जैन मंदिर में प्रतिदिन प्रातः 08.30 बजे होते हैं मुनिश्री के प्रवचन
मुरैना (मनोज जैन नायक) मन वचन काय का मिलना वरदान भी है और अभिशाप भी है । वरदान इस लिए है कि इसको प्राप्त कर हमने इसका सदुपयोग कर लिया, अच्छे कार्य कर लिए तो हमारा उत्थान हो जाएगा और मन वचन काय का हमने दुरुपयोग कर लिया तो हमारा विनाश हो जाएगा । “कर्म ही तारे, कर्म ही मारे” कर्म ही हमको मारता है और कर्म ही हमको तारता है । यदि मन बचन काय का दुरुपयोग होगा तो बुरे कर्म की आसक्ति होगी और सदुपयोग होगा तो अच्छे कर्म की आसक्ति होगी । मन वचन काय से हमारे भावों की परिणीति से कर्मों की उत्पत्ति होती है । जैसे पानी तो पानी है, वो जैसे संयोग में आएगा वैसा हो जाएगा । यदि आप पानी को नीम का निमित्त मिलेगा तो वो कड़वा हो जाएगा और यदि पानी को अंगूर या गन्ने का निमित्त मिलेगा तो वह मीठा हो जायेगा । इसी प्रकार सांसारिक प्राणी मन वचन काय का उपयोग जिस निमित्त से करेगा उसी के फलस्वरूप वो परिणामों को प्राप्त करेगा । इसी तरह हमारे द्वारा उत्पन्न वर्णाएं भावों का निमित्त पाकर के उस रूप में कर्म तैयार करता है । उक्त वचन दिगंबर जैन मुनिश्री विलोक सागर महाराज ने बड़ा जैन मंदिर में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए ।
मुनिश्री ने बताया कि हमें सदैव अपने भावों को देखना चाहिए, न कि दूसरे के भावों को । हमारे स्वयं के आचरण से, हमारे स्वयं के भावों से ही हमारा उत्थान होगा, न कि किसी दूसरे के भावों से । लेकिन वर्तमान में सांसारिक प्राणी अपनी कमियों को नहीं देखता, अपने आचरण को नहीं नहीं देखता । वह अपने अवगुणों को नजरअंदाज करते हुए दूसरों के अवगुणों को देखता है, दूसरों के भावों को देखता है । हे भव्य आत्माओं हमें जो भी परिणाम मिलेगे अपने भावों की परिणीति से मिलेगे । किसी अन्य के भावों की परिणीति से हमारा कल्याण होने वाला नहीं है ।
पुरुषार्थ से ही भाग्य बनता है, पुरुषार्थ से ही कर्मों का निर्माण होता है । यदि कोई व्यक्ति बुरा सोच सकता है तो वह अच्छा भी सोच सकता है । ये सब भावों के परिणामों का खेल है । ये सब हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम क्या और कैसा सोचें । यदि आपके अंदर गलत चल रहा हैं तो भावों में गलत विचारों की उत्पत्ति होगी और यदि आपके अंदर अच्छा चल रहा है तो भावों में अच्छे विचारों की उत्पत्ति होगी । यदि आपके परिणाम बुरे है तो कर्म बुरे फल देगा और आपके परिणाम अच्छे हैं तो कर्म अच्छे फल देगा । कर्म की मार को कोई झेल नहीं सकता । जिसका भाग्य ही दुर्भाग्य में बदल गया हो उसे कोई क्या मारेगा, उसे तो उसके कर्म ही मारेंगे ।
पूज्य गुरुदेव ने कहा कि भारत एक चरित्रवान देश है ।सम्पूर्ण विश्व में जितने भी महापुरुषों का जन्म हुआ है, भारत देश की पवित्र भूमि में ही हुआ है । क्योंकि एक चरित्रवान स्त्री ही चरित्रवान संतान को जन्म दे सकती है । भारत देश एक ऐसा देश है जिसमें शील व्रत का पालन होता है, शील व्रत की रक्षा होती है। भारत वह पावन एवं पवित्र भूमि है जिसमें महावीर, राम, कृष्ण, बुद्ध जैसे हजारों महापुरुषों ने जन्म लेकर सत्य, संयम, शील, अहिंसा का उपदेश देकर मानव जाति के कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया है ।
पूज्य मुनिश्री ने भावों की परिणीति को नियंत्रित करने की शिक्षा देते हुए बताया कि जब हम टी वी देखने के लिए बैठते है तो देखते है कि फला चैनल पर बहुत गलत चित्र चल रहे हैं। अरे भले मानस इसमें गलती चैनल की नहीं हैं, गलती आपकी है । आपने जिस चैनल को ऑन किया है वो उसी प्रकार के चित्र दिखाएगा । यदि आप दूसरा चैनल ऑन करोगे तो वह अच्छे चित्र दिखा सकता है । आपको जिस प्रकार के चित्र पटकथा आदि देखना हों, उसी चैनल को ऑन कीजिए । इसी प्रकार हमें अपने हृदय में क्या रखना है, अपने भावों में क्या रखना है, ये सब हमारे ऊपर निर्भर करता है । कहने का तात्पर्य यह है कि मन वचन काय पर नियंत्रण रखते हुए सदैव अच्छा सोचें, अच्छे विचार रखें ताकि अच्छे कर्मों का निर्माण होकर हमारा कल्याण हो, हमारा उत्थान हो और हम इस असार संसार को त्यागकर मोक्षमार्ग की ओर अग्रसर हो सकें ।