प्रथम गणिनी विजय मति माताजी का 18वा समाधी दिवस मनाया

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19 फरवरी सोमवार 2024
प्रातः काल 8:30 पर अग्रवाल बड़े जैन मंदिर में गणिनी आर्यिका विमल प्रभा माता जी के परम सानिध्य में अपने गुरु मां के समाधि दिवस पर सभी माता ने धर्म सभा को बताया

आप बचपन से ही स्कूल समय से ही महान धर्म साधना में धर्म मार्ग की प्रवृत्ति आप में कूट-कूट कर भरी थी
16 वर्ष की अल्प आयु में आपने आचार्य तपस्वी सम्राट सन्मति सागर महाराज से शुद्ध जल के नियम लिया एवं बाजार के सभी वस्तुओं का त्याग किया यह आपकी धर्म की पहली सीढ़ी थी
“जिनके दर्शन मात्र से पाप सारे कट जाते हैं
ऐसे गुरु के चरणों में शत-शत वंदन हम करते हैं
आपका स्वभाव बहुत मीठा था बचपन का नाम सरस्वती बाई था आपका जीवन तपाये हुए सोने के समान था उनकी प्रेरणा से ही हम त्याग व संयम मार्ग पर आज बड़े हैं
आगरा शहर में अपने 1984 में आचार्य विमल सागर जी महाराज से दीक्षा ली थी माता ने अनेक उदाहरण धर्म के देते हुए बताया कि वह नास्तिक को आस्तिक बनाने वाली
गुरु माता थी उनके वितरागता छवि रोम रोम में बसी हुई थी
20 45 में वर्षा योग पांडिचेरी में हुआ वहां से आप 700 किलोमीटर पैदल बिहार कर स्वर्ण बेलगोला बाहुबली मस्तका अभिषेक में पहुंचे

वहां पर 250 जैन साधु 14 आचार्य के सानिध्य में आपका स्वास्थ्य अस्वस्थ होने के कारण आपको चारों प्रकार का आहार का त्याग कराया पूरे संघ में आपको योग्य मानकर आपको गणिनी पद दिया

इस अवसर पर माता ने सभी भक्तों को अपना आशीष दिया
दिगंबर जैन समाज के अध्यक्ष श्री ओमप्रकाश जी जैन एवं सदस्य द्वारा माता को देई ले जाने के लिए श्रीफल भेंट किया

दिगंबर जैन समाज प्रवक्ता महावीर सरावगी नैनंवा

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