सबसे पुराने मुनिराज श्री भूतवलि सागर जी की हुई समतापूर्वक समाधि

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आचार्य श्री विद्यासागर जी के प्रथम ऐलक का गौरव भी था

(रत्नेश जैन रागी बकस्वाहा)

आष्टा / – इस पंचमकाल में भी चतुर्थ काल की चर्या निभाने वाले सबसे पुराने मुनि पद पर विराजमान 46 वर्ष पुराने मुनिराज संतशिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम शिष्य श्री 108 भूतवली सागर जी महाराज का आज 27 मार्च 2024 बुधवार को 2.35 बजे मध्यप्रदेश के सीहोर जिले के आष्टा नगर में सल्लेखना पूर्वक समाधिमरण हो गया है । पूज्य मुनि श्री आष्टा के किला जैन मंदिर में ससंघ विराजमान थे । पूज्य मुनि श्री का दो दिन पूर्व आहारचर्या के उपरांत अचानक स्वास्थ्य खराब हो गया था , तभी से वह मौन होकर सल्लेखना व्रत धारणकर आत्मसाधना में लीन हो गए थे ।
मुनि श्री के बचपन का नाम ब्रह्मचर्य भीमसेन भैया जी था एवं कर्नाटक के बेलगांव जिले में ही आपका जन्म हुआ था। आप क्षुल्लक मणिभद्र महाराज के साथ अध्ययन के लिए आचार्य श्री विद्यासागर जी के पास राजस्थान आए व आचार्य श्री के कर कमलों से प्रथम ब्रह्मचारी व्रत लिया । आपकी क्षुल्लक व ऐलक दीक्षा आचार्य श्री विद्यासागर जी के कर कमलों से हुई , आप आचार्य श्री से दीक्षित प्रथम ऐलक भी थे , उस समय आपका नाम ऐलक दर्शन सागर जी रहा । तात्कालिक कारणों से 31 जनवरी 1980 में आचार्य श्री विमल सागर जी से मुनि दीक्षा ली और दीक्षा गुरु के संकेत पर आचार्य श्री विद्यासागर जी को ही अपना गुरु माना । दीक्षा के बाद आपने उत्तर से दक्षिण भारत तक जैन धर्म का प्रचार प्रचार किया । हजारों लोगों को सम्यक्त्व मार्ग की राह दिखाई । वर्तमान में आपके तीन मुनि शिष्य मुनि श्री मुक्ति सागर जी, मुनि श्री मौन सागर जी , मुनि श्री मुनिसागर जी महाराज तथा बाल ब्रह्मचारिणी मंजू दीदी जी हैं। आष्टा में ही आज आपकी असाध्य रोग के कारण सल्लेखना से समाधि सम्पन्न हुई है।
अपने 46 वर्ष पुराने मुनि होकर भी कहीं पद आदि के लोभ में अन्य स्थान पर नहीं गए और ना ही किसी तरीके से मिथ्यात्व का पोषण किया । आप आडम्बरों सदैव दूर रहें, जहां-जहां भी आपका प्रवास आदि रहा , वहां अपने सम्यक मार्ग का प्रचार ही किया । अपने गुरु आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के अंतिम दर्शनों का सौभाग्य आपको जैन सिद्धक्षेत्र नेमावर में तीन वर्ष पूर्व मिला था ।
पूज्य मुनिश्री की जन्मभूमि कर्नाटक प्रांत भले ही हो परन्तु उनकी भी आचार्यश्री की भांति कर्मभूमि मध्यप्रदेश बुंदेलखंड में भी रही है , उनका छतरपुर जिले के बड़ामलहरा में वर्ष 2013 तथा वर्ष 2014 तथा वर्ष 2015 में बकस्वाहा में मंगल चातुर्मास का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ था , जो समाज को अविस्मरणीय रहेगा। पूज्य गुरुदेव ने अपने भावों की निर्मलता से उत्कृष्ट भव परिवर्तन कर लिया है और आचार्यश्री के चरणों में ठीक सवा महीने बाद आचार्यश्री के समवशरण में विराजमान हो गए हैं । हम सब भावना करते हैं कि आपकी आत्मा अल्पकाल में अपने कर्मों का क्षय कर रत्नात्रय के द्वारा सिद्धदशा प्रकट होवें।
हम सबके आराध्य गुरुदेव की समतापूर्वक समाधिमरण होने पर सम्पूर्ण देश की समाज को अपूर्णीय क्षति हुई है , आज पूज्य गुरुदेव की आष्टा जैन मंदिर जी में विनयांजलि सभा आयोजित की गई , उसके पश्चात डोला निकाला गया जिसमें देश के हजारों की संख्या में भक्त शामिल हुए। पूज्य गुरुदेव को जैन तीर्थ नैनागिरि ट्रस्ट अध्यक्ष सुरेश जैन आईएएस , प्रबंध मंत्री देवेन्द्र लुहारी ,जैन तीर्थ द्रोणगिरि के अध्यक्ष कपिल मलैया , मंत्री सुनील घुवारा ,सनत कुटोरा , जैन तीर्थ नैनागिरि ट्रस्ट के मंत्री व द्रोणगिरि प्रबंध उपाध्यक्ष व बकस्वाहा समाज अध्यक्ष राजेश जैन रागी, बड़ामलहरा प्रमुख भागचंद्र पीलीदुकान अधिष्ठाता उदासीन आश्रम, पं .शुभम शास्त्री,राजेन्द्र लल्लू मण्डी, महेश डेवडिया,शील मंजुला डेवडिया, लोकेश शाह, बकस्वाहा प्रमुख डॉ जीवन कुमार,डा मुकेश चौधरी,सुकमाल गोल्डी, वीरेंद्र सिंघई, शैलेश शाह,सुमत कुमार नाहर , नाथूराम मलैया , सचिन मझगुवां सहित देश के हजारों महानुभावों ने भावभीनी विनयांजलि दी है।

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