ऋषभ विहार में भव्य श्री सम्मेद शिखरजी रचना पर आचार्य श्री सुनील सागरजी का आहवान

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नई दिल्लीः दिगंबर जैन मंदिर ऋषभ विहार में श्री सम्मेद शिखरजी की आकर्षक रचना पर 23 अगस्त को आयोजित भव्य समारोह में विशाल संघ सहित विराजित आचार्य श्री सुनील सागर जी ने कहा कि जिनशासन में जन्म होना हमारा अहोभाग्य है, जीवन में सत्संग के अवसर बडी मुश्किल से तथा बडे सौभाग्य से मिलते हैं, आधुनिक जीवन शैली बडी खतरनाक होती जा रही है, शील और संयम लोगों की समझ में नही आ रहा है, कुटुम्ब संभालना कठिन होता जा रहा है, ऐसे में हम सभी को सावधान रहना है।
प्रत्येक व्यक्ति को धर्म के पालन और संरक्षण में उदारता, धीरता व गंभीरता रखनी है। देश भर में सभी तीर्थों व मंदिरों का संरक्षण जरूरी है। मंदिर की वस्तु व्यक्तिगत लाभ के लिए नही होती। क्रोध, मान, माया लोभ त्याग कर सीधे-सरल जीवन में ही असली आनंद है। सत्संगति से पूरा जीवन बदल जाता है। प्रत्येक आत्मा सरल और सुख-स्वाभावी है। कर्मों के आश्रव और बंध से बचें। क्लेश से क्लेश बढता है और शांति से शांति बढती है। जीवन में शालीनता स्वीकार कर पाप
का विसर्जन और पुण्य का सर्जन करें। धर्म की सुरक्षा हम सबका संकल्प होना चाहिए। जिनधर्म रहना चाहिए। समारोह में दिल्ली के कई क्षेत्रों से आए श्रद्धालुओं ने पाद प्रक्षालन के बाद श्रीफल अर्पित किए। कईं श्रावकों के साथ रमेश जैन नवभारत टाइम्स ने भी आचार्य श्री को शास्त्र भेंट किए। समाज के चेयरमैन विजय जैन, महामंत्री विपुल जैन ने सभी का स्वागत किया।
प्रस्तुतिः रमेश जैन एडवोकेट नवभारत टाइम्स नई दिल्ली

आचार्य श्री आदित्य सागरजी द्वारा महत्ती धर्म प्रभावना      चित्र न.-2
नई दिल्लीः दिगंबर जैन मंदिर सुभाष चौंक लक्ष्मीनगर में चातुर्मासरत आचार्य श्री आदित्य सागरजी व क्षुल्लक सिद्धसागरजी के प्रवचनों, भक्तामर महार्चना, रत्नकरण्ड श्रावकाचार पर प्रवचन व अन्य  धार्मिक गतिविधियों से महत्ती धर्म प्रभावना हो रही है। आचार्य श्री ने कहा कि जो श्रद्धावान, विवेकवान तथा क्रियावान होता है वही सच्चे अर्थों में श्रावक कहलाने का अधिकारी है। जो अपनी रात-दिन की सभी क्रियाएं विवेक के साथ संपन्न करता है, वही सच्चा सुख प्राप्त कर सकता है। दूसरों का भला करने वाला सदा लाभ में ही रहता है। मनुष्य को सर्वप्रथम अपना एक लक्ष्य निर्धारित करना होगा फिर लक्ष्य की सफलता के लिए प्रचंड पुरुषार्थ करना होगा, तभी सफलता मिलेगी। मनुष्य के जीवन में जब तक गंभीर चिंतन-मनन न हो तब तक उसके जीवन में उज्जवलता नही आ सकती। जीवन में सुख के साथ दुःख भी लगा हुआ है, कभी-कभी दुःख की चोट अधिक अच्छा निर्माण करने वाली होती है। यंहा सांस्कृतिक कार्यक्रमों में छोटे-छोटे बच्चों ने प्रेरक श्रीपाल-मैनासुंदरी नाटिका प्रस्तुत की।
प्रस्तुतिः रमेश जैन एडवोकेट नवभारत टाइम्स नई दिल्ली

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