‘जैन एकता’
राजेंद्र जी ‘जैन एकता’ के संदर्भ में अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि आज भारत की आबादी में हमारी संख्या मात्र गिनती की रह गई है और इस पर भी यदि हम पंथ और संप्रदाय में बंटे रहेंगे, तो हमारे धर्म और समाज दोनों का ही अस्तित्व नष्ट हो जाएगा। अपने धर्म समाज के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए श्रावक व गुरु भगवंतों को मिलकर कार्य करना होगा, पर आज समाज में यह देखा जा रहा है कि सिर्फ हम बातें करते हैं कार्य कोई नहीं हो रहा, सभी पद, नाम और माला के चक्कर में पड़े हैं। समाज में अधिकतर यह देखा जा रहा है कि लोग अपने स्वार्थ में ही लगे हुए हैं, समाज के हित में कोई नहीं कार्य कर रहा। पंचकल्याणक व अन्य बड़े-बड़े कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसमें करोड़ों रुपए खर्च होते हैं, पर हमारे समाज के कुछ वर्ग ऐसे भी हैं जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं, उन कमजोर वर्ग को उठाने का कार्य समाज के समृद्ध लोगों द्वारा किया जाना चाहिए, तभी हम वास्तविक रूप से ‘जैन’ हो सकते हैं, इसीलिए ‘जैन एकता’ होना बहुत जरूरी है।
आज की युवा पीढ़ी अपने धर्म और समाज से दूर हो रही है और इसका कारण आधुनिक परिवेश और संस्कार न मिलना। युवाओं को अपने परिवार से वह संस्कार नहीं मिल पा रहे, जिससे युवा वर्ग का लगाव अपने धर्म समाज के प्रति हो, आज की युवा पीढ़ी शिक्षा ग्रहण विदेश में, नौकरी करने को अधिक महत्व देने लगी है तो वह अपने धर्म और संस्कार से कैसे जुड़ेंगे।
‘भारत को केवल ‘भारत’ ही बोला जाए’ INDIA नहीं, एक राष्ट्र-एक नाम केवल ‘भारत’ राष्ट्रीय अभियान के संदर्भ में आपका कहना है कि निश्चित रूप से अपने देश का एक ही नाम, एक ही पहचान रहना चाहिए ‘भारत’ अचार्य श्री विद्यासागर जी ने भी यही कहा है इंडिया छोड़ो-भारत बोलो। राजेंद्र जी मूलतः जयपुर के निवासी हैं, आपका जन्म व शिक्षा यहीं संपन्न हुई है, यहां आप कारोबार से जुड़े हुए हैं, साथ ही सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय रहते हैं। विभिन्न धार्मिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। तेरापंथ कोठी सम्मेद शिखरजी के जीर्णोद्धार का कार्यभार संभाल रहे हैं और जैन युवा परिषद से भी जुड़े हुए हैं। जय भारत !