सबका मालिक एक मोबाइल ! – विद्या वाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन भोपाल

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महाभारत के युध्य के दौरान संजय ने धृतराष्ट्र को पूरा युध्य का विवरण सुनाया था . पहले भक्तों की पुकार देवी देवता भगवान विलम्ब से सुनते थे कारण उस समय तपस्या करना पड़ती थी तब वो प्रसन्न होते थे .पहले समाचार का आदान प्रदान बहुत कठिन होता था ,कब कौन सी घटना कब घट जाये पता नहीं चलता था .पहले चिठ्ठी ,फिर टेलीग्राम ,फ़ोन का अविष्कार हुआ .तब टेलीग्राम और फ़ोन आने से ह्रदय की धड़कन बढ़ जाती थी ,क्योकि इनका आना अनिष्ट समाचार की सूचना होती थी.जितना संपर्क कम रहता था उतना सुखी रहते थे .कोई पत्र सूचना का न आना इस बात का सूचक होता था की सब जगह ठीक हैं .इसके अलावा मनुष्य अपने परिवार ,समाज को समय देते थी और स्वयं बहुत समय मिल जाता था जिससे वह मनुष्य कुछ आत्मचिंतन ,कोई दिमाग की हलन चलन करता था.लेखन .पठन,.पाठन ,चिंतन मनन करने का समय मिल जाता था.कभी कभी चिंतन में यह बात आती हैं की बहुत पहले टी वी ,मोबाइल आदि मनोरंजन के साधन उपलब्ध होते तो संभवतः पूर्व में जितना साहित्य सृजन हुआ ,उतना न हो पाता ,
पहले सब परिवार के लोग एक साथ खाना कहते ,आपस में बातचीत करते ,रिश्तेदारों के यहाँ आना जाना होता रहता था,सुख दुःख की बाते होती थी ,बच्चो को शिक्षा देना ,कहानी सुनाना,हंसी मजाक करना और मिलने से आत्मीयता मिलती थी और बनती थी .विकास का होना गलत नहीं हैं पर विकास में हम इतने गाफिल हो गए की अब स्वयं स्वयं से दूर होते चले जा रहे हैं ,परिवार का अस्तित्व खतरे में पड़ने लगे.आज व्यक्ति एकाकी जीवन के साथ अपनी दुनिया में खो रहा हैं ,उसमे संवेदनशीलता ख़तम हो रही हैं वह काल्पनिक दुनिया में जीने लगा ,अब उसके पास समय की कमी हैं जबकि उसके समय से उसकी उत्पादकता नहीं बढ़ी.
सबसे पहले टी वी संस्कृति ने परिवार /रिश्तेदारों से दूरियां बढ़ाई .टी वी ने एक ऐसा व्यसन समाज में परोसा जिससे समाज परिवार सप्ताह के दिन सीरियल से जानने लगा .सीरियल द्वारा जो परोसा गया उससे उसकी मांग बढ़ गयी और इसी बीच जो विज्ञापनों ने हमारे दिमाग पर जो स्थायी प्रभाव डाला उससे स्वयं और परिवार में अशांति होने लगी .सीरियल से हमने अपना रहन सहन ,बोल चाल खान पान में परिवर्तन लाना शुरू किया .जो समय आराम का होता था या हैं वह सीरियल को देखने में जाता हैं ,सीरियल के दौरान मेहमान /परिवार के सदस्य दुशमन जैसा लगने लगता हैं .प्रधानता सीरियल की होने से उनकी कहानी याद रहती थी या हैं और आपस में बात चीत का विषय सीरियल की कहानी होती हैं .जिससे मानसिक विकारती का आना शुरू हुआ.
आज टी वी के सामने भोजन करने की संस्कृति ने हमारे मनोभावों पर दूषित विचारधारा परोसने का काम किया .शिशुओं को शुरू से टी वी के सामने बैठकर दूध पिलाना ,खाना खिलाना यह आम बात हो गयी .साल भर का बच्चा टी वी का रिमोट और मोबाइल की बटन चलाना सीख कर उसका व्यसनी होने लगा और वह बालक यदि लगातार ८ वर्ष का टी वी देखता हैं तो वह उस अवधि में १ लाख से अधिक हत्याएं और पचास हज़ार बलात्कार क्र दृश्य देख चुकता हैं .और यदि वह मोबाइल का उपयोग ८ वर्ष की उम्र से सीख जाता हैं तो यह मानकर चले वह उस उम्र में बहुत अधिक जानकार हो जाता हैं .आज यौनाचार बहुत सरल सुगम हो चूका हैं और जब वह थ्योरी देखता हैं तब वह प्रेक्टिकल करना शरू करता हैं और वह अपराधी की श्रेणी में आने लगता हैं .यह बुनियाद उसके युवावस्था तक पहुंचने पर इतना अधिक व्यसनी हो जाता हैं की वह दिन रात मोबाइल से जुड़ा रहता हैं ,उसके मन मस्तिष्क में मोबाइल ,इंटरनेट ,लेपटॉप का इतना प्रभाव हो जाता हैं की उसके बिना उसका जीवन अधूरा लगने लगता हैं .
आज मोबाइल से मात्र फेस बुक ,व्हाट्सप्प ,ट्विटर मैसेंजर के द्वारा सब कुछ ज्ञान प्राप्त कर लेता हैं .इस समय मोबाइल में इंटरनेट एक ईश्वरीय अवतार के रूप में आ गया .जिसके द्वारा सब प्रकार का ज्ञान जैसे विज्ञानं ,तकनिकी ,स्वस्थ्य ,समाचार आदि क्या नहीं हैं जो उससे नहीं मिल सकता .इसके अलावा समय की कमी के कारण कार मोटर साइकिल आदि में चलते चलाते मोबाइल का उपयोग होने से मध्य प्रदेश में ११७ मौते हुई वर्ष २०१७ में और ७१७ दुर्घटनाये मोबाइल के कारण २०१७ में हुई .७१७ दुर्घटनाये मोबाइल के कारण जिसमे कुल ५३३९९ एक्सीडेंट २०१७ में मध्य प्रदेश में हुई थी. मध्य प्रदेश देश में एक्सीडेंट के मामलों में चौथा नंबर पर हैं .उत्तर प्रदेश ,तमिलनाडु और महाराष्ट्र क्रमशः तीसरे नंबर पर हैं .इसके अलावा मध्य प्रदेश देश में मोबाइल से मौतों के मामले में छटवां नंबर पर हैं .
भारतवर्ष में ८५२६ मौतेमोबाइल उपयोग करते समय रोड एक्सीडेंट से हुई जबकि भारत में रोड एक्सीडेंट्स की संख्या ४६४,९१० हैं यानि १.८% मोबाइल के कारण मौतेहुई .जबकि मोबाइल मोटर साइकिल चलाते समय उपयोग करने पर १००० रूपए जुर्माना हैं और सरकार इस पर ५००० रूपए का जुर्माना लगाने का प्रावधान ला रही हैं .ये तो एक गंभीर आकंड़ा हैं .इसके अलावा मोबाइल से होने वाले सोशल मीडिया के कारण असंख्य अपराध अनेक प्रकार के हो रहे हैं .इनसे बचाना मुश्किल हो गया हैं .आज काम उम्र क्र बच्चों द्वारा बलात्कार के कृत्य किये जा रहे हैं .लड़कियां समय से पहले माँ बनने की क्षमता प्राप्त करने लगी हैं .
मोबाइल संस्कृति ने हमारी सोच को कुंठित कर दिया .कोई मौलिक चिंतन नहीं ,आज घरों में आपस में बात करने का समय नहीं हैं .जितने लोग उनसे अधिक मोबाइल.एक के पास दो दो मोबाइल होना आम बात हैं .आपस में बैठे हैं पर बहुत दूर हैं .इससे हमारी मानवीय गुणों की क्षति हो रही हैं .आपसे प्रेम सद्भाव ख़तम .मात्र एक औचारिकता हो गयी हैं .नए नए मोबाइल के जरिये हम एक दूसरे से हुबहु देख लेते हैं और बात चीत हो जाती हैं उससे लगाव कम होता जा रहा हैं.मोबाइल संस्कृति से शादी के पूर्व इतनी अधिक बातें होने से युवा युवतियों में पहले से एक दूसरे के परिवारों के नजरियों से वाक़िफ़ होने से बहुत जल्दी भरम टूट जाते हैं और इसके कारण तनाव और तलाक़ होना आम बात हैं .अब किसी को किसी से अजनबीपन नहीं रहता .तलाक का मुख्य कारण मोबाइल का होना वर्तमान में आम बात हैं .जैसे ही युवती या युवा में कोई विवाद हुआ तत्काल लड़की अपने परिवार जनों से सम्पर्क कर निर्णय लेती हैं जबकि पहले चिठ्ठी द्वारा समाचार भेजने से समय लगता था तब तक घटना बांसी हो जाती थी और कटुता दूर होने लगती थी ,
बच्चों के अबोध मन पर इसका इतना अधिक दूषित प्रभाव पड़ रहा हैं .आज बच्चे के जन्म के तुरंत बाद मोबाइल से फोटो लेना उससे बच्चों की आँखों और त्वचा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हैं .आजकल खिलोने की जगह मोबाइल लेने के कारण वह अपनी उंगलिया मोबाइल पर चलाना शुरू कर देता हैं और फिर छह माह के बाद से ही वह शिशु बिना मोबाइल और टी .वी के नहीं रह सकता और वह उसी समय से हठी और विद्रोही भाव पनपने लगते हैं .और उसकी बात की पूर्ती न होने पर वह आक्रोश व्यक्त करना शुरू कर देता हैं और वह मोबाइल .टी वी को अपनी दुनिया समझने लगता हैं .उससे बात करने पर भी उसका मन टी वी या मोबाइल पर होता हैं ,और न मिलने पर रोना या एक प्रकार की छटपटाहट शुरू हो जाती हैं जो उसको व्यसनी बनाने के लिए काफी हैं .आजकल टी वी या मोबाइल देखते बच्चे स्कूल का होम वर्क करते हैं और आगे चलकर वे स्वयं के लिए मोबाइल की मांग करने लगते हैं .और आजकल एक या दो संतान होने पर और आर्थिक सम्पन्नता के साथ समयाभाव होने से उनकी मांग की पूर्ती होने से और अधिक व्यसनी होकर अपनी दुनिया में खो जाते हैं . पहले छोटे छोटे घर होते थे तब उन्हें एकांत स्थान नहीं मिलता था ,अब अलग लग कमरे में वे क्या कर रहे हैं इसकी जानकारी उनके अलावा किसी को नहीं .तथा उनमे झूठ बोलने का आदत पड़ने लगी .घर में होते हुए बाहर और बाहर होते हुए घर पर बताना आम बात हो गयी हैं .
आधुनिकता की होड़ में हमें बराबरी से भाग लेना हैं जिससे हम पिछड़ न जाये पर यह सब एक सीमा तक हो तो ठीक हैं पर जब असीमित होने लगती हैं तब वह स्वयं और परिवार के साथ समाज को प्रभावित करती हैं .इसके लिए स्व नियंत्रण के साथ स्व अनुशासित हो .सबसे पहले १५ वर्ष के पहले तक या पढाई का लक्ष्य न प्राप्त कर ले तब तक मोबाइल से दूर रखे .इसके साथ माँ बाप भी इस पर कठोरता से पालन करे .दूसरा एक निश्चित समय निर्धारित करे की अमूमन एक घंटा देखना हैं इसके अलावा नहीं .बड़े बड़े वैज्ञानिकों ने अपने घर पर मोबाइल ,टी वी का उपयोग नहीं किया और उसके बाद उनके बच्चे योग्य निकले तब उपयोग करने दिया .यहाँ एक विचारणीय प्रश्न हैं शिक्षा लेने वाले बच्चों को कितना समय मिलता हैं ?स्कूल कॉलेज के बाद कुछ क्षण आराम ,खेलना और फिर होम वर्क .यदि वे मोबाइल या टी वी में अपना समय व्यतीत करते हैं तब उनका बहुमूल्य समय व्यर्थ चला जाता हैं .इसके लिए आत्मानुशासन की जरुरत हैं .
दिशबोध देना हमारा कर्तव्य हैं ,चलना न चलना आपका का काम हैं .पर वर्तमान में जो विकृतियां आ रही या हो रही उनमे इसका बहुत योगदान हैं .यदि सीमित और उपयोगी जानकारी के लिए उपयोग करना अच्छा हैं वरन यह एक ऐसा मीठा जहर हैं जो इसके चंगुल में फंसा तो निकलना कठिन होता हैं ,असंभव नहीं हैं पर सुगम सरल भी नहीं हैं .इसके उपयोग से समय की बर्बादी के अलावा यदि हम गलत आदतों के शिकार हुए तो हम स्वयं शिकारी हो जाते हैं .हर सिक्के के दो पहलु हैं ,जिसको जिस प्रकार उपयोग करना हैं .
आज इस कारण गूगल ,मोबाइल को भगवान् मानने लगे ,
जबकि ज्ञान, ध्यान ,भोग, भोजन ,व्यायाम स्वयं को करना होता हैं
ये हमारे मार्गदर्शक हो सकते हैं ,पर मार्ग नहीं
मार्ग पर स्वयं चलकर अनुभव लेना होगा
दूसरों की वैसाखी पर कितना चलोगे
ये मीठे जहर हैं जहर हमेशा नुकसानदायी होता हैं
हर सिक्के के दो पहलु होते हैं अभिशाप और वरदान
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन, संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक ब्लू, नियर डी मार्ट, ,होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026 मोबाइल 09425006753

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