ऋषभदेव जन्म कल्याणक 23 मार्च 2025 पर प्रासंगिक आलेख:
तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम से इस देश का नामकरण ‘भारत’ हुआ
-डॉ. सुनील जैन संचय ललितपुर
भारत अपनी संस्कृति और सभ्यता के लिए जाना जाता है, इसकी सभ्यता और संस्कृति सबसे पुरानी सभ्यता है। यह देश विविधताओं में एकता वाला देश है। यहां पर हर कदम -कदम पर लोगों की भाषा, बोली उनके रहन-शहन, उनके परंपरा, उनके रिवाज, त्यौहार सब कुछ बदल जाते हैं। लेकिन एक दूसरे के प्रति प्यार और भाईचारा नहीं बदलता।
आज भले ही भारत को हिंदुस्तान, इंडिया जैसे कई नाम से बुलाया जाता हो लेकिन भारत का सबसे प्राचीन नाम भारत ही है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत का नाम भारत कैसे पड़ा? यदि आप जानना चाहते हैं कि हमारे देश का नाम भारत कैसे पड़ा तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।
भगवान ऋषभदेव जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर हैं उनका जन्म चैत्र कृष्ण नवमी को अयोध्या में हुआ था, वहीं माघ कृष्ण चतुर्दशी को इनका निर्वाण कैलाश पर्वत पर हुआ। इन्हें आदिनाथ के नाम से भी जाना जाता है। इनके पिता का नाम नाभिराय तथा माता का नाम मरुदेवी था। तीर्थंकर ऋषभदेव भारतीय संस्कृति के आद्य प्रणेता माने जाते हैं। वेदों, उपनिषदों और पुराणों में समागत उनके उल्लेख यह कहने के लिए पर्याप्त हैं कि ऐसे महापुरूष थे जिन्होंने मानव समुदाय को कृषि, लेखन, व्यापार, शिल्प, युद्ध और विद्या की शिक्षा दी। किसी भी व्यक्ति और समुदाय के लिए इन प्रकल्पों की शिक्षायें आगे बढ़ाने के लिए अनिवार्य होती हैं।
भरत चक्रवर्ती, प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र थे। जैन और हिन्दू पुराणों के अनुसार वह चक्रवर्ती सम्राट थे और उन्ही के नाम पर भारत का नाम “भारतवर्ष” पड़ा।
जैन ग्रंथ “आदिपुराण” जिसके रचयिता आचार्य श्री जिनसेन स्वामी है ने सातवीं शताब्दी में लिखें गए आदिपुराण में प्रथम चक्रवर्ती भरत का विस्तार से वर्णन किया है ; प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र चक्रवर्ती भरत एक महान शासक थे जिनके नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। भारतीय मूर्तिशिल्प में भरत चक्रवर्ती का अंकन कई स्थानों पर हुआ है। श्रवणबेलगोला के चन्द्रगिरि नामक पहाड़ी पर भरत की प्रतिमा है। अनेक स्थानों पर भरत के मंदिर-मूर्तियां हैं, अनेक प्राचीन प्रमाण भी उनके बारे में उपलब्ध हैं।
भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री रहे स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का परेड ग्राउंड, दिल्ली में दिया गया ओजस्वी भाषण मननीय है। उन्होंने कहा था – ऋषभपुत्र ‘भरत’ के नाम से इस देश का नाम ‘भारत’ पड़ा। इस बारे में ठोस अनुसंधान पूर्वक एक पुस्तक जनता के सामने आनी चाहिये। 2000 वर्ष से भी अधिक पुरातन महाराज खारवेल के हाथी गुम्फाक शिलालेख जो भारतीय इतिहास के धरोहर के रूप में संरक्षित है में भी ऋषभदेव, उनके पुत्र भरत और भारतवर्ष के नाम का वर्णन उल्लेखित है।
प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने भी विद्वानों के परामर्श पर सम्राट ‘खारवेल’ के शिलालेख के आधार पर इस देश का नाम संवैधानिक नामकरण
‘भारतवर्ष’ स्वीकृत किया था। बौद्ध साहित्य में भी ऋषभ और भरत को आदि राजाओं में माना गया है।
पहले इस देश का नाम ‘अजनाभवर्ष’ था। यह नाम प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के पिता नाभिराय के नाम पर पड़ा था। इस तथ्य को वैदिक व श्रमण संस्कृति दोनों में समान रूप से मान्यता प्राप्त है। ऋषभदेव के पुत्र चक्रवर्ती भरत के षटखंडाधिप होने की खुशी में विद्वानों व प्रजाजनों ने ‘अजनाभवर्ष’ का नाम भारतवर्ष कर दिया था।
विख्यात इतिहासविद् डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल लिखते हैं कि ‘‘स्वायंभुव के पुत्र प्रियव्रत, प्रियव्रत के पुत्र आग्नीघ्र, आग्नीघ्र के पुत्र नाभि के पुत्र ऋषभदेव, ऋषभदेव के १०० पुत्रों, जिनमें ‘भरत’ ज्येष्ठ थे, यही नाभि ‘अजनाभ’ भी कहलाते थे, जो परम प्रतापी थे जिनके नाम पर यह देश ‘‘अजनाभवर्ष’’ कहलाता था।
अजनाभ खंड ‘भरत खंड’ कहलाया। नाभि के पौत्र भरत उनसे भी अधिक प्रतापवान चक्रवर्ती थे, यह अत्यंत मूल्यवान ऐतिहासिक परंपरा पुराणों में सुरक्षित रह गई है।’’ (जैन साहित्य का इतिहास, पूर्व पीठिका, पृष्ठ ८) ऋषभदेव के पुत्र चक्रवर्ती भरत के षट खंडाधिप होने की खुशी में प्रजाजनों ने ‘अजनाभवर्ष’ का नाम ‘‘भारतवर्ष” कर दिया।
भरत के नाम से ४ प्रमुख व्यक्तित्व भारतीय परम्परा में जाने जाते हैं – १. ऋषभदेव के पुत्र भरत, २. राजा रामचन्द्र के अनुज भरत, ३. राजा दुष्यंत के पुत्र भरत, ४. नाट्य शास्त्र के रचयिता भरत। इनमें से ऋषभदेव के पुत्र भरत सर्वाधिक प्राचीन व प्रभावशाली व्यक्तित्व थे। उन्हीं के नाम से इस देश का नाम ‘भारतवर्ष’ हुआ।
हिन्दू ग्रन्थ, स्कन्ध पुराण (अध्याय ३७) के अनुसार: “ऋषभदेव नाभिराज के पुत्र थे, ऋषभ के पुत्र भरत थे, और इनके ही नाम पर इस देश का नाम “भारतवर्ष” पड़ा”|
श्रीमद्भागवत के अनुसार:
येषां खलु महायोगी भरतो ज्येष्ठः श्रेष्ठगुण आसीद्येनेदं वर्षं भारतमिति व्यपदिशन्ति॥९॥
अर्थात् उनमें (सौ पुत्रों में) महायोगी भरतजी सबसे बड़े और सबसे अधिक गुणवान् थे। उन्हीं के नाम से लोग इस अजनाभखण्ड को भारतवर्ष कहने लगे॥९॥
दो अध्याय बाद इसी बात को फिर से दोहराया गया है। एक अन्य स्थान पर भागवत में लिखा है “अजनाभ नामैतद्वर्ष भारत मिति यत् आरंभ्य व्यपदिशन्ति” अर्थात् “इस वर्ष को जिसका नाम अजनाभ वर्ष था तबसे (ऋषभ पुत्र भरत के समय से) भारत वर्ष कहते हैं”।
अग्नि पुराण’ (१०/१०-११); ‘मार्वण्डेय पुराण’ प०-३९-४२), ‘नारदपुराण (पूर्वखण्ड, अध्याय ४८); लिंग पुराण’ (४७/१९-२३); ‘स्कन्द पुराण’ (माहेश्वर खंड कौमार खंड, ३७/५७); ‘शिव पुराण’ (३७/५७); ‘वायु पुराण’ (पूर्वार्ध, ३०/५०-५३); ‘ब्राह्माण्ड पुराण’ (पूर्व २/१४); ‘कूर्म पुराण’ (अध्याय ४९); ‘विष्णु पुराण’ (द्वितीयमांश, अध्याय १); ‘वाराह पुराण’ (अध्याय-७६); ‘मत्स्य पुराण’ ११४-५-६) आदि पुराणों के अतिरिक्त श्रीमद्भागवत में तो स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ऋषभ के जेयष्ठ पुत्र भरत महायोगी थे और उन्हीं के नाम पर यह देश ‘भारतवर्ष’ कहलाया- येषां खलु महायोगी भरतो ज्येष्ठ: श्रेष्ठगुण आसीद्येनेदं वर्ष भारतमिति व्यापदिशन्ति।। (५/४/९) उक्त के अतिरिक्त जैनधर्म के प्राय: सभी पुराण-ग्रंथ एवं अन्य साहित्य इस तथ्य के साक्षी हैं कि ऋषभदेव के पुत्र भरत ही ‘‘भारतवर्ष’ नाम के मूलाधार हैं।
डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल ने पहले दुष्यंत पुत्र भरत के नाम से इस देश का नाम भारतवर्ष कहा था किंतु बाद में उन्होंने इसे सुधारा और स्पष्ट किया कि ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम से ही इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। मैंने अपनी भारत की मौलिक एकता नामक पुस्तक के पृष्ठ २२-२४ पर दुष्यंत पुत्र भरत से भारतवर्ष लिखकर भूल की थी, इसकी ओर मेरा ध्यान कुछ मित्रों ने आकर्षित किया। उसे अब सुधार लेना चाहिये। (डा. वासुदेव शरण अग्रवाल ‘मार्कण्डेय पुराण एक अध्ययन’।
पं० बलदेव उपाध्याय अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘पुराण-विमर्श’ में लिखते हैं कि आदि तीर्थंकर ऋषभ और चक्रवर्ती भरत की परम्परा को सिद्ध करने के लिए पुराणों के आधार पर संशय नहीं किया जा सकता है।
रामधारी सिंह दिनकर ने भी लिखा है कि भरत ऋषभदेव के पुत्र थे जिनके नाम पर इस देश का नाम ‘भारत’ पड़ा। प्राचीन ग्रंथ ‘अग्नि पुराण’ भारतीय विद्याओं का विश्वकोष’ कहा जाता है। इसमें धर्म, ज्योतिष, राजनीति, व्याकरण, आयुर्वेद, अलंकार, छंद, योग, वेदान्त आदि सभी विषयों का समावेश है, इस ग्रंथ में ‘भरत और भारत’ से संबंधित निम्न पंक्तियां हैं :-
जरा-मृत्यु-भय ना हित धर्मो-धर्मो युगादिकम्।
ना धार्म महगमं तुल्या हिमादे तान्तु नाभितः।।
ऋशयो मरूदेव्यां च ऋशभाद् भरतो ऽमवतः।
ऋशभादडदात श्री पुत्रे भाल्य ग्रामे हरिंगतः
भरताद् भारतवर्श भरतपात सुमतिस्वभूत ।।
(अग्निपुराण ४०-४४)
अर्थ – उस हिमवत प्रदेश (भारतवर्ष को पहले हिमवत प्रदेश कहते थे) में हरा, (बुढ़ापा) और मृत्यु का भय नहीं था, धर्म और अधर्म भी नहीं थे, उनमें मध्यम समभाव था, वहां ‘नाभिराजा व मरूदेवी’ से ‘ऋषभ’ का जन्म हुआ। ऋषभ से भरत हुए। ऋषभ ने राज्य भरत को प्रदान कर सन्यास ले लिया। भरत से इस देश का नाम ‘भारतवर्ष’ हुआ। भरत के पुत्र का नाम ‘सुमति’ था। (अग्निपुराण, ४०-४४)
आदिनाथ पुत्र भरत के नाम से बना भारत ।
वर्तमान में अनेक सुप्रसिद्ध हिन्दू कथा वाचकों ने स्पष्ट रूप से कहा कि ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर ही इस देश का नाम भारत हुआ । हाल ही में बागेश्वरधाम के धीरेंद्र जी शास्त्री ने भी स्पष्ट रूप से यही कहा है।
भरत चक्रवती इतने शक्तिशाली राजा थे कि इन्होंने भारत के संपूर्ण साम्राज्य को ही जीत लिया था और एक संगठित राज्य की स्थापना की थी, जिसका नाम उन्होंने भारतवर्ष रखा था। इस प्रकार भारत का नाम भारत वर्ष पड़ा।
डॉ. सुनील जैन ‘संचय’
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