आचार्य विनीत सागर महाराज के सानिध्य में हुए विभिन्न धार्मिक आयोजन
भगवान के गर्भ में आने से छह माह पूर्व एवं नौ माह तक गर्भ में इन्द्रो के द्वारा रत्नों की वर्षा की जाती है। सर्वत्र पंचाश्चर्य होने लगते हैं इसी प्रकार भगवान ऋषभदेव के जन्म से पूर्व शाश्वत तीर्थ अयोध्या में भी पंचाश्चर्य होने लगे थे। माता मरुदेवी व पिता नाभिराय के आंगन में दिव्य बालक ऋषभदेव(आदिकुमार) का जन्म हुआ। जिन्हें प्रत्येक शास्त्रों में वर्णित किया गया है, जो शाश्वत सत्य है। आदिनाथ भगवान से ही वर्तमान में जैन धर्म का प्रवर्तन हुआ। आदिनाथ भगवान को युग प्रवर्तक के रूप में माना गया है। उन्होंने ही असी,मसी,कृषि,वाणिज्य,विद्या,शिल्प की शिक्षाएं प्रदान की तो अंक व लिपि विद्या का ज्ञान कराया उक्त प्रवचन जैनाचार्य विनीत सागर महाराज ने कोट ऊपर स्थित आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में जैन श्रावक श्राविकाओं से प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जन्म व तप कल्याणक के मुख्य समारोह में व्यक्त किये।
जैन समाज अध्यक्ष अनिल जैन ने अवगत कराया की प्रातः जैन धर्मशाला से विजय मती त्यागी आश्रम तक प्रभात फेरी निकाली गई तो मुख्य समारोह आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में हुआ।जहां भगवान का पालकी में विहार कराया गया। इस अवसर पर सौधर्म इंद्र बनने का सौभाग्य मुकेश जैन वैभव जैन बड़जात्या परिवार को प्राप्त हुआ तो अन्य इंद्र कपूर चन्द जैन काकाजी,प्रदीप जैन बड़जात्या,मनोज जैन पंसारी,संजय सर्राफ व कुबेर इंद्र रिखब चन्द आकाश जैन सर्राफ व इंद्राणी मंजू जैन सुरेश चन्द लहसरिया परिवार को सौभाग्य मिला। कार्यक्रम में आचार्य विनीत सागर महाराज के पाद प्रक्षालन अनिल जैन लहसरिया परिवार के द्वारा किया गया। इस अवसर पर कार्यक्रम का संचालन करते हुए संजय जैन बड़जात्या ने कहा कि भ्रांति को दूर कर इतिहास को दुरुस्त करने की आवश्यकता है कि जैन धर्म का प्रादुर्भाव भगवान महावीर से हुआ जबकि भगवान महावीर को चौबीसवें व अंतिम तीर्थंकर थे। प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान है। इस अवसर पर क्षुल्लक हर्ष सागर महाराज ने कहा कि सन्त ज्ञाता, द्रष्टा व वक्ता होते हैं जबकि श्रावक ही कर्ता होता है। इस अवसर पर जैन समाज के स्त्री, पुरुष,युवा व बच्चे उपस्थित रहे।
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