रिश्ते निभाने के लिये बुद्धि की नहीं..

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भावों की शुद्धि होनी चाहिये..!आचार्य 108 श्री प्रसन्नसागरजी महाराज
 औरंगाबाद _हैदराबाद पियुष/नरेंद्र जैन वात्सल्य दिवाकर पुष्पगिरी तीर्थ प्रणेता आचार्य श्री पुष्पदंत सागरजी महाराज के परम प्रभावक सुशिष्य साधना
महोदधि अंतर्मना आचार्य 108 श्री प्रसन्नसागरजी महाराज एवं सौम्यमूर्ति उपाध्याय 108 श्री पीयूष सागरजी महाराज का चतुर्विध संघ के साथ श्री
1008 चंद्रप्रभु दिगंबर जैन मंदिर क आगापुरा में भव्य मंगल प्रवेश हुआ।  पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर मे प्रवचन  मे कहा की
रिश्ते निभाने के लिये बुद्धि की नहीं..
भावों की शुद्धि होनी चाहिये..!
सत्य कहो, स्पष्ट कहो, सम्मुख कहो — जो अपना होगा, वो समझ जायेगा और जो पराया होगा, वो छूट जायेगा। इसलिए मौका सबको मिलता है, वक्त सबका आता है — कोई चाल चल जाता है, तो कोई बर्दाश्त कर जाता है।
यदि वाणी, व्यवहार से किसी को नीचा दिखाने की कु-चेष्ठा करते हैं, तो मानकर चलना कि हमें स्वयं को भी नीचा देखना पड़ सकता है। जैसे दूसरे के मुख को काला करने के लिये पहले स्वयं के हाथ को काला करना पड़ता है, या दूसरे को गाली देने से पहले, स्वयं के मन को गन्दा करना पड़ता है या दूसरों को गढ्ढे में डालने से पहले, स्वयं को गढ्ढे में उतरना पड़ता है। वैसे ही व्यक्ति का — स्वयं का कर्म, स्वयं पर ही लौटकर आता है। इसलिए दूसरों की लकीर को तुम स्वयं कभी मत मिटाओ बल्कि अपनी लकीर को इतना बड़ा कर दो कि सामने वाले को उसे मिटाने में तारे जमीं पर दिख जाये। अन्यथा दूसरों की खींची हुई लकीर को मिटाकर, अपनी लकीर को बड़ा करना मूर्खता और पागलपन के ही लक्ष्ण है।
हम किसी की कीर्ति, ख्याति, प्रशंसा, गुणों को देखकर या वैभव और बढ़ोतरी देखकर — ईर्ष्या, द्वेष से ना जले अपितु ईश्वर की मर्जी मान कर सहज स्वीकार कर लें…!!! नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद

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