-डॉ सुनील जैन संचय , ललितपुर
पिछले दिनों अतिशय क्षेत्र केशोरायपाटन जिला बूंदी राजस्थान में परम पूज्या गणिनी आर्यिका स्वस्ति भूषण माता जी के सान्निध्य में आयोजित अखिल भारतीय जैन पत्रकार महासंघ के अधिवेशन में ‘ वर्तमान संदर्भ में प्रिंट मीडिया की उपादेयता एवं जैन पत्र-पत्रकारों के संरक्षण के उपाय’ विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में विचार रखने का अवसर प्राप्त हुआ था। काफी मंथन इस विषय पर किया गया तथा सोशल मीडिया के बढ़ते दुरुपयोग पर भी चिंता की गई।
मानव जीवन में पत्रकारिता अपने महत्वपूर्ण स्थान और उच्च आदर्शों के पालन के लिए सदैव अपनी पहचान बनाती आ रही है। आज ‘पत्रकारिता’ शब्द हमारे लिए कोई नया शब्द नहीं है। सुबह होते ही हमें अखबार की आवश्यकता होती है, फिर सारे दिन रेडियो, दूरदर्शन, इंटरनेट एवं सोशल मीडिया के माध्यम से समाचार प्राप्त करते रहते हैं।
पत्रकारिता के महत्व को अकबर इलाहाबादी ने बहुत ही अच्छे से कहा है –
खींचो न कमानों को न तलवार निकालो ।
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो।।
पत्रकारिता Journalism आधुनिक सभ्यता का एक प्रमुख व्यवसाय है जिसमें समाचारों का एकत्रीकरण, लिखना, रिपोर्ट करना, सम्पादित करना और सम्यक प्रस्तुतीकरण आदि सम्मिलित हैं। आज के समय में पत्रकारिता के भी अनेक माध्यम हो गये हैं; जैसे – समाचार पत्र- पत्रिकाएँ , रेडियो, दूरदर्शन, वेब-पत्रकारिता आदि।
पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है। निष्पक्ष पत्रकारिता ही है जो राष्ट्र, समाज को आगे बढ़ने में अपनी अहम भूमिका अदा करती है। आज दिनोंदिन पत्रकारिता का महत्त्व बढ़ता जा रहा है पर यह भी सच है कि आज पीत पत्रकारिता की भी कमी नहीं है।
पत्र- पत्रिकाओं में सदा से ही समाज को प्रभावित करने की क्षमता रही है। समाज में जो हुआ, जो हो रहा है, जो होगा, और जो होना चाहिए यानी जिस परिवर्तन की जरूरत है, इन सब पर पत्रकार को नजर रखनी होती है। आज समाज में पत्रकारिता का महत्व काफी बढ़ गया है। इसलिए उसके सामाजिक और व्यावसायिक उत्तरदायित्व भी बढ़ गए हैं। पत्रकारिता का उद्देश्य सच्ची घटनाओं पर प्रकाश डालना है, वास्तविकताओं को सामने लाना है।
जैन पत्रकारिता का मुख्य धरातल धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा नैतिक मूल्यों के विकास के साथ सम्बद्ध रहा है। राजनीतिक क्षेत्र में भी जैन पत्रकारिता ने इन्हीं मूल्यों की प्रतिष्ठापना पर बल दिया है। अहिंसावादी मूल्यों की संवाहिका जैन पत्रकारिता ने राष्ट्रीय सुरक्षा व अखण्डता जैसे संवेदनशील प्रश्नों पर कायरता का परिचय नहीं दिया वरन् जन-मानस को साहस और शौर्य के साथ इन खतरों से जूझने की प्रेरणा दी है। गांधीजी के स्वदेशी तथा भारत छोड़ो जैसे आन्दोलनों को जैन पत्रकारिता ने सदा अपना रचनात्मक सहयोग दिया। स्वातन्त्र्योत्तर भारत में देश के पुनर्निर्माण के साथ भी जैन पत्रकारिता जुड़ती है और महत्त्वपूर्ण घटनाओं पर विचारोत्तेजक टिप्पणियाँ लिखकर अपनी राजनीतिक चेतना के प्रखर पक्ष का परिचय देती है।
जैन पत्रकारिता की ओर दृष्टिपात करते हैं तो संख्यात्मक आंकड़ों में एक बड़ी संख्या देखने मिलती है पर धरातल पर काम कितनी कर रहीं हैं तो संख्या उंगलियों पर गिनने लायक बचती है। समाज को सही दिशाबोध कितनी जैन पत्र-पत्रिकाएं दे रहीं हैं? विचारणीय है। आज तीव्र गति से बड़ रही टेक्नोलॉजी के दौर में जैन पत्र पत्रकाओं की स्थिति में गिरावट आई है। जैन पत्र या पत्रिका वह भी व्यवस्थित और समय पर निकालना आज के दौर में चुनोती से कम नहीं है। अनेक पत्र-पत्रकाओं के संयुक्तांक देखने को मिलते हैं तो कुछेक दो-चार अंकों के बाद नजर ही नहीं आतीं। स्वतंत्र पत्र-पत्रकाओं को निकालने वालों को तो हमेशा अंक निकालने की चुनोती रहती है।
एक जानकारी के मुताबिक जैन समाज की 750 के लगभग जैन पत्र-पत्रिकाओं का पंजीयन है, पर कितनी प्रकाशित हो रही हैं यह एक बड़ा प्रश्न है।
आज जैन मीडिया को अपनी पुरानी तकनीक उभारना होगा। नई तकनीकी पीढ़ी आज जैन पत्र-पत्रिकाओं से दूर नहीं होती जा रही ? क्या जैन समाचारों का, देश की खबरों से अब जुड़ाव खत्म होता जा रहा है ? ऐसे कई सवाल हैं, जिनको आप नकार नहीं सकते । बदलना होगा अपने आपको । आज जो हम परोस रहे हैं वह बासी हो जाता है। आज प्रिंट के साथ डिजिटल की बैसाखी बहुत आवश्यक है। जो भी पहुंचाना है, तुरंत अच्छा, अलग परोसना होगा। उसमें लंबाई नहीं , गुणवत्ता चाहिए। शब्दों में सरलता और शास्त्रों की बातों को कहानी आदि के रूप में बहुत सरल भाषा में, अगर हम परोंसे, तो आने वाली पीढ़ी को जैन धर्म, समाचारों और घटनाओं से जोड़ पाएंगे ।
प्रत्येक पत्रकार को लिखना चाहिए लेकिन उससे पहले टटोलना चाहिए वर्तमान युग कॉपी पेस्ट कर केवल फॉरवर्ड करने का होता जा रहा है जो कि किसी भी स्थिति में तर्कसंगत में उपयुक्त नहीं है।
अगर हम जिम्मेदार नहीं बनेंगे , साप्ताहिक को एक दिन, मासिक को 2 दिन में परोसते रहेंगे, तो वह दिन दूर नहीं , जब पत्र-पत्रिकाओं की , विशेषकर जैन पत्र-पत्रिकाओं की , संख्या में जो गिरावट आ रही है ,और पिछले 2 सालों में आधी से ज्यादा प्रिंट पत्रिकाएं लगभग बंद हो गई है , उनका भविष्य अंधकार में हो जाएगा। अगर वह कॉपी, कट , पेस्ट की लत नहीं छोड़ेंगे। आज जैन पत्र पत्रिकाएं संघर्ष कर रही हैं।
पत्रकार लेखनी के पुजारी होते हैं। पत्रकार की कलम लोगों के कदम बढ़ाने का काम करती है। पत्र और पत्रकार समाज को उज्जवल बनाते हैं, लेखनी में वह दम है कि मुर्दा में भी जान फूंक दी जाती है। स्वतंत्रता की लड़ाई भी अखबार के माध्यम से ही जीती गई थी। पत्रकारों का दायित्व है कि समाज के गिरते हुए संस्कार ,बिगड़ती हुई मानसिकता, मंदिर से दूर होती युवा पीढ़ी को फिर से झंकृत करना है, यह पत्रकारों का दायित्व है । पत्रकार समाज में नई जान फूंक सकते हैं। आज वर्तमान संदर्भ में पत्रकारों का समाज देश और धर्म के प्रति दायित्व और अधिक बढ़ गया है। प्रत्येक पत्रकार को अपने कर्तव्यों का निर्वाहन करना चाहिए ।