यह पुरस्कार आचार्य श्री द्वारा वीरगोदया तीर्थक्षेत्र धर्मधाम में पर्यूषण पर्व समारोह के दौरान प्रमाण पत्र और स्मृति चिन्ह के साथ प्रदान किया जाएगा।
लेख में विरगोदया में चल रहे 10 दिवसीय आध्यात्मिक संयम-संस्कार शिविर का भी उल्लेख किया गया है, जहां आध्यात्मिक और शारीरिक कल्याण के लिए योग और प्राणायाम सिखाया जा रहा है।पट्टाचार्य श्री विशुद्ध सागर जी ने दशलक्षण महापर्व के दौरान उत्तम संयम धर्म
के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि उत्तम संयम धर्म का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है. संयम का अर्थ है अपनी इंद्रियों और मन पर नियंत्रण रखना, जो आध्यात्मिक प्रगति और मोक्ष मार्ग के लिए अनिवार्य है.
संयम केवल बाहरी व्यवहार को नियंत्रित करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मन, वचन और शरीर पर पूर्ण अनुशासन स्थापित करने की कला है. यह हमें सिखाता है कि कैसे हम अपनी अनियंत्रित इच्छाओं, आवेगों और प्रवृत्तियों को साधकर एक संतुलित और सदाचारी जीवन जी सकते हैं. संयम के बिना, हमारी इंद्रियाँ और मन हमें सांसारिक मोह-माया में उलझाए रखते हैं, जिससे आत्म-ज्ञान और आंतरिक शांति की प्राप्ति कठिन हो जाती है.
उत्तम संयम के मुख्य आयाम
उत्तम संयम धर्म को कई स्तरों पर अभ्यास किया जाता है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को कवर करते हैं:
इंद्रिय संयम: यह पाँचों इंद्रियों – आँख, कान, नाक, जीभ और त्वचा – को उनके विषयों (जैसे रूप, शब्द, गंध, स्वाद और स्पर्श) में अत्यधिक आसक्ति से रोकना है. इसका तात्पर्य इंद्रियों का उपयोग न करना नहीं, बल्कि उनके विषयों में लिप्त न होकर उन पर नियंत्रण रखना है. उदाहरण के लिए, स्वादिष्ट भोजन के प्रति अत्यधिक लालसा न रखना या अनावश्यक रूप से दूसरों की बातों पर ध्यान न देना.
मन संयम: मन की चंचलता को नियंत्रित करना और उसे शुभ तथा सकारात्मक विचारों में लगाना मन संयम कहलाता है. इसमें अनावश्यक चिंतन, नकारात्मकता, और मानसिक विकारों जैसे क्रोध, लोभ और मोह पर नियंत्रण रखना शामिल है. एक शांत और एकाग्र मन ही सही निर्णय ले सकता है.
वचन संयम: सोच-समझकर बोलना, कम बोलना, सत्य बोलना और दूसरों के प्रति प्रिय तथा हितकारी वचन बोलना वचन संयम का हिस्सा है. कटु वचन, असत्य, निंदा और चुगली से बचना इस धर्म का महत्वपूर्ण पहलू है, क्योंकि वाणी का प्रभाव गहरा होता है.
काय संयम (शारीरिक संयम): यह शरीर की गतिविधियों पर नियंत्रण रखने से संबंधित है. इसमें अनावश्यक शारीरिक हलचल से बचना, हिंसा से दूर रहना और तपस्या के माध्यम से शरीर को साधना शामिल है. यह हमें शारीरिक सुखों से ऊपर उठने में मदद करता है.
प्राणियों के प्रति संयम (अहिंसा): सभी जीवों के प्रति दया और अहिंसा का भाव रखना संयम का एक मूलभूत सिद्धांत है. इसका अर्थ है किसी भी जीव को – चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो – मन, वचन या काय से कष्ट न पहुँचाना. यह सार्वभौमिक प्रेम और करुणा का प्रतीक है.
संयम का फल
उत्तम संयम धर्म का पालन करने से व्यक्ति को अपार मानसिक शांति, आंतरिक शक्ति और आत्म-नियंत्रण प्राप्त होता है. यह आत्मा को नए कर्मों के बंधन से बचाता है और पुराने कर्मों को क्षय करने में मदद करता है, जिससे अंततः मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है. संयमी व्यक्ति अपने जीवन में संतुलन स्थापित करता है और समाज में भी एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करता है.
दसलक्षण पर्व के दौरान उत्तम संयम धर्म का अभ्यास हमें एक अनुशासित, संतुलित और आध्यात्मिक जीवन जीने की प्रेरणा देता है, जो हमें सच्चे सुख और आत्म-ज्ञान की ओर ले जाता है.योगेश जैन ,संवाददाता टीकमगढ़ ,6261722146