भारतीय प्राचीन संस्कृति में व्यक्ति के जीवन में सोलह संस्कारों का विशेष महत्व रहा है। इन सोलह संस्कारों में एक मुख्य संस्कार पाणिग्रहण संस्कार है । इसे हम बोलचाल की भाषा में शुभ विवाह भी कहते हैं।शुभ विवाह रीति रिवाज एवं धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप संपन्न कर युवक युवती के सुखद एवं सुदीर्घ दाम्पत्य जीवन की कामना की जाती है।
मगर वर्तमान में शुभ विवाह के नाम पर अनेक कुरीतियों ने जन्म ले लिया है एक और कुरीति रिसोर्ट में विवाह करने की जोर-जोर से चलने लगी है। कुछ समय पहले शहर के अंदर मेरीज हाल में विवाह होने की परंपरा चली। परंतु यह दौर भी अब समाप्ति की ओर है। अब शहर से दूर महंगे रिसोर्ट में विवाह होने लगे हैं। विवाह से दो दिन पहले से ही यह रिसोर्ट बुक कर लिया जाता है। और विवाह बाला परिवार वहां पहुंच जाता है। आगन्तुक और मेहमान सीधे वही जाते हैं और वहीं से विदा हो जाते हैं। जिसके पास चार पहिया वाहन है वहीं रिसोर्ट में आयोजित विवाह में जा पाएगा। दो पहिया वाहन वाले नहीं जा पाएंगे। बुलाने वाला भी यही स्टेटस चाहता है। और वह निमंत्रण भी उसी श्रेणी के अनुसार देता है। रिसोर्ट में विवाह करने के लिये वर पक्ष एवं कन्या पक्ष अपने अपने नगरों से दूर तीसरे स्थान मंहगे रिसोर्ट को लगभग 6 माह पूर्व आरक्षित कर लेते हैं। रिसोर्ट में जितने कमरे हैं,जो सीमित ही रहते हैं, निकट रिश्तेदारों को विवाह से लगभग दो पूर्व संदेश दिया जाता है कि आप शुभ विवाह में पधारने अभी से दिन आरक्षित कर लीजिए। उनसे कमरा उनके नाम आरक्षित कराने आधार कार्ड की छाया प्रति भी मांगी जाती है।यह भी संदेश दिया जाता है आधार कार्ड नहीं आने पर हम आपको रिसोर्ट में कमरा उपलब्ध नहीं करा पायेंगे। रिसोर्ट में विवाह देश के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल या पर्यटन स्थल पर हो रहे हैं। पुष्कर राजस्थान, ओरछा मध्यप्रदेश, सांची मध्यप्रदेश आदि में रिसोर्ट में वैभव प्रदर्शन के साथ विवाह आयोजित किये जा रहे हैं।रिसोर्ट में होने वाले विवाह में अतिथियों को आमंत्रित करने की भी दो या तीन अलग-अलग श्रेणियां आजकल प्रचलित हो रही हैं। दो या तीन तरह की श्रेणियां बनायी जाती हैं। किसको सिर्फ महिला संगीत में बुलाना है, किसको सिर्फ आशीर्वाद समारोह में बुलाना है, किसको कॉकटेल पार्टी में बुलाना है। और किसी वीआईपी परिवार को इन सभी कार्यक्रमों में बुलाना है। इस आमंत्रण में अपनेपन की भावना समाप्त हो चुकी है। सिर्फ मतलब के व्यक्तियों या परिवारों को आमंत्रित किया जाता है। महिला संगीत में पूरे परिवार को नाच गाना सिखाने के लिए महंगे कोरियोग्राफर 15 से 25 दिन पहले से पूरे परिवार को नाच गाने की ट्रेनिंग देते हैं। परिवार की महिलाओं को मेहंदी लगाने के लिए आर्टिस्ट बुलाए जाने लगे हैं। मेहंदी की रश्म में सभी को हरी ड्रेस पहनना अनिवार्य है, जो नहीं पहनता है उसे हीन भावना से देखा जाता है, और निम्न श्रेणी का मानते हैं। फिर हल्दी की रश्म आती है इसमें भी सभी को पीला कुर्ता पजामा पहनना अति आवश्यक है। इसमें अभी भी वही समस्या है जो नहीं पहनता है उसकी इज्जत कम होती है। इसके बाद वर निकासी होती है। इसमें अक्सर देखा जाता है जो पंडित को दक्षिणा देने में 1 घंटे की माथा पच्ची करते हैं, वह बारात प्रोशेशन में नाच गाने पर चालीस से पचास हजार रुपये उड़ा देते हैं। इसके बाद आशीर्वाद समारोह प्रारंभ होता है स्टेज पर वरमाला होती है। पहले लड़की और लड़के वाले मिलकर हंसी मजाक करके वरमाला करवाते थे। आजकल स्टेज पर धुएं की धूनी छोड़ देते हैं। दूल्हा-दुल्हन को अकेले छोड़ दिया जाता है। बाकी सब को दूर भगा दिया जाता है। और फिल्मी स्टाइल में स्लो मोशन में एक दूसरे को वरमाला पहनाते हैं। साथ ही स्टेज के पास एक स्क्रीन लगा रहता है इसमें प्रीवैडिंग सूट की वीडियो चलती रहती है, जिसमें वह बताया जाता है कि शादी से पहले ही लड़की लड़के से मिल चुकी है। लड़की अंग प्रदर्शन बाले कपड़े पहनकर कहीं चट्टान पर, कहीं बगीचे में, कहीं कुएं पर, कहीं बावड़ी में, कहीं गंदे नाले की कीचड़ में, कहीं श्मशान में, कहीं नकली फूलों के बीच अपने परिवार की इज्जत को नीलम करके आ गई है। प्रत्येक परिवार अलग-
अलग कमरे में ठहरते है।जिसके कारण दूरदराज से आए वर्षों बाद रिश्तेदारों से मिलने की परंपरा यहां खत्म सी हो गई है। रश्म के समय रिश्तेदार को मोबाइल से बुलाए जाने पर कमरों से बाहर निकलते है, क्योंकि सब अमीर हो गए हैं, पैसे वाले हो गए हैं। मेल मिलाप और आपसी आत्मीयता इसमें समाप्त हो चुकी है। सब अपने को एक दूसरे से बड़ा रईस समझते हैं और यही अमीरियत का दंभ उनके व्यवहार में झलकता है।कहने को तो रिश्तेदार की शादी में आए हुए होते हैं परंतु अहंकार उनको यहां भी नहीं छोड़ता। वह अपने अधिकांश समय निकट संबंधियों से मिलने की बजाय अपने कमरों में ही गुजार देते हैं। हमारी संस्कृति को दूषित करने का बीड़ा ऐसे ही अति संपन्न वर्ग ने अपने कंधों पर उठा रखा है। मेरा अपने माध्यम वर्गीय समाज बंधुओ से अनुरोध है आपका पैसा है, आपने कमाया है, आपके घर में खुशी का अवसर है, खुशियां मनाइये पर किसी दूसरे की देखा देखी नहीं। कर्ज लेकर अपने और परिवार के मान सम्मान को समाप्त मत कीजिए। जितनी आप में क्षमता है उसी के अनुसार खर्चा कीजिए। चार या पांच घंटे के आशीर्वाद समारोह में लोगों की जीवन भर की पूंजी लग जाती है। दिखावे की सामाजिक बीमारी को अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित रहने दीजिए। अपना दाम्पत्य जीवन सिर उठाकर स्वाभिमान के साथ शुरू कीजिए और खुद को अपने परिवार और अपने समाज के लिए सार्थक बनाइये।
नोट:-लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष है।