रग-रग में समा गए हैं आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज

0
60

सहारनपुर में वकालत के दौरान 1-5-1986 को दिगंबर जैन मंदिर बडतला यादगार में मुनि श्री आदिसागरजी महाराज पधारे। उसी दिन मैने आचार्य श्री विद्यासागरजी की जीवनी विद्याधर से विद्यासागर पढी जिसे पढकर मेरे आंसू निकलते रहे। जबलपुर निवासी प्रसिद्ध लेखक व समाजसेवी श्री सुरेश जैन सरल द्वारा लिखी यह पुस्तक मुझे वहीं एक परिचित श्री कपूर चंद जैन ने पढने के लिए दी थी। जिसे मैने कईं बार पढा। उसका मेरे जीवन पर गहरा असर पडा। उनके
बचपन से ही प्रेरणा लेकर मैने दिल्ली आकर अपने घर से बाजार, बच्चों के स्कूल, दूध डिपो, बिजली आफिस, बस स्टाप आदि सभी की दूरी कदमों में नाप कर
अपनी डायरी में लिखी और विद्याधर की तरह ही जाप करता हुआ वहां जाता, और मेरी यह आदत आज तक बनी हुई है। इस प्रकार आचार्य श्री मेरी रग-रग में
समा गए।
– 1988 में मैं दि. जैन महासमिति के अध्यक्ष साहू श्रेयांस प्रसाद जी की प्रेरणा से दिल्ली आया। उसके बाद 1989 और 90 में जबलपुर में दो बार आचार्य श्री विद्यासागरजी के दर्शन करने, उनके महाकाव्य मूकमाटी के विमोचन समारोह तथा तीर्थवंदना रथ प्रवर्तन समारोह में साहू अशोक जी व अन्य समाजसेवियों के साथ गए और पिसनहारी की मढिया पर ठहरे। जीवन में पहली बार आचार्य श्री के दर्शन कर जीवन सफल हो गया। वहीं सुरेश सरल जी के घर जाकर उनसे मिला तो वे बडे खुश हुए।
1991 में मुक्तागिरि जाना हुआ, हम लोग परतवाडा में ठहरे आचार्य श्री के दर्शन किये और मार्मिक प्रवचन सुने।
-1992 में आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज का चातुर्मास सिद्धक्षेत्र कुंडलपुर ( दमोह ) में हुआ। वहां उनके सान्निध्य में दिगंबर जैन महासमिति, परिषद परीक्षा बोर्ड तथा दिगंबर जैन नैतिक शिक्षा समिति के तत्वावधान में अक्तूबर में एक सप्ताह का नैतिक शिक्षण शिविर लगा जिसमें सैंकडों व्यक्तियों ने भाग लिया। मैने भी इस शिविर में परिवार सहित भाग लिया। हमारा सैंकडों यात्रियों का दल गया था। आचार्य श्री सहित कईं विद्वानों के प्रवचन सुनने को मिलते। हम महासमिति पत्रिका की प्रतियां भी वहां फ्री वितरण के लिए ले गए थे। रोज कक्षाएं चलती। कईं मुनियों सहित विद्वान नीरज जैन ( सतना ) व अन्य हमें पढाते। कुंडलपुर के
आसपास के अनेक कार्यकर्त्ता हमसे घुल-मिल गए। उन्ही में एक थे जबलपुर के पास एक गांव के रहने वाले इंजीनियर ब्र. अजित जैन।
एक दिन अजित जैन ने मुझे कहा कि कल सुबह आचार्य श्री को आहार कराना है, आप भी तैयार हो जाना। अगले दिन खुशी-खुशी मैं तैयार होकर धोती दुपट्टा पहनकर उनके साथ हो लिया। तीर्थक्षेत्र के मेन गेट के पास एक कमरे में वह चौका था। आचार्य श्री आहार मुद्रा में आए लेकिन हमारे चौके में उनका आहार नही हो सका। दूसरे मुनि श्री समय सागरजी ( अब आचार्य श्री के पट्टाचार्य ) का आहार हुआ, बडा आनंद आया।
दिल्ली आने पर अजितजी के लेख आदि हम महासमिति पत्रिका में छापते रहे। पत्रव्यवहार भी होता रहा।
-महुवा में 1 से 5 नवंबर 96 तक आचार्य श्री के चातुर्मास के दौरान हम वहां गए ओर सूरत में ठहरे थे। तीर्थ क्षेत्र कमेटी के अधिवेशन पर आचार्य श्री का मार्गदर्शन
मिला। साहू अशोक जी आचार्य श्री से चर्चा करते और मैं नोट करता रहता।
-1999 में आचार्य श्री का चातुर्मास सिद्धक्षेत्र नेमावर में था। हम 11 से 16 जून तक वहां भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी के अधिवेशन व आचार्य श्री के
गुरू आचार्य श्री ज्ञानसागरजी के समाधि महोत्सव में कमेटी के अध्यक्ष साहू रमेश चंद्र जी व उम्मेदमल पांडया, प्रदीप लोहाडे, एस के जैन, बलवंत राय जैन,
सतीश जैन, तारा चंद्र प्रेमी, डाल चंद जैन, प्रदीप कासलीवाल व माणिक चंद पाटनी आदि शामिल थे। हमने वहां भारतीय ज्ञानपीठ का स्टाल भी लगाया था।
आचार्य श्री के दर्शन किए और उनके प्रेरक प्रवचन सुने। वहीं एक दिन रात को मैं आचार्य श्री के कक्ष में वैय्यावृत्ति के लिए पहुंच गया और मुझे भी अवसर मिल
गया, सबसे पहले मैने श्रद्धापूर्वक आचार्य श्री के पैर के अंगूठे को स्पर्श किया तो मुझे ऐसा झटका लगा जैसा बिजली ने करंट मार दिया हो, मैं अवाक रह गया उस
प्रथम स्पृश से। फिर खूब वैय्य़ावृत्ति की। बस वह पल तो आज भी रह-रह कर याद आ रहा है।      वहां एक दिन संघ के दर्शन करते हुए एक कमरे में मैने एक मुनि के दर्शन सामान्य रूप में किए तो उन्होने मुझे पहचान लिया, वे कुंडलपुर  में मिलने वाले आहार
कराने वाले ब्र. इंजीनियर अजित जैन ही थे। अब उनका नाम मुनि श्री प्रसाद सागरजी था। मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा, उनकी मुनि दीक्षा नेमावर में ही 16- 10-97 को हुई थी। श्रद्धा के साथ प्रसन्नतापूर्वक नमोस्तु आदि के बाद मैं उनके पास बैठ गया और खूब बातें हुई। वहीं एक दिन शाम को गांव के मंदिर जाते हुए रास्ते में धोती कुर्ते में एक बुजुर्ग मिले बातों ही बातों में पता चला कि वे उनके गृहस्थ अवस्था के पिताजी हैं। उनसे बडी श्रद्धा के साथ बाते हुई। जबलपुर जिले में
गांव में उनका जनरल स्टोर है। उन्होने पुत्र की गृहस्थ अवस्था की बातें बताई तो बडा आश्चर्य होता रहा। मेरा चिंतन गहरा होता गया। दिल्ली आने पर पुरानी
फाइलों में मुझे इंजी. अजित जैन का लिखा एक पत्र मिल गया, मुझे लगा जैसे कोई खजाना मिल गया हो।
-2-4-2016 को फिर कुंडलपुर जाने का अवसर मिला आचार्य श्री का संघ वहीं था। मैने वह पत्र संभालकर रख लिया था। शाम के समय मैने मुनि श्री प्रसाद सागर
जी को खूब ढूंढा, मुनियों के कमरों में अंधेरा सा ही था, इनके संघ में लाइटें तो जलती नही। 3-4-2016 को सुबह क्षेत्र की वंदना को चले तो रास्ते में मिलने वाले प्रत्येक मुनि से उनके बारे में पूछता रहा, एक जगह वापिस आने वाले एक मुनि ने बताया कि वे आगे-आगे दो मुनि जा रहे हैं उनमें हैं। मैं दौडकर उनके पास  गया
और नमोस्तु की तो उन्होने पहचान लिया, मैने वह पत्र निकालकर दिखाया तो वे मुस्कुराने लगे। और साथ वाले मुनि आश्चर्य में पड गए और हंसकर बोले हमे तो आज तक नही पता कि ये इंजीनियर थे। उनके साथ चलते-चलते खूब बातें हुई, मन को बडी प्रसन्नता हुई। पत्नी, बच्चें व सलहज संतोष जैन ( गाजियाबाद ) आदि
भी साथ में थे सभी ने दर्शन किए आशीर्वाद लिया। मन को बडा सकून मिला।
-उसके बाद 28-6-2016 को फिर कुंडलपुर जाना हुआ तो आचार्य श्री का विहार उसी दिन हो चुका था, हम तीर्थ के दर्शन, बडे बाबा के महामस्तकाभिषेक के
बाद वहां से चले तो रास्ते में पथरिया में आचार्य संघ के दर्शन हो गए। बडी भीड थी। धर्मशाला में मुनि श्री प्रसाद सागरजी के भी केवल दर्शन-वंदन-नमोस्तु हो
पाई, वे मुस्कुराए। फिर रास्ते में भी संघ के विहार करते हुए दर्शन किये। मन प्रसन्न होता रहा। वहां से चलकर बेलाजी तीर्थ क्षेत्र के दर्शन किए वहां आचार्य श्री
सिद्धांत सागरजी संघ के दर्शन किए धर्मसभा में मैने उन्हे अपनी पुस्तक महापुरुषों के 151 प्रेरक प्रसंग भेंट की, तो उन्होने प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया। यहां
मुनि श्री संतोषसागरजी बडे स्नेह से प्रेमपूर्वक मिले।
-दिनांक 16-9-2017 को सिद्धक्षेत्र मुक्तागिरि की वंदना कर हम पहुंच गए रामटेक वहां विशाल सभा में आचार्य श्री के संघ सहित दर्शन किए,आहार देखा, विशाल
व भव्य 8 मंदिरों के दर्शन किए और मैने पूछते-पूछते 18 न. कमरे में मुनि श्री प्रसादसागरजी को खोज ही लिया, दर्शन किए, धर्म चर्चा की और अपनी पुस्तक
महापुरुषों के 151 प्रेरक प्रसंग भेंट की, जिसे देखकर प्रसन्न होकर उन्होने आशीर्वाद दिया। वहां से हम अतिशय क्षेत्र बजारगांव, भातुकुली, मुक्तागिरि दर्शन कर लौट आए।
-19 फरवरी-21 को सुनील जैन ( गौशाला वाले ), अजय जैन आदि के साथ हम 14 यात्रियों ने सिद्धक्षेत्र नेमावर में आचार्य श्री विद्यासागरजी मुनिराज के दर्शन
किए पूजन व शास्त्र भेंट करने का दुर्लभ अवसर मिला जो रह-रह कर याद आ रहा है। नर्मदा के किनारे रेवातट नेमावर मंदिर में सुबह 7 बजे भगवान पार्श्वनाथ
की चतुर्थ कालीन नर्मदा के भूगर्भ से सन 1980 में प्राप्त अतिशयपूर्ण प्रतिमा के दर्शन किए और भगवान महावीर का प्रक्षाल कर सबने शांतिधारा की। पंडाल में
8-30 बजे आचार्य श्री पधारे तो जय-जय कार से वातावरण गूंज उठा। सबने 6 फुट की दूरी से श्रीफल अर्पित किए और आचार्य श्री को शास्त्र भेंटकर पूजन किया।
इस अवसर पर आचार्य श्री ने मुस्कुराते हुए हाथ उठाकर सभी को भरपूर आशीर्वाद दिया और कहा कि किसान रोटी खाते ही हल चलाना शुरू कर देता है और जीवन पर्यंत स्वस्थ रहता है। इसी प्रकार मुनि की 1-1 चर्या भी मोक्ष मार्ग के लिए होती है। श्रम करोगे तो जीवन भर सुखी और स्वस्थ रहोगे। प्रकृति के अनुरूप जियो। स्वतंत्र रहो, पर स्वछंद न बनो। दृष्टि बदलो तो सृष्टि बदल जाएगी। आहार चर्या देखी। बस अपने जीवन में तो आचार्य श्री के यही अंतिम दर्शन थे। जो आज भी रह-रह कर याद आ रहे हैं।
आचार्य श्री शरीर से भले ही चले गए हों लेकिन वे तो जन-जन के मन में समा गए हैं। उनके जाने से समस्त समाज व देश की महान क्षति हुई है। उनकी त्याग-तपस्या, साधना समाज व देश के विकास में उनका योगदान और मार्गदर्शन हमेशा याद रहेगा।
प्रस्तुतिः रमेश चंद्र जैन एडवोकेट नवभारत टाइम्स, नई दिल्ली। -9899418628

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here