पारसोला में आर्यिका ज्योति मति माताजी का सम्यक समाधिमरण

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धरियावद, 17 दिसंबर। तहसील क्षेत्र के पारसोला कस्बे में वात्सल्य वारिधि दिगंबर जैन आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज की यम सल्लेखनारत शिष्या आर्यिका ज्योति मति माताजी का आर्यिका सुपार्श्वमति भवन में 16 दिसंबर रात्रि 11.37 बजे संघ की उपस्थिति में आचार्य श्री के मुख से णमोकार मंत्र श्रवण करते हुए सम्यक समाधिमरण हो गया।
17 दिसंबर प्रातः समाधिस्थ आर्यिका ज्योति मति माताजी की डोल यात्रा निकाली गई, जिसमें डोल को कंधा देने का सौभाग्य माताजी के गृहस्थ परिजन को प्राप्त हुआ। डोल यात्रा कस्बे के प्रमुख मार्गों से होती हुई साबला रोड स्थित वैराग्य योग दर्शन समाधि स्थल पहुंची। यहां पर स्थानीय पंडित कीर्तिश जैन, अशोक जैन के निर्देशन में समाधि (अंतिम संस्कार) स्थल की मंत्रोच्चारपूर्वक शुद्धि की गई।
श्रीफल जैन न्यूज के अशोक कुमार जेतावत ने बताया कि  समाधिस्थ आर्यिका का अभिषेक, शांतिधारा, पूजन, मुखाग्नि देने आदि का लाभ गृहस्थ पुत्र गोपाल एवं महेंद्र, पुत्रियां संजू एवं मंजू समेत अन्य परिवारजन द्वारा लिया गया। उपस्थित सभी आर्यिका और श्रावक-श्राविकाओं ने अंतिम संस्कार स्थल की परिक्रमा कर माताजी को अंतिम श्रद्धांजलि अर्पित की।
जीवन परिचय:- समाधिस्थ 81 वर्षीय आर्यिका ज्योति मति माताजी ने गृहस्थ अवस्था में मालपुरा (जिला टोंक) राजस्थान से गृह त्याग कर आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज से श्रीफल भेंट कर सप्तम प्रतिमा व्रत के नियम धारण किए। पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधि वर्धमान सागर जी महाराज के कर कमलों से श्री गोम्मटेश बाहुबली श्रवण बेलगोला तीर्थ क्षेत्र पर जैनेश्वरी आर्यिका दीक्षा प्रदान कर आर्यिका ज्योति मति नाम दिया। वे पुनः जब 2018 में आचार्य श्री संघ के साथ भगवान बाहुबली स्वामी के महामस्तकाभिषेक में दर्शन करने पहुंचीं, तो उन्होंने वहां पर 8 वर्षों की नियम संल्लेखना धारण की। इस वर्ष पारसोला कस्बे में आचार्य श्री संघ का वर्षायोग सानंद संपन्न हुआ। साथ ही चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज के आचार्य शताब्दी वर्ष प्रारंभ समारोह भी पारसोला में अखिल भारतीय स्तर पर मनाया गया।
पारसोला में ही 9 नवंबर 2024 को आर्यिका श्री ज्योति मति माताजी ने आचार्य श्री से संस्तारोहण ग्रहण किया था। 6 दिसंबर 2024 को आचार्य श्री एवं पूरे संघ को क्षमायाचना करते हुए चारों प्रकार के आहार का आजीवन त्याग कर यम संल्लेखना नियम धारण किया था। आचार्य श्री एवं संघ के सबसे वरिष्ठ और वृद्ध मुनि श्री चिन्मय सागर जी, मुनि श्री हितेन्द्र सागर जी आदि निरंतर संबोधन करते रहे और संघस्थ वरिष्ठ आर्यिका श्री शुभम मति माताजी, आर्यिका श्री शीतल मति मताजी, आर्यिका श्री विलोक मति माताजी, आर्यिका श्री वत्सल मति माताजी, आर्यिका श्री देवर्धि मति माताजी आदि ससंघ आपकी चर्या और नियमित संबोधन को तत्पर रहीं।
आर्यिका ज्योति मति माताजी ने नवंबर एवं दिसंबर माह में 30 से अधिक उपवास कर समाधि मरण को प्राप्त किया। इसमें यमसंल्लेखना के पश्चात लगातार 10 उपवास संपन्न हुए थे।
– अशोक कुमार जेतावत

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