परम पूजनीय जिनधर्म प्रभाविका आर्यिका105 सृष्टि भूषण माताजी संयम वर्ष वर्द्धन दिवस 26 मार्च एवम अवतरण दिवस 23 मार्च पर भाव भीनी अभिव्यक्ति

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(सृष्टि का अलंकरण सृष्टि का करती दुखहरण) साधना और मंगल भावना की संपूर्णता का नाम है 60 वर्षीय पूज्य आर्यिका 105 श्री सृष्टि भूषण माताजी जी, पूज्य माता जी ने भारतवर्ष के मध्य प्रदेश प्रांत की रत्नमय मुंगावली की धरा पर 23 मार्च सन 1964 चैत्र शुक्ला नवमी को श्रद्धेय पिताश्री कपूर चंद जी एवं माता श्री पदमा देवी की बगिया में जन्म लिया नामकरण हुआ। मानवता के दिव्य आलोक से परिपूर्ण संयम की मंगल मनीषा सुलोचना यह परिवार की तीसरी संतान थी। इसे विधि का विधान कहे की इनसे पूर्व जन्मे दोनों ही पुत्र अल्प समय में ही इस मनुष्य पर्याय से पलायन कर गए। दोनों संतानों के चले जाने के बाद आपका जन्म हुआ।
रोचक बात
आपके जन्म से पहले ही आपकी मातृश्री को सपनों के माध्यम से आदेशित किया गया यह संतान को अपने पास ना रख कर कहीं और परवरिश कराई जाए अन्यथा संतान भी काल के गाल में विलीन हो जाएगी। बडा ही व्याकुल क्षण थे इतना सुन माँ ने अपने हृदय और भावनाओं पर पत्थर रखा आपको जन्म के कुछ क्षणों बाद आपको ताई श्रीमती रामप्यारी बाई को सौंप दिया। जो आपके गांव की एक वरिष्ठ महिला थी। उनके पति का देहांत भी उनके विवाह के मात्र 6 महीने बाद ही हो गया था।उनकी अपनी कोई संतान नहीं थी,अत: उन्होंने आपको हृदय से लगाकर अपनी खुद की संतान से भी ज्यादा प्यार देकर पाला पोसा और संस्कारित किया। सभी के आकर्षण का केंद्र थी ।पूरे गांव की लाडली सुलोचना पूरे कुटुंब का आकर्षण थी। मेधावी छात्रा को शिक्षकों ने भरपूर स्नेह दिया। वह इन्होने आत्मीयता से शिक्षा को सम्पन्न किया। चाहे लौकिक शिक्षा हो, हस्त कला हो संगीत कला हो सभी में पारंगत रही।
सन्यास की ओर बढ़ते कदम
संन्यास की भविष्य वाणी

जब सुलोचना की 4 वर्ष की थी तो ताई जी आर्यिका श्री सुपार्श्वमति माताजी के दर्शन के लिए उन्हें लेकर गई ,उन्हें देखकर माताजी स्वयं ही बोल पड़ी अरे इस बालिका को तो संन्यास लेने से कोई नहीं रोक सकता तब ताई जी हैरानी से बोली पर ऐसा क्यों माताजी ने कहा कि जिस दिन यह बच्ची जैन संतों के दर्शन कर लेगी उसी दिन गृह त्याग की भावना बन जाएगी जो रोकने से नहीं रुकेगी ।माताजी ने छोटी सी सुलोचना को छोटे-छोटे कमंडल और मयूर पीछी भी आशीर्वाद में दिए । ताई जी धार्मिक महिला होते हुए इस बात से चिंतित हुई।जब कोई संत नगर में आते तब उन्होंने सुलोचना का मंदिर जाना बंद कर दिया ,पर होता वही है जो भाग्य में लिखा होता है संयोग से सुलोचना को मुंगावली जाना पड़ा जहां भाग्य प्रतीक्षा कर रहा था सुलोचना के मस्तिष्क पर धर्म का स्वस्तिक रचना के संयोग बने नगर में क्षुल्लक श्री गुण सागर जी वर्तमान समाधिस्थ आचार्य श्री ज्ञान सागर जी आए हुए थे। जिनके सानिध्य में दहेज विषय पर वाद विवाद प्रतियोगिता रखी गई सुलोचना ने भी प्रतियोगिता में भाग लिया और अपनी वाक पटुता से प्रथम स्थान प्राप्त किया पुरस्कार में मिली कुछ पुस्तकों में एक पुस्तक मिली आटे का मुर्गा। इन पुस्तकों के स्वाध्याय से परिजनों के लाख यत्न करने पर भी सुलोचना को मोक्ष मार्ग चढ़ने बढ़ने पर कोई रोक नहीं सका।
धार्मिक अध्ययन
ललितपुर की प्रखर मेधावी ब्रह्मचारिणी कमलेश जी ब्रह्म सुलोचना के लिए वरदान बनकर मिली उन्होंने ही ब्रह्म सुलोचना को आगम का अध्ययन कराया और बड़ी बहन जैसी आत्मीयता स्नेह दिया ।
वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री का वात्सल्य
प्रसंग है 1993 श्री बाहुबली भगवान के महामस्तकाभिषेक का तब माताजी की दीक्षा नही हुई थी, ब्रह्मचारिणी थी वह भी 93 में मस्तकाभिषेक देखने संघ की अन्य दीदियों के साथ गई थी।
उन्होंने पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी से संघ के साथ अभिषेक देखने का निवेदन किया आचार्य श्री ने सहज स्वीकृति देकर अगले दिन दोपहर को सामायिक के बाद का समय दिया। आचार्य श्री संघ समय पर बड़े पहाड़ के गेट तक पहुँच गए। किंतु दीदियों के नही पहुँचने पर इंतजार कर बुलाने भेजा और संघ के साथ लेकर चले गए। घटना छोटी है किंतु यह अन्य संघ के प्रति वात्सलय को दर्शाती है कि सचमुच आचार्य श्री का हृदय कितना विशाल एवम करुणामय है।
जीवन का टर्निंग प्वाइंट दीक्षा
सभी बहनों के साथ गुरु आज्ञा से तीर्थराज सम्मेद शिखर जी की यात्रा करने के लिए पहुंची वहां एक पर्वत पर एक श्रावक के साथ हृदय विदारक घटना घटी श्रावक को लुटेरों ने लूटा और गोली मार दी जिससे उसकी मौत हो गई ,उसकी मूर्छित पत्नी और तड़पते बच्चों को देखकर ब्रह्मचारिणी सुलोचना को इस संसार की असारता और नश्वरता को गहराई से भाप गई तुरंत दीक्षा लेकर आत्म कल्याण को व्याकुल हो गई ।
सिद्ध क्षेत्र श्री सम्मेद शिखर जी में आर्यिका दीक्षा
26 मार्च 1994 चैत्र शुक्ला 14 चतुर्दशी को आचार्य श्री सुमति सागर जी महाराज एवम विद्या भूषण आचार्य श्री सम्मति सागर जी से बाल ब्रह्मचारिणी सुलोचना दीदी ने 30 वर्ष की उम्र में सीधे आर्यिका दीक्षा ग्रहण की आचार्य श्री ने नाम प्रदान किया आर्यिका श्री सृष्टि भूषण माताजी। आप विशिष्ट प्रज्ञा समन्वित एवं रत्यत्रय विभूषित है।
माताजी द्वारा समाज सेवा धार्मिक क्षेत्र में देश में अनेक कीर्तिमान बने हैं जो स्वयं में भूतो ना भविष्यति की संख्या लिए हुए हैं ।इसमें माताजी द्वारा बद्रीनाथ की यात्रा अतिशय क्षेत्र रानीला में 57 दिवसीय अखंड भक्तामर आराधना ,औद्योगिक नगरी गुड़गांव में पद्म पुराण मानस लीला का मंचन , अतिशय क्षेत्र बड़ा गांव में अखंड 44 दिवसीय आराधना , अतिशय क्षेत्र महावीर जी और मुरादाबाद में विषपाहार स्त्रोत शामिल है। माताजी के निमित्त से धर्म में जोड़ने वालों की संख्या हजारों लाखों से भी ज्यादा है जहां माताजी के चरण पढ़ते हैं वहीं श्रद्धालुओं का हुजूम लग जाता है जब माताजी चल पड़ती तो ऐसा लगता है मानो कोई मेला लगा हुआ है माता जी के चातुर्मास पाने के लिए समाज में तो होड़ लगी रहती । इतना ही नहीं आपने धर्म की प्रभावना करते हुए लगभग 25000 किलोमीटर की पदयात्रा की है। एवं आपने अपने 30 वर्षीय संयमी जीवन में करीब 25000 किलोमीटर की पदयात्रा पूरी की। जिसमें दिल्ली ,उत्तर प्रदेश ,हरियाणा ,उत्तराखंड ,झारखंड, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश, उड़ीसा ,गुजरात आदि के प्रांतों के नगर एवं महानगर सम्मिलित हैं।आपके द्वारा महानगर दिल्ली समेत सिद्ध क्षेत्र श्री सम्मेद शिखरजी झारखंड, सिद्ध क्षेत्र सोनागिर जी मध्य प्रदेश, अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी राजस्थान मैं भक्तों के सहयोग से श्री सृष्टि मंगलम फाउंडेशन ऐसी संस्थाओं की स्थापना करवाई। जिसमे त्यागी महाव्रती अणुव्रत धारी के आहार की व्यवस्था की गई ।जिसके माध्यम से समाज के हर वर्ग के लोग लाभान्वित हो सके। साथ ही प्यारी आत्माओं जो संयम के मार्गदर्शक हैं। निर्विकल्प अपनी संयम साधना कर सकें। ऐसी व्यवस्था प्रदान की गई भविष्य में भी की जाती रहेंगी। आपके आशीर्वाद से एवं निर्देशन में जगह जगह निशुल्क भोजनालय खुलवाए गए। छात्रवृत्ति शिक्षण शिविर, संस्कार शिविर, पूजन विधान शिविर, वस्त्र वितरण ट्राई साइकिल बैसाखी कानों की मशीन सिलाई मशीन कंबल निशुल्क दवाइयों के वितरण के साथ साथ असहाय गरीब लड़कियों की शादी करवाना एवं साथ-साथ बेरोजगार परिवारों को कार्य दिलवाने के कार्य किए जा रहे हैं ।
कैंसर और थैलेसीमिया जैसी दो बड़ी बीमारियों को ध्यान में रखते हुए आप की प्रेरणा से गठन हुआ श्री आदि सृष्टि कैंसर ट्रस्ट का।अनेक सेमिनार अल्प समय मे ही देश के विभिन्न प्रांतों जिलो गांव कस्बों के साथ विदेशों में भी जांच शिविर सेमिनार एवं जागरूकता अभियान शुरू किए गए। शासन प्रशासन का भरपूर सहयोग मिला ।सरकारी योजनाओं के द्वारा लाभान्वित लोगो इलाज कराया गया ।
मानव रत्न से अलंकृत
प्रख्यात मानव सेविका एवम जिनधर्म प्रभाविका आर्यिका 105 श्री सृष्टि भूषण माताजी को मानव कल्याणार्थ किए गए अति विशिष्ट कार्यों के लिए International News And Views Corporation द्वारा मानव रत्न अलंकरण से सम्मानित किया गया है । वे एक प्रख्यात जैन संत एवम समाज सेविका हैं जो पिछले कई दशकों से कैंसर पीड़ित व्यक्तियों, दिव्यांगजन, अनाथ बच्चों की शिक्षा एवम् महिला रोजगार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक महा अभियान चला कर सृष्टि के मानव ग्रह भारतीय भू-वसुंधरा का संताप हरण कर रहीं हैं। उनको यह अलंकरण, कैंसर पीड़ित व्यक्तियों की सेवा के लिए चलाए जाए जा रहे आदि सृष्टि कैंसर सेवा ट्रस्ट के संचालन के लिए दिया गया है।International News And Views Corporation यानी अंतरराष्ट्रीय समाचार एवं विचार निगम के मानव रत्न अवार्ड सिलेक्शन कमेटी के समन्वयक डॉ डीपी शर्मा जो कि यूनाइटेड नेशंस की संस्था आईएलओ के अंतरराष्ट्रीय परामर्शक एवं भारत सरकार के स्वच्छ भारत मिशन के राष्ट्रीय ब्रांड एंबेसडर है ने बताया कि यह पुरस्कार सेवा के क्षेत्र में अति विशिष्ट कार्यों के लिए परंपरा से परे भागीरथ प्रयासों के लिए दिया जाता है। यह पुरस्कार उन्हें International News And Views Corporation यानी अंतरराष्ट्रीय समाचार एवं विचार निगम द्वारा 29 सितंबर 2019 को दिल्ली के राजवाडा पैलेस में एक भव्य समारोह में प्रदान किया गया है। डॉक्टर डीपी शर्मा ने आगे कहा की कैंसर पीड़ितों एवं गरीबों की सेवा के लिए सृष्टि भूषण माता श्री का योगदान अंतरराष्ट्रीय ख्याति का है ।उन्होंने कहा कि सेवा एवं ममता की प्रतिमूर्ति माता श्री मनुष्य देह में एक देवी स्वरूपा हैं जो दिन-रात अनवरत रूप से मानव कल्याण के लिए प्रयासरत हैं । उनको यह सम्मान प्रदान करते हुए संपूर्ण मानवता कृतज्ञता के भाव से स्वयं को गौरवान्वित महसूस करेगी ।
चातुर्मास आपने देश के अनेक राज्यों में वर्षायोग किए।
1994 आगरा 1995 इटावा1996, कुरावली 1997 बड़ौत 1998 गोहाना, 1999 चंडीगढ़ 2000 सहारनपुर, 2001 मुरादाबाद ,2002 सम्मेद शिखर 2003 सिरसागंज ,2004 त्रिनगर दिल्ली ,2005 अजमेर 2006 त्रिनगर दिल्ली, 2007 शाहदरा दिल्ली ,2008 सुल्तानपुर ,2009शामली, 2010 बिहारी कॉलोनी दिल्ली ,2011 गुड़गांव हरियाणा ,2012 बूंदी 2013 केसरगंज अजमेर, 2014 रोहतक , 2015 सेठी कालोनी जयपुर , 2016 महावीर जी ,2017 भीलवाड़ा 2018 नजफगड़, 2019 राणा प्रताप बाग दिल्ली, 2020, कोशी, 2021 महावीर जी, 2022 महावीर जी 2023 मुरादाबाद
उपाधियां
आपको इन महान कार्यों के लिए निम्न उपाधियां भी पूर्व मे सम्मान स्वरूप प्रदान की गई हैं।
जो मुख्य है हरियाणा समाज द्वारा सन 1998 – हरियाणा उद्धारक (200 देशों के शंकराचार्यों की उपस्तिथि में) अजमेर समाज द्वारा सन 2005 – जिनधर्म प्रभाविका। गुडगाँव समाज द्वारा सन 2011 कविमना, बूंदी राजस्थान समाज द्वारा सन 2012 -वात्सल्य मूर्ति, महावीर जी समाज द्वारा सन 2016 समता शिरोमणि ,नजफगढ़ समाज द्वारा सन 2018 में वात्सल्य निधि।आचार्य अतिवीर जी महाराज जी द्वारा सन 2015 गणनी पद के संस्कार किए है। आदि अनेकों उपाधियाँ आपको प्रदान की गयीं। परन्तु हर उपाधि आपके द्वारा किये जा रहे कार्यों के समक्ष छोटी ही नज़र आई।
भक्तो को सन्देश
आपने अपने साथ जुड़े लाखो भक्तों को एक ही सन्देश दिया है-
‘‘मेरा तो है बस एक ही सपना,
स्वस्थ सुखी हो जीवन सबका’’
और आपकी इसी मंगल भावना और आशीर्वाद को साथ लेकर संकल्पित और समर्पित है आपके सभी भक्तगण। हम प्रभु से निवेदन करते हैं कि आध्यात्म की सरिता स्वरूपा, आत्महित एवं परहित से संलग्न पूज्य माता श्री आपने अपना सम्पूर्ण जीवन समाज अभ्युत्थान, संस्कृति के संरक्षण एवं श्रमण परम्परा के संवर्धन में समर्पित किया है ।आपकी यह कृति सम्पूर्ण मानवता के लिए अनुकरणीय है, वन्दनीय है । आपकी यशोगाथा का कांतिमय दीपस्तंभ युगों युगों तक इसी तरह दैदीप्यमान रहे। साथ ही आपने अपने साथ जुड़े लोगों को भक्तों को एक ही संदेश दिया।मेरा तो है बस एक ही सपना स्वस्थ सुखी हो भारत अपना।
अनेकों धार्मिक मंडल विधान
आपके निर्देशन में 44 दिवसीय से लेकर अनेक दिनों में धार्मिक विधान करवा कर समाज को धर्मसे लगातार जोड़ कर रखा। शाम को गुरुवंदना कार्यक्रम में भी काफी श्रद्धालु उपस्थित होते हैं
लेखिका संघस्थ बाल ब्रह्मचारिणी आर्यिका श्री विश्वयशमति|

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