पुण्य की जड़ें हरि : आचार्य प्रमुख सागर

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गुवाहाटी : जो शुभ है वह पुण्य है और पुण्य का फल मीठा होता है। पुण्य का आतंरिक रूप करुणा, सरलता , मृदुलता आदि है । और वास का रूप दान , सेवा , परोपकार आदि धर्म क्रियाएं है।
पुण्य की जड़ को एकान्त मे सिंचना चाहिए क्योंकि पुण्य को गुप्त रूप से किया जाए तो वह बढ़ता है और प्रकट करने से घटता है। जैसे किसान धरती में बीज बोने के बाद उसके ऊपर मिट्टी डाल देता है। ताकि वह बीच वृक्ष बन सके। वैसे ही शुभ कार्य करके उसे ढक दो उजागर मत करो।
पुण्य का अर्जन ससत करते रहो क्योंकि सांसारिक सामग्री और धर्माचरण के साधन का लाभ पुण्य से मिलता है। जीवन में सुख और धर्म दोनों की प्राप्ति पुण्य से होती है। यह उक्त बातें आज सोमवार को आचार्य श्री प्रमुख सागर महाराज ने अपने चातुर्मासिक प्रवास के दौरान उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कही। जय कुमार छाबड़ा ने बताया कि आज प्रातः चंद्रप्रभु चैत्यालय में आचार्य श्री ससंघ के मुखारविंद से श्रीजी की शांतिधारा करने का परम सौभाग्य केदार रोड चैत्यालय पूजा ग्रुप गुवाहाटी को प्राप्त हुआ। पुष्प प्रमुख वर्षा योग समिति के मुख्य संयोजक ओम प्रकाश सेठी ने बताया कि रामचंद्र सेठी द्वारा संध्याकालीन आरती का आयोजन बड़ी भक्ति भावपूर्वक किया जा रहा है।तथा पयुषण पर्व के अवसर पर सोलहकारण के 32 उपवास (व्रत) की तपस्या चार लोगों के द्वारा की जा रही है। जिसका आज १२वां दिन है। इस अवसर पर धर्म स्थल में रोजाना कई धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।। यह जानकारी समाज के प्रचार-प्रसार विभाग के सहसंयोजक सुनील कुमार सेठी द्वारा एक प्रेस विज्ञप्ति में दी गई है।।।

सुनील कुमार सेठी
प्रचार प्रसार विभाग , श्री दिगंबर जैन पंचायत (गुवाहाटी)

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