प्रसन्न सागर जी महाराज के सान्निध्य में में चल रहे कुंजवन महोत्सव में राजतिलक होने पर प्रभु की मंगल आरती में लोग झूम उठे, नाच उठे, गा उठे, हर्ष के स्वरों से संपूर्ण वातावरण गूंजायमान हो उठा।
औरगाबाद नरेंद्र/पियूष जैन. कुंजवन महोत्सव में उत्कृष्ट सिंहनिष्क्रीडित व्रतकर्ता-साधना महोदधि आचार्यश्री 108 गुरूवर्य प्रसन्न सागर जी महाराज के सान्निध्य में मंदिर जी में चल रहे कुंजवन महोत्सव में प्रातः काल भव्ययता लोगों का मन मोह रही है। प्रतिदिन होने वाले दिव्य जाप अभिषेक, शांतिधारा में जन-जन खो रहा है। प्रभु आराधना का यह पुनीत अवसर आचार्य प्रसन्न सागर जी के सान्निध्य में अनूठी अनोखी भव्यता से ओतप्रोत हो रहा है। नित्यपूजा और शांतिहवन करने वाले लोग इसकी अलोकिकता को स्वयं महसूस कर रहे हैं। प्रतिदिन होने वाली घटयात्रा में महिलाओं का उत्साह उमंग और उल्लास घटयात्रा की भव्यता को दिव्य बना रही है। मुनिसंघ के पावन प्रवचनों में खिरती वाणी लोगों के बीच अमृत की तरह बिखरने के साथ ही सौभाग्य में वृद्धि कर रही है।
कुंजवन महोत्सव में भगवान का राजकन्याओं से विवाह, राजदरबार में राज्य अभिषेक, 56 मुकुटवद्ध राजाओं द्वारा प्रभु को अनेकों प्रकार की दिव्य अमूल्य भेंट, प्रभु का भव्यता से राजतिलक किया गया। राजतिलक होने पर प्रभु की मंगल आरती में लोग झूम उठे, नाच उठे, गा उठे, हर्ष के स्वरों से संपूर्ण वातावरण गूंजायमान हो उठा। प्रभु द्वारा चार चार महामंडलेश्वर राजाओं की नियुक्ति एवं राजनीति पर उपदेश दिया गया। राजनर्तिका का नृत्य होने पर घटित घटना को देख कर भगवान को वैराग्य अनेमित्तक होता है। इसके साथ ही लौकांतिक देवागमन होता है और प्रभु का संसार की भव्यता से मोह भंग हो जाता है। वह वैराग्य पथ पर चल देते हैं। गीत संगीत के साथ यह संपूर्ण कार्यक्रम लोगों के मन में वीतरागता के भावों को प्रबल कर जाता है। भगवान सभी राजपाट छोड़ कर मनोहर वन में जुलुस के साथ पहुंच जाते है। वहां प्रभु की दीक्षा विधि संस्कार का आयोजन किया गया। इस मौके पर मुनि श्री प्रसन्न सागर महाराज ने अपने प्रवचनों के माध्यम से भगवान की महिमा से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि जो लोग वीतरागी भगवान जैसा होने की भावना मात्र रखते हैं। उनका कल्याण स्वत: ही हो जाता है। वीतरागी प्रभु किसी को कुछ देते नहीं, न ही किसी से कुछ लेने की अपेक्षा होती है। लेकिन उनकी आराधना करने वाले भक्तों का कल्याण प्रकृति खुद करने लगती है। प्रभु आराधना उत्कृष्ट भावों से करने मात्र से कर्मों की निर्जरा स्वतः होने लगती है। ऐसे तीनों लोकों के नाथ के चरणों में समर्पण मात्र से जीवन के कष्टों का अंत स्वतः ही होने लगता है। उन्होंने कहा कि प्रभु अराधना करने वाले भक्त निश्चित ही सौभाग्यशाली होते हैं। तभी उनको आराधना करने का अवसर प्राप्त होता है। रात्रि में गाजे बाजे के साथ ही संस्कृतिक कार्यकमों की धूम मची रही। इसमें भक्तों ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया। इस दौरान भक्तों ने नृत्य कर प्रभु भक्ति के अपने भावों को भी प्रकट किया। 30 दिसंबर को प्रभु का ज्ञान कल्याणक पर्व मनाया जायेगा। 31 दिसंबर को मोक्षकल्याणक के साथ प्रतिमाजी को विराजमान किया जायेगा। एक जनवरी नववर्ष को महामस्ताकाभिषेक होगा। उल्लेखनीय है कि यह सभी कार्यक्रम आयोजक श्री ब्रहम्नाथ पुरातन दिगंबर जैन मंदिर टस्ट कुंजवन उदगांव नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद