राग-द्वेष और विकारी भावों का त्याग ही उत्तम त्याग है। अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी

0
99
राग-द्वेष और विकारी भावों का त्याग ही उत्तम त्याग है।    अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी.       औरंगाबाद  उदगाव नरेंद्र /पियूष जैन भारत गौरव साधना महोदधि    सिंहनिष्कड़ित व्रत कर्ता अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज एवं सौम्यमूर्ति उपाध्याय 108 श्री पीयूष सागर जी महाराज ससंघ का महाराष्ट्र के ऊदगाव मे 2023 का ऐतिहासिक चौमासा   चल रहा है इस दौरान  भक्त को  प्रवचन  कहाँ की
प्रकृति ने दो मार्ग दिये हैं-? एक – देकर जाओ या दूसरा – छोड़कर जाओ। क्या करके जाना है-? आप कुछ भी जोड़ लो – देखना! एक दिन छोड़कर चले जाओगे। इसलिए मेरी एक बात याद रखना-? आप भारत की भूमि पर मेहमान है, मालिक नहीं।
राग-द्वेष और विकारी भावों का त्याग ही उत्तम त्याग है। भीतर से कषाय, द्वेष, ईर्ष्या का त्याग उत्तम त्याग है।
 त्याग हमारी चेतना को, स्वस्थ और प्रसन्न करती है।
 त्याग प्रकृति प्रदत्त उपहार है।
 नदी – जल का त्याग करती है।
 वृक्ष – फलों का त्याग करते हैं।
 गाय – दूध का त्याग करती है।
 आदमी – मल मूत्र का त्याग करता है।
 आत्मा – राग-द्वेष, विकारों का त्याग करता है तो भगवान बन जाता है।
त्याग सम्मेद शिखर की कठिन चढ़ाई है, तो राग-द्वेष जीवन की ढलान है।शिखर जी के पहाड़ चढ़ने में दम लगता है, दम फूलती है, फिर जान निकलती है। और पहाड़ उतरने में कोई मशक्कत नहीं करनी पड़ती। पहाड़ चढ़कर आओ तो आदर, सत्कार। नहीं जाओ तो कर्मो की मार। भारतीय संस्कृति राग की नहीं – त्याग की संस्कृति है। किसी ने पूछा-? दान और त्याग में क्या अन्तर है-? हमने कहा – जितना साली और पत्नी में है। दान दिया जाता है,, त्याग किया जाता है। दान – पराधीन है। त्याग – स्वाधीन है। दान देने से पाप का ब्याज चुकता है,, और त्याग करने से पाप का मूल चुकता है। भारत महान त्याग से है। जो जोड़ते हैं, वे डूबते हैं। जो छोड़ते है या त्याग करते हैं, वे अमर हो जाते हैं। इसलिए —
जिनके जोड़े हैं – उनके जोड़ो में दर्द है।
कुवारों को जोड़ो के दर्द का एहसास ही नहीं है, क्योंकि उनके जोड़े नहीं है।
पीयूष कासलीवाल नरेंद्र अजमेरा

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here