प्रसंगः आचार्य विद्यासागर समाधि स्मृति दिवस
आचार्य श्री श्रमण संस्कृति के महामहिम राष्ट्र, समाज हित चिंतक संत थे
डॉक्टर जैनेंद्र जैन
श्रमण संस्कृति के महामहिम संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज स्व कल्याण के साथ-साथ लोक कल्याण की भावना से समृद्ध एक निरभिमानी राष्ट्र, समाज हितचिंतक संत थे और जैन
श्रमणों में ज्येष्ठ एवं सर्वश्रेष्ठ ऐसे संत थे जिनके प्रति जैन जैनेत्तर समाज के सभी वर्गों के नागरिकों के अलावा भारत के राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री, रक्षामंत्री,
लोकसभा अध्यक्ष सहित अनेकों राज्यों के मुख्यमंत्री
राज्यपाल, राजनेता और शासन प्रशासन के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी भी अगाध श्रद्धा रखते थे।
आचार्य श्री के विषय में यहां यह उल्लेख करना भी अतिशयोक्ति पूर्ण नहीं होगा कि वह स्वयं में इतिहास थे और उनके चुंबकीय व्यक्तित्व एवं कर्म व चिंतन में वसुधैव कुटुंबकम और विश्व कल्याण की भावना समाहित थी। उन्होंने 5 दशक से अधिक समय तक देश के विभिन्न शहरों में बिहार अथवा चातुर्मास करते हुए अपने त्याग, तपस्या, ज्ञान साधना और करुणा की प्रभा से न केवल जैन क्षितिज को आलोकित किया वरन श्रमण संस्कृति(जिन शासन) को भी गोरवान्वित किया
बहु भाषा विद आचार्य श्री ने अपने 56 वर्षीय साधना काल की स्वर्णिम यात्रा में अनेकों मील के पत्थर स्थापित किये और धर्म, समाज, राष्ट्र, राष्ट्रभाषा, साहित्य, गौरक्षा, स्त्री शिक्षा, चिकित्सा एवं हथकरघा आदि क्षेत्रों में उनका जो महत्वपूर्ण अवदान रहा है उसे यह राष्ट्र एवं समाज सदियों तक याद रखेगा। छोटे बाबा के नाम से प्रसिद्ध आचार्य श्री की प्रेरणा से ही पांच नवीन तीर्थों की स्थापना हुई, 12 पाषाण जिनालयों का निर्माण एवं पांच तीर्थों का जीर्णोद्धार हुआ इसका ताजा उदाहरण है कुंडलपुर तीर्थ पर स्थित बड़े बाबा के विशाल, ऐतिहासिक एवं सुदर्शनीय मंदिर की पुनर्स्थापना का जो हम सबके समक्ष है। आचार्य श्री की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से देश में शताधिक गौशालाएं स्थापित हुईं, स्त्री शिक्षा हेतु धर्म एवं सु संस्कारों से समृद्ध गुरुकुल पैटर्न पर इंदौर ,जबलपुर,रामटेक सागर, डोंगरगढ़ आदि शहरों में प्रतिभास्थली
(आवासीय कन्या विद्यालय) की स्थापना एवं शुद्ध सूत व वस्त्र निर्माण हेतु कई शहरों में हतकरघा उद्योग की स्थापना पीडित मानवता की सेवा के लिए सागर में भाग्योदय हॉस्पिटल एवं रिसर्च सेंटर और जबलपुर में पुर्णायु
(आयुर्वेदिक हॉस्पिटल एवं अनुसंधान केंद्र) की स्थापना आचार्य श्री की प्रेरणा एवं आशीर्वाद, का ही सुफल है। आचार्य श्री ने 450 से अधिक मुनि एवं आर्यिका दीक्षा प्रदान कर श्रमण परंपरा को वृद्धिगत किया फलस्वरुप इस पंचम काल में भी हमें जगह -जगह मुनियों एवं आर्यिकाओं के दर्शन, सांनिध्य एवं आशीर्वाद मिल रहा है। श्रमण संस्कृति के उन्नयन एवं अहिंसा की स्थापना में आचार्य श्री का जो अवदान है वह भविष्य में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा एवं उनकी स्मृति को सदैव जीवंत रखेगा अतः उल्लेखित सर्व हितेषी कार्यों के रूप में आचार्य श्री का जो योगदान है उसे देखते हुए भारत सरकार द्वारा आचार्य श्री के प्रति कृतज्ञता की भावना से उन्हें समाधि उपरांत भारत रत्न अलंकरण प्रदान किया जाना चाहिए।
शरद पूर्णिमा 10 अक्टूबर 19 46 को कर्नाटक के सदलगा ग्राम में जन्मे युग श्रेष्ठ आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज माघ शुक्ल नवमी(17 फरवरी2024) को चंद्रगिरी तीर्थ डोंगरगढ़ (छत्तीसगढ़)में संलेखना पूर्वक मृत्युंजयी बनकर समाधिस्थ हो गए। उनके प्रथम समाधि स्मृति दिवस पर कोटि कोटि नमन
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डाक्टर जैनेंद्र जैन
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