तर्ज – जहां डाल जहां पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा
रचयिता
✍️ पारस जैन पार्श्वमणि पत्रकार कोटा
जहां त्याग, तपस्या, संयम, शील की बहती निर्मल धारा वो विद्या गुरु हमारा ……2
पिता श्रीमलप्पा जी और मात श्रीमती के दुलारे
बचपन से विद्याधर ने श्री जिन वचन उच्चारें.
लिया तरुणाई में ब्रहमचारी व्रत है यह कितना न्यारा
वो विद्या गुरु हमारा
(1)
संसार शरीर और भोगों से जिसने नेह हटाया
गुरु ज्ञान सागर जी से विद्या सागर जी नाम पाया
चल दिए छोड़ घर बार सभी मुक्ति का पथ उजियारा
वो विद्या गुरु हमारा
(2)
जो लोभ मोह और माया से नित ही दूर रहते
जीवादि प्रयोजन भूत तत्वों पर चिंतन करते
जिनकी वाणी ने भेद ज्ञान का अमृत कलश बिखेरा
वो विद्या गुरु हमारा
(3)
श्री महावीर स्वामी से आप लगते हो लघुनंदन
इस पंचम काल में बाट रहे थे कुंद कुंद का कुंदन
जितने भी शिष्य हुए जगती में उनको नमन हमारा
वो विद्या गुरु हमारा
(4)
जिनके सन्मुख उपमा छोटी से छोटी होती जाये
वो मंद मधुर मुस्कान सदा चेहरे पर खिलती आए
“पार्श्वमणि” हम जिनका करते है वंदन
वो विद्या गुरु हमारा
जहां प्यार तपस्या संयमशील की बहती निर्मल धारा वह विद्या गुरु हमारा
जहां प्यार तपस्या संयमशील की बहती निर्मल धारा वह विद्या गुरु हमारा
रचयिता
राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी
पारस जैन पार्श्वमणि पत्रकार कोटा
9414764980