परम पूज्य मुनि वैराग्य सागर जी महाराज एवं सुप्रभ सागर जी महाराज को चातुर्मास हेतु श्रीफल भेंट किया

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कोटा (राजस्थान)
आरके पुरम स्थित शनिअनिष्ट निवारक मुनि मुनिसुव्रतनाथ दिगंबर जैन त्रिकाल चौबीसी मंदिर में परम पूज्य मुनि वैराग्य सागर जी महाराज एवं सुप्रभसागर जी महाराज को विभिन्न जगह से आए श्रद्धालुओं ने चातुर्मास हेतु श्रीफल भेंट किया ।
मंदिर समिति के अध्यक्ष अंकित जैन महामंत्री अनुज जैन कोषाध्यक्ष ज्ञानचंद जैन ने जानकारी देते हुए बताया कि द्वय मुनि श्री का मंगल प्रवास अभी आर के पुरम मंदिर जी में चल रहा है। द्वय मुनि श्री के पावन चरणों में आरके पुरम मंदिर समिति के पदाधिकारियों सहित समाज के लोगो ने चातुर्मास के लिय श्रीफल भेंट किया। इस अवसर पर सकल जैन समाज के अध्यक्ष प्रकाश बज, महामंत्री पदम बडला, विमल जैन, जे के जैन मनोज जयसवाल, राजेश खटोड़, पंकज जैन, पदम जैन, लोकेश बरमूडा, सागर चंद जैन मौजूद थे। राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी एवम मंदिर समिति के प्रचार प्रसार मंत्री पारस जैन “पार्श्वमणि” ने बताया कि जवाहरनगर, लाडपुरा, रामपुरा उपनगरों मंगल चातुर्मास हेतु श्री फल भेट किया गया। देवपुरा बूंदी से भी जैन समाज के श्रद्धालुओं ने भक्ति भाव पूर्वक चातुर्मास हेतु श्रीफल भेंट किया। मंदिर समिति कार्याध्यक्ष प्रकाश जैन ने बताया कि प्रातः काल द्वय मुनि श्री के सानिध्य में विश्व शांति की मंगल कामना से महा शांतिधारा की गई। मुनि श्री वैराग्य सागर जी धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहां की वर्तमान समय में लोग बच्चों में सद संस्कारो का बीजारोपण नहीं करते है बच्चों को उच्च शिक्षा प्रदान करवाते परंतु धार्मिक शिक्षा पर ध्यान नहीं देते हैं यह सबसे बड़ी विडंबना इस समय की है । बचपन में जो धार्मिक सद संस्कार दिए जाते हैं वो पचपन की दहलीज तक ज्यो के त्यों बने रहते है इसलिए बचपन में सद संस्कारों का वीजारोपण अतिआवश्यक है । महापुरुषों के जीवन चरित्र अवश्य अपने बच्चों को पढ़ने की प्रेरणा देवे।जिससे वो युवा होने पर अपने लक्ष्य से नहीं भटके। आगे मुनि श्री सुप्रभ सागर महाराज जी ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में चित्र की नहीं चरित्र की पूजा होती है साधनों की नहीं साधना की आराधना की जाती है। साधु संगत बड़े पुण्य से मिलती है जिस नगर शहर के श्रद्धालुओं का महान पुण्य होता है वही संतो का चातुर्मास हो पाता है। संत के सानिध्य से भले व्यक्ति संत न बन पाए परंतु संतोषी तो बन ही जाता है।
प्रस्तुति
पारस जैन “पार्श्वमणि” कोटा 9414764980

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