पर्यूषण पर्व पांचवा दिन 12 सितंबर 2024 पर विशेष :

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वाणी का करें सदुपयोग ,अप्रिय, कटुक, कठोर, शब्द नहीं बोलें
उत्तम सत्य धर्म:  हित-मित-प्रिय बोलें
-डॉ. सुनील जैन संचय, ललितपुर
आज उत्तम सत्य धर्म का दिन है। जहाँ क्षमा , मार्दव , आर्जव , शौच आत्मा का स्वभाव है , वहीं सत्य- संयम- तप त्याग इन गुणों को प्रगट करने के उपाय हैं , या कहें कि ये वो साधन हैं जिनसे हम आत्मिक गुणों की अनुभूति और प्रकट कर सकते हैं।
जैसा देखा या सुना हो, उसे वैसा नहीं कहना बताना ही झूठ है। जिन वचनों से किसी धर्मात्मा या निर्दोष प्राणी का घात हो, ऐसे सत्य वचन बोलना भी झूठ कि श्रेणी में आता है।छल-कपट, राग-द्वेष रहित वचन बोलना, सर्व हितकारी, प्रामाणिक, मितकारी, कोमल वचन बोलना , प्राणियों को दुःख पहुचाने वाले वचन न कहना “उत्तम सत्य धर्म” है।
जहाँ बोलने से धर्म की रक्षा होती हो, प्राणियों का उपकार होता हो, वहां बिना पूछे ही बोलना और जहाँ आपका व अन्य का हित नहीं हो वहां मौन ही रहना उचित कहा है।
नीतिकारों ने कहा है कि सत्य गले का आभूषण है, सत्य से वाणी पवित्र होती है। सत्य बोलो और धर्म का आचरण करो। क्रोध, लोभ, भय और हँसी-मजाक आदि के कारण ही झूठ बोला जाता है। जहाँ न झूठ बोला जाता है, न ही झूठा व्यवहार किया जाता है वही लोकहित का साधक सत्यधर्म होता है।अप्रिय, कटुक, कठोर, शब्द नहीं बोलें।साबुन से वस्त्र स्वच्छ होता है। वैसे ही वाणी सत्य से निर्मल होती है। सत्य पर सारे तप निर्भर करते हैं। जिन्होंने सत्य का पालन किया, वे इस संसार से पार हो गए, मुक्त हो गए। सत्य ही संसार में श्रेष्ठ है।
हित-मित-प्रिय बोलें :  सत्य बोलो और धर्म का आचरण करो। क्रोध, लोभ, भय और हँसी-मजाक आदि के कारण ही झूठ बोला जाता है। जहाँ न झूठ बोला जाता है, न ही झूठा व्यवहार किया जाता है वही लोकहित का साधक सत्यधर्म होता है।  हमें कठोर, कर्कश, मर्मभेदी वचनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए । जब भी बोलें हित- मित- प्रिय वचनों का प्रयोग अपने व्यवहार में लाना चाहिए तथा कहा भी गया है- ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय, औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होय।। कठोर वचन सत्य की श्रेणी में नहीं आते।
 सत्यवादी की जग में सदा ही विजय होती है। इसीलिए कहा है ‘सत्यमेव जयते’। अत: हमें अपने जीवन में सदा सत्य का पालन करना चाहिए । व्यवहार में वाणी के सदुपयोग को सत्य कहते हैं।दुर्लभ वाणी का सदुपयोग करने वाला ही धर्मात्मा कहला सकता है। हित—मित और प्रिय वचन बोलना ही वाणी का सदुपयोग है। कटु, कर्वश एंव निन्दापरक वचन बाण की तरह होते हैं, जो सुनने वाले के हृदय में घाव कर देते हैं ।
 व्यवहार में वाणी के सदुपयोग को सत्य कहते हैं।दुर्लभ वाणी का सदुपयोग करने वाला ही धर्मात्मा कहला सकता है। हित—मित और प्रिय वचन बोलना ही वाणी का सदुपयोग है। कटु, कर्वश एंव निन्दापरक वचन बाण की तरह होते हैं, जो सुनने वाले के हृदय में घाव कर देते हैं ।
“अनगार धर्मामृत”  के अनुसार —
जो वचन प्रशस्त , कल्याणकारक , तथा सुनने वाले को आह्लाद उत्पन्न करने वाले , उपकारी हों ऐसे वचनों को ही सत्यव्रतियों ने सत्य कहा है। किन्तु उस सत्य को सत्य न समझना जो अप्रिय और अहितकर हो।
बोलने से पहले विचार अवश्य करना चाहिये , यदि वसु राजा झूठ बोलने से पहले एक बार विचार करता तो आज वह जीव नरक में नहीं होता। लोक में कहावत चलती है —
ऊँचे सिंहासन बैठि वसु नृप ,
धरम का भूपति भया।
वच झूठ सेती नरक पहुँचा ,
सुरग में नारद गया।।
बोलना एक सुंदर कला है परन्तु मौन रहना उससे भी श्रेष्ठ।
असत्यवादी लोग अपने गुरु, मित्र और बंधुओं के साथ भी विश्वासघात करके दुर्गति में चले जाते हैं। किन्तु सत्य बोलने वाले लोगों को वचन सिद्धि हो जाया करती है। क्रमश: सत्य के प्रभाव से वे दिव्यध्वनि के स्वामी होकर असंख्य प्राणियों को धर्म का उपदेश देकर मोक्ष मार्ग का प्रणयन करते हैं। इसलिए हमेशा सत्य धर्म का आदर करना चाहिये।
जाप्य—ॐ ह्रीं उत्तमसत्यधर्माङ्गाय नम:।

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