रोते रोते जीओगे, अपने भी पराये हो जायेंगे। हँसते मुस्कुराते जीओगे, तो पराये भी अपने हो जायेंगे

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रोते रोते जीओगे, अपने भी पराये हो जायेंगे। हँसते मुस्कुराते जीओगे, तो पराये भी अपने हो जायेंगे         अन्तर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी महाराज      औरगाबाद सवाददाता नरेद पियुष जैन   अन्तर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी महाराज की कुलचाराम से बद्रीनाथ अहिंसा संस्कार पदयात्रा चल रही है आज विहार दरम्यान उपस्थित गुरु भक्तों को संबोधित करते हुए आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी महाराज ने कहा कि
कितना जीवन है, ये हमारे आपके हाथ में नही है बाबू.. परन्तु कैसे जीना, कैसे रहना है, ये तो हमारे आपके हाथ में ही है..!
रोते रोते जीओगे, अपने भी पराये हो जायेंगे। हँसते मुस्कुराते जीओगे, तो पराये भी अपने हो जायेंगे। कैसे जीना है-? ये आप हम पर निर्भर करता है। जीने की दिशा सही हो और विवेक पूर्वक चल रहे हो, तो कभी भी मंज़िल लक्ष्य से दूर नहीं हो सकती।अन्यथ: चलते रहो-चलते रहो फिर तो मरघट भी नहीं मिलेगा, सीधे बंगाल की खाड़ी पहुंचोगे। इसलिए अपनी मन की दुषप्रवृतियों को, मन की दुर्बलताओं को, छोड़कर अपनी आत्मिक शक्ति, आंतरिक विभूतियों, आत्म विश्वास को जान कर जीवन जीयें,, तभी जीवन में सफल हो पाओगे अन्यथ आज का आदमी अपने जीवन में केवल नष्ट-भ्रष्ट होने वाली सम्पदा के लिये खून पसीना बहा रहा है, और उसी के सहारे महान बनने का सफल प्रयास कर रहे हैं। संसार का वैभव एक मादक पदार्थ है जो अनेक प्रकार के उन्मादों को जन्म देता है। जिसके फेरे में फंसकर हमने जो अर्जित की पुण्य, कीर्ति, तप साधना – वो यहीं नष्ट हो जायेगी और यहाँ से खाली हाथ विदा कर दिये जाओगे।अब यहाँ से खाली हाथ नहीं — तप, त्याग, संयम, पुण्य और धर्म के अपार वैभव के साथ जाना है।तभी ये जन्म सफल होगा ।अन्यथ: अन्धों की बस्ती में दर्पण की दुकान जैसा हाल…!!! नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद

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