमंडल में जल की व्यवस्था, स्वाध्याय हेतु शास्त्रों की व्यवस्था एवं प्रवचनों के लिए समुचित व्यवस्था कराना श्रावकों का मुख्य कर्तव्य है । सभी साधर्मियों को इन कार्यों के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए । श्रावकों को कभी भी इन कार्यों से विमुख नहीं होना चाहिए ।ज्यादा कुछ नहीं कर सकते तो जब साधु आहारचर्या को निकलें तो उस मार्ग के अवरोधों को दूर करके भी आप साधक की साधना में सहभागी बन सकते हैं। और कुछ नहीं तो आप साधु की बैयावृत्ति तो कर ही सकते हैं।
साधक स्व कल्याण के साथ पर कल्याण की भावना रखता हैं
साधक का अर्थ है वह व्यक्ति जो आध्यात्मिक मार्ग पर चलता है, किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए साधना करता है । सामान्य अर्थों में हम उसे साधु, संत, तपस्वी कह सकते है । जबकि एक व्यापक अर्थ में यह कोई भी व्यक्ति हो सकता है जो किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयास करता है । धार्मिक संदर्भों में, साधक वह व्यक्ति होता है जो ईश्वर या अंतिम सत्य यानिकि मोक्ष को पाने के लिए साधना करता है । जैन दर्शन में दिगम्बर मुनि, साधु, संत सभी स्व कल्याण के साथ साथ पर कल्याण की भावना रखते हैं। उनका अंतिम लक्ष्य राग द्वेष, मोह आदि का पूर्ण रूप से त्यागकर, इस असार संसार के जन्म मृत्यु के चक्रव्यूह से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करना होता है ।
अपने इष्ट पर श्रद्धा रखो, कष्ट स्वत: भाग जायेगें
संकट के समय, परेशानियों के समय, विपत्तियों के समय अपनी सम्पुर्ण आसक्ति, अपनी सम्पूर्ण आस्था, सम्पूर्ण श्रद्धा अपने ईष्ट पर अपने जिनेंद्र प्रभु पर रखना । जब जिनेंद्र प्रभु पर, अपने इष्ट पर, अपने गुरुओं पर आपकी श्रद्धा, भक्ति और आस्था होगी तो प्रतिकूलतायें भी अनुकुलताओं में बदल जायेगी । वीतरागी निर्गंथ साधुओं का सानिध्य, उनका आशीर्वाद, आपके सिर पर उनका हाथ, जिनेंद्र प्रभु के प्रति सच्ची निष्ठा एवं सात्विक साधना से सांसारिक प्रतिकूलताओं को भी अनुकुलता में बदला जा सकता है । जैसे सूर्य के उदय होने पर अंधेरा स्वत: समाप्त हो जाता है, वैसे ही प्रभु की भक्ति करने से जीवन में आने वाले दुख दर्द और कष्टों का नाश हो जाता है ।
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