सबके प्रेरणा स्रोत श्री रतन टाटा उद्योगपति से भी पहले बडे समाजसेवी थे

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भारत में सुई से लेकर हवाई जहाज तक, चाय से लेकर नमक, आटा, काफी तक, आटो से लेकर ट्रक तक, नैनो कार से लेकर रेंज रोवर कार तक, पंखों से लेकर
वोल्टाज ऐसी तक बनाने वाले देश के प्रसिद्ध उद्योगपति श्री रतन टाटा का निधन 9 अक्तूबर 2024 को मुंबई में निधन हो गया, जिससे देश भर में शोक की लहर
छा गई। उनके निधन के बाद ही लोगों को पता चला कि वे एक उद्योगपति ही नही बल्कि एक महान मानवतावादी विचारक तथा बहुत बडे समाजसेवी भी थे।
उनकी सादगी देश और राष्ट्र निर्माण में योगदान हमेशा याद रहेगा। उनके पास जितनी धन दौलत थी उससे भी ज्यादा उदारता थी। वे अपनी आय का 60 प्रतिशत
हिस्सा समाजसेवा में दान करते थे। वे बडे पशु प्रेमी भी थे, यहां तक कि अपने पालतू कुत्तों के लिए भी वे वसीयत कर गए हैं।
मुझे याद आया एक बार वे गाडी से कहीं जा रहे थे, कि रास्ते में तेज बारिस शुरू हो गई, उनकी गाडी को भी रूकना पडा, तभी उन्होने खिडकी से बाहर
झांककर देखा कि एक स्कूटर पर पति- पत्नि और उनके दो बच्चे भीगते हुए जा रहे थे। वे गहरे चिंतन में उतर गए, उन्होने तभी संकल्प लिया कि मैं एक छोटी
कार बनाउंगा, जो कम आय वाले लोगों के लिए होगी उसकी कीमत केवल एक लाख रूपए होगी जो हर किसी की एप्रोच में होगी। और फिर कुछ ही दिनों में
उन्होने एक लाख रूपए कीमत की ही नैनो कार बनाई जो लखटकिया कार कहलाई और देखते ही देखते कम आय वाले लोगों की चहेती बन गई। उस नैनो कार
ने एक आम आदमी के जीवन में एक क्रांति सी उत्पन्न करदी। हालांकि यह योजना कुछ दिन बाद असफल हो गई। लेकिन इससे हमें रतन टाटा की मानवीय
भावना का तो पता चलता ही है।
एक बार किसी ने उनसे पूछा कि आपको जीवन में सबसे ज्यादा खुशी कब और कैसे मिली तो उन्होने कहा -”  मुझे अपार धन-दौलत कमाने से वो सुख नही
मिला, महलनुमा घर होने पर भी मुझे वो सुख नही मिला, उद्योग जगत में खूब नाम कमाने पर भी वो सुख नही मिला, जो सुख मुझे एक बार दो सौ बच्चों को
व्हीलचेयर देने से मिला। एक बार मेरे एक मित्र ने कहा कि 200 व्हीलचेयर खरीदनी हैं, मैने तुरंत स्वीकृति दे दी और दो सौ व्हीलचेयर खरीद ली गई। मित्र ने कहा
सर आप भी चलें। मैं उनके साथ चल दिया। मैने वहां जाकर देखा सभी बच्चे अपंग हैं, सब बच्चों को हमने अपने हाथों से एक-एक व्हीलचेयर दी। उस समय मैने
बच्चों के चेहरे पर जो खुशी देखी जो आनंद देखा, वह अदभुत और अकल्पनीय था, सच में मेरी आंखों से आंसू निकल आए। उस समय, जब बच्चे व्हीलचेयर पर
बैठकर वहां घूम रहे थे, मस्ती कर रहे थे, तो वह सब देखकर ऐसा लगा कि जैसे बच्चें किसी पिकनिक स्पाट पर घूम रहे हों, और मुझे उससे भी अधिक खुशी तब
मिली जब मैं वहां से लौटने लगा तो कुछ बच्चों ने मेरे पैर पकड लिए, मैने पूछा- कुछ और चाहिए क्या, बच्चों ने जो जवाब दिया, सुनकर मेरी रूह कांप गई और
मेरा दृष्टिकोण ही बदल गया। एक बच्चा बोला-सर, मैं आपका चेहरा याद रखना चाहता हूं, ताकि जब मैं आपसे स्वर्ग में मिलूं तो आपको पहचान सकूं,और धन्यवाद
दे सकूं। मेरा कहने का मतलब यह है कि हमें अपने अन्तर्मन में झांकना चाहिए और मनन करना चाहिए कि हमें किस चीज के लिए याद किया जाएगा। क्या कोई
आपका चेहरा फिर से देखना और याद रखना चाहेगा। नियति का अकाटय नियम है- जो आया है, उसे जाना पडेगा। जो जन्मा है उसे मरना भी पडेगा। अतः हम
ऐसे काम क्यों न करें कि कोई हमें मरने के बाद भी याद करे। ”
प्रस्तुतिः रमेश चंद्र जैन, एडवोकेट नवभारत टाइम्स नई दिल्ली।

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